विज्ञापन में सतरंगी करियर

By: Jun 6th, 2018 12:11 am

कभी विज्ञापन का काम सूचना देना होता था, अब विज्ञापनों के जरिए उपभोक्ताओं को हसीन ख्वाब दिखाए जाते हैं और उपभोक्ता ख्वाब खरीदता भी है। आज का बाजार विज्ञापन के कंधों पर सवार है। गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में विज्ञापन ही सफलता की गारंटी देता है…

आज के युग में विज्ञापनों का महत्त्व स्वयंसिद्ध है। जूते-चप्पल से लेकर टाई-रूमाल तक हर चीज विज्ञापित हो रही है। लिपस्टिक, पाउडर, नेलपालिश और माथे की बिंदिया विज्ञापनों का विषय हैं। नमक जैसी आम इस्तेमाल की वस्तुएं भी विज्ञापनों से अछूती नहीं रह पाईं हैं। बाजार में बढ़ती प्रतिद्वंद्विता और विज्ञापनों के बढ़ते प्रभाव को लेकर तरह-तरह की आशाएं. आशंकाएं उपभोक्ताओं मंे हैं, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है। विज्ञापन अपनी छोटी सी संरचना में बहुत कुछ छिपाए होते हैं। वह बहुत कम बोलकर भी बहुत कुछ कह जाते हैं। यदि विज्ञापनों के इस गुण और ताकत को हम समझने लगें, तो अधिकांश विज्ञापन हमारे सामने कोई आक्रमणकारी अस्त्र न रह कर कला के श्रेष्ठ नमूने बनकर उभरेंगे।

विज्ञापन का इतिहास

विज्ञापन का इतिहास काफी पुराना है। मौजूदा रूप तक पहुंचने के लिए इसने लंबा सफर तय किया है। वैश्विक स्तर पर देखा जाए, तो विज्ञापन की शुरुआत के साक्ष्य 550 ई.पू. मिलते हैं। भारत में विज्ञापन की शुरुआत सदियों पहले हो गई थी। यह बात अलग है कि समय के साथ-साथ इसके तौर-तरीके बदलते गए। ऐतिहासिक साक्ष्यों को खंगाला जाए, तो पता चलता है कि शुरुआती दौर में विज्ञापन मिस्र, यूनान और रोम में प्रचलित रहा। उन दिनों पत्थरों पर पेंटिंग करके विज्ञापन दिखाए जाते थे। 15वीं और 16वीं शताब्दी में मुद्रण के क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन होने से प्रिंटिंग मशीनों का चलन बढ़ने लगा। आज विज्ञापन अपना स्वरूप बदलते-बदलते इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मंे भी छा गए हैं। विज्ञापन का मकसद ही वक्त के साथ दुनिया को दौड़ाना है।

रोजगार के अवसर

विज्ञापन संबंधी प्रशिक्षण लेने के बाद कई क्षेत्रों में रोजगार के द्वार खुल जाते हैं। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आकर्षक वेतन पैकेज पर रोजगार मिलता है। विज्ञापन एजेंसियां ट्रेंड युवाओं को हाथोंहाथ लेती हैं। यदि आप मंे काबिलीयत है, तो आप विज्ञापन के क्षेत्र मंे अच्छा करियर बनाकर एक बेहतर जिंदगी जी सकते हैं।

शिक्षण संस्थान

* डब्ल्यूएलसी कालेज ऑफ  इंडिया, नोएडा, वाराणसी, जम्मू, लखनऊ, गोवा

* मैस्को मीडिया, नोएडा

* केसी कालेज ऑफ   मैनेजमेंट स्टडीज, मुंबई

* बरेली कालेज, बरेली (उत्तर प्रदेश)

* एनबी गुरबचन सिंह मेमोरियल कालेज, हिसार

* साधना अकादमी फॉर मीडिया स्टडीज,नोएडा

* लोयोला अकादमी कालेज, चेन्नई

* भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली

* सिम्बायोसिस इंस्टीच्यूट ऑफ   मास कम्युनिकेशन, पुणे

शैक्षणिक योग्यता

इस क्षेत्र में करियर बनाने वाले के लिए मॉस कम्युनिकेशन में स्नातकोत्तर होना अनिवार्य है। इस क्षेत्र में अनुभव बहुत मायने रखता है। अभ्यास और अनुभव इस क्षेत्र में बुलंदियों तक पहुंचाते हैं। कई संस्थान विज्ञापन में डिप्लोमा कोर्स भी करवाते हैं।

