विंध्यवासिनी शक्तिपीठ

By: Jun 23rd, 2018 12:05 am

त्रिकोण यंत्र पर स्थित विंध्यवासिनी देवी लोकहिताय,महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती का रूप धारण कर विंध्य पर्वत पर स्थित मधु तथा कैटभ नामक असुरों का नाश करने वाली और भगवती यंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। कहा जाता है कि जो मनुष्य यहां तप करता है उसे अवश्य सिद्धि प्राप्त होती है। विभिन्न संप्रदाय के उपासकों को मनोवांछित फल देने वाली मां विंध्यवासिनी देवी अपने अलौकिक प्रकाश के साथ यहां नित्य विराजमान रहती हैं। मंदिर के अलावा विंध्याचल का प्राकृतिक सौंदर्य भी प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। यह क्षेत्र हरे-भरे वन से आच्छादित है और मंदिर के साथ-साथ सुंदर वातावरण भीड़भाड़ से जो लोग बचना चाहते हैं उनके लिए प्रिय स्थान है। विंध्य क्षेत्र का महत्त्व तपोभूमि के रूप में पुराणों में वर्णित है। विंध्याचल की पहाडि़यों में गंगा की पवित्र धाराओं की कलकल करती ध्वनि प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरती है। विंध्याचल पर्वत न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा स्थल है, बल्कि संस्कृति का अद्भुत अध्याय भी है। इसकी माटी की गोद में पुराणों के विश्वास और अतीत के अध्याय समाए हुए हैं। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता। यहां संकल्प मात्र से उपासकों को सिद्धि प्राप्त होती है। इस कारण यह क्षेत्र सिद्धपीठ के रूप में भी विख्यात है। साथ ही यहां पर स्वयं शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। साक्षात शक्ति स्वरूपा इस पवित्र स्थल पर प्रकट हुईं इसलिए यह शक्ति स्थल के नाम से भी विख्यात है। आदिशक्ति की शाश्वत लीलाभूमि मां विंध्यवासिनी के धाम में पूरे वर्ष दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है। ब्रह्मा विष्णु व महेश भी भगवती की मातृभाव से उपासना करते हैं, तभी वे सृष्टि की व्यवस्था करने में समर्थ होते हैं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App