वनों को न बनाएं आग का दरिया

By: Jun 2nd, 2018 12:05 am

बचन सिंह घटवाल

लेखक, मस्सल, कांगड़ा से हैं

तापमान का निरंतर बढ़ता पारा हिमाचल पर कहर बन कर टूटता है और प्रत्येक वर्ष आगजनी की असंख्य घटनाएं हमें रुला जाती हैं और हम मूकदर्शक बनकर साल-दर-साल करोड़ों का नुकसान ही नहीं झेलते, बल्कि वनों के सुंदर परिदृश्य के किसी सुंदर भाग व आशियाने को उजड़ते हुए व बदरंग होते देखते रह जाते हैं…

गर्मियों की तपिश से तापमान का बढ़ता पारा मानव हृदय की बेचैनी बढ़ा देता है, वहीं हिमाचल के वन्य क्षेत्रों में पेड़ों व वनस्पतियों से होकर गुजरती ठंडी हवा का झोंका हमें शीतलता भी प्रदान करता है। तापमान के बढ़ते पारे की गर्मी संग वनों का धू-धू कर जलना हृदय की धड़कन को अवश्य बढ़ा जाता है, क्योंकि वही वन जो हमारे जीवन को सुखमय बनाने का कार्य करते हैं, उनमें फैलती धधकती आग देखकर हमारी वनों के प्रति संवेदनशीलता पर विराम सा लग जाता है। हम राख होते वनों की सुंदरता की परवाह किए बिना अपने रास्ते आगे बढ़ जाते हैं। इससे पता चलता है कि हम वनों के प्रति कितने संवेदनशील हैं और वनों की सुरक्षा के प्रति हमारी संजीदगी साफ झलकती नजर आती है। गर्मियों में हिमाचली वनों में आगजनी की घटनाओं का ग्राफ बढ़ना आम बात है, जिससे वन्य क्षेत्र के समीप गांवों पर भी मौत का साया बना रहता है। आग की चपेट में कहीं बस्तियां राख के ढेर में परिवर्तित हो जाती हैं, वहीं आग का तांडव जंगलों को तबाह करता हुआ वन्य वनस्पतियों, जीव-जंतु, पक्षियों के घोंसलों को नष्ट कर जाता है।

भीषण आग से हुई तबाही की भरपाई में सदियां लग जाती हैं। वे पेड़ जिन्हें बढ़ने में सालों लग जाते हैं, वे आग की चपेट में पल भर में राख हो जाते हैं। इतना ही नहीं, वन्य जीवों की असंख्य प्रजातियां आग में समा जाती हैं और दुलर्भ वनस्पतियां प्रायः लुप्त हो जाती हैं। आग के इस तांडव में हम एक साथ असंख्य चीजों को गंवा देते हैं, जिसे मानवीय सूझबूझ से बचाना कोई असंभव काम नहीं है, बल्कि इस हेतु प्रकृति प्रेम की विचारधारा संग दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। इसमें संदेह नहीं है कि आग के फैलाव से मानव विचलित नहीं होता, परंतु आग का दिखना और उसे बुझाने के कार्य को अंजाम देना, वनों की भीषण आग के कारणों पर काबू पाने का प्रयत्न अवश्य कर सकता है। हिमाचल का कुल क्षेत्रफल 55673 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें लगभग 13082 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पेड़ों से आच्छादित है। इनमें चीड़, देवदार के अतिरिक्त पेड़ों की असंख्य प्रजातियां हिमाचली वनों को सघनता व सौंदर्य प्रदान करती हैं। वन्य क्षेत्र में जहां आगजनी की बहुतायत घटनाएं प्रतिलक्षित हुई हैं, उनका मुख्य कारण चीड़ के पेड़ों की सूखी पत्तियों को माना गया है, जो वनों में कालीन की तरह बिछी हुई पाई जाती हैं। चीड़ की सूखी पत्तियों में गंध बिरोजा तेल जो कि बहुत ज्वलनशील होता है, पाया जाता है, जो जल्दी ही आग पकड़ लेता है, जिसकी वजह से आग का फैलाव जहां-जहां पत्तियां हैं वहां-वहां आग की भीषणता का तांडव वन के एक कोने से दूसरे कोने तक आग का सैलाब सा ला देता है।

तापमान का निरंतर बढ़ता पारा हिमाचल पर कहर बन कर टूटता है और प्रत्येक वर्ष आगजनी की असंख्य घटनाएं हमें रुला जाती हैं और हम मूकदर्शक बनकर साल-दर-साल करोड़ों का नुकसान ही नहीं झेलते, बल्कि वनों के सुंदर परिदृश्य के किसी सुंदर भाग व आशियाने को उजड़ते हुए व बदरंग होते देखते रह जाते हैं। इसमें संदेह नहीं है कि जो वन्य क्षेत्र मानवीय पहुंच में है, वहां ऐसी घटनाओं पर फायर ब्रिगेड व स्थानीय लोगों की मदद से काबू पा सकते हैं, क्योंकि यही वन हमारी भावी पीढ़ी के लिए सुखद भविष्य का निर्माण करते हैं, जिसके प्रति हमें बड़ी संजीदगी के साथ सोच-विचार करना चाहिए। हम वनों के बारे में कितने गंभीर हैं यह प्रश्न गांव के निकटवर्ती जंगलों में लगी आग बयान कर जाती हैं। आग अधिकतर मानवीय भूल और लापरवाही का परिणाम है, इससे कदाचित इनकार नहीं किया जा सकता। कहीं पर इन दिनों हम अपने आसपास के इलाके की घास साफ करने के इरादे से इसे आग के हवाले कर देते हैं और यही आग बढ़ते-बढ़ते वन्य क्षेत्र का रुख कर जाती है। आगजनी के अन्य कारणों में वन्य क्षेत्र में धूम्रपान या आग जलाना तबाही का मंजर प्रस्तुत कर जाता है। व्यक्ति को इसका एहसास तक नहीं होता कि सिगरेट के जलते हुए टुकड़े ने क्या कहर बरपाया है। इसमें संदेह नहीं है कि पेड़-पौधों की सघनता हमारे भविष्य की तस्वीर को संवारती है।

अगर पेड़-पौधे बहुतायत में होंगे, तो इसका प्रभाव हमारे वातावरण और जीवन परिदृश्य को उकेरने का काम करता है। अगर यूं ही पेड़-पौधे, जीव-जंतु आग के हवाले होते रहे, तो धरती की सुंदरता छिन्न-भिन्न हो जाएगी और बदरंग धरती की तस्वीर हमारे जीवन पर भी प्रश्नचिन्ह लगा देगी। वनों की इस आग की तपिश आज गर्मी का पारा बढ़ाने का काम कर रही है, कहीं भविष्य की तस्वीर का रुख आग, धूल, मिट्टी और कुरूपता का दृश्य प्रस्तुत न करे। अतः सचेतन हमें वनों के प्रति गंभीरता दिखानी होगी। हमें पूर्ण निष्ठा से वनों को सहेजने का जिम्मा लेना होगा। जब व्यक्ति में वनों के प्रति संवेदना और इसकी सुरक्षा के विचार का संचार होगा, तभी हम पूर्णरूपेण वनों में हर वर्ष लगने वाली आग पर काबू पा सकते हैं। इससे हम वनों को आग का सैलाब बनने से रोकने में अवश्य कामयाब होंगे।

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