वेतन

इस क्षेत्र में वेतन योग्यता और अनुभव के आधार पर तय होता है। कल्पनाशील लोगों को बहुत ही आकर्षक वेतनमान मिलता है।

विज्ञापन रचना-प्रक्रिया

विज्ञापन तैयार करने से पहले विज्ञापन एजेंसी के दिमाग मंे यह बात स्पष्ट होती है कि उसका उपभोक्ता कौन है। उपभोक्ता समूह को ध्यान मंे रखकर, उस समूह की रुचि, आदतों एवं महत्त्वाकांक्षाओं को लक्ष्य करके ही विज्ञापन की भाषा, चित्र एवं अखबार, पत्रिकाओं और कम्युनिकेशन माध्यमों का चुनाव किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि कोई विज्ञापन एजेंसी महिलाओं के लिए कोई वस्तु तैयार करती है, तो उसकी विज्ञापन शैली निम्न बातों पर आधारित होगी।

उपभोक्ता समूह- महिलाएं

आर्थिक- मध्यम/निम्न/उच्च

शैक्षणिक स्तर- साधारण/उच्च ।

विज्ञापन में शब्दों और दृश्यों का चुनाव  बहुत ही सोचकर किया जाता है। जैसे कि विज्ञापन की एक लाइन ‘अपनी सलोनी त्वचा के लिए मैं ऐसी-वैसी क्रीम इस्तेमाल नहीं करती’ यह पंक्ति अति साधारण है, लेकिन इसमें कई अर्थ निहित हैं। अपनी सलोनी त्वचा के माध्यम से बेहतर दिखने की महत्त्वाकांक्षा को उभारा गया है, जबकि ऐसी-वैसी शब्द से भय उत्पन्न होता है कि सस्ती क्रीम निश्चय ही त्वचा के लिए हानिकारक होगी।

विजुअल्स/चित्रांकन

भाषा एवं शैली ही नहीं, अपितु विजुअल्स या चित्रांकन भी विज्ञापन का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। चित्र या ग्राफ विज्ञापन की भाषा को और भी प्रबलता प्रदान करते हैं। ये सब भी उपभोक्ता समूह को ध्यान मंे रखकर ही तैयार किए जाते हैं। जो अर्थ भाषा एवं शैली से अछूते रह जाते हैं, वे चित्रांकन द्वारा आसानी से अभिव्यक्त हो जाते हैं।

संप्रेषण की कला

यह स्पष्ट है कि विज्ञापन प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात कहता है। कभी हास्य के माध्यम से, कभी लय के माध्यम से, तो कभी भय उत्पन्न करके भी विज्ञापन उद्यमी अपने मकसद को प्राप्त करने की कोशिश करता है। विज्ञापन की कलात्मकता और सृजनात्मकता इस बात में निहित है कि यह परिस्थितियों को नए नजरिए से देखने की कोशिश करता है। जैसे एक कवि अपनी कला के माध्यम से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करता है, वैसे ही एक विज्ञापन भी प्रतीकात्मक रूप से मानवीय इच्छाओं, भावनाओं एवं कामनाओं को स्पर्श करता है।

विज्ञापन जरूरी क्यों

आज विज्ञापन हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुके हैं। सुबह आंख खुलते ही हम चाय की चुस्की के साथ अखबार पढ़ते हैं और उसके साथ विज्ञापन भी देखते हैं। घर के बाहर पैर रखते ही हम विज्ञापन की दुनिया से घिर जाते हैं। चाय की दुकान से लेकर वाहनों और दीवारों तक हर जगह विज्ञापन ही विज्ञापन दिखाई देते हैं। किसी भी तथ्य को यदि बार-बार लगातार दोहराया जाए, तो वह सत्य प्रतीत होने लगता है। यह विचार ही विज्ञापनों का आधारभूत तत्त्व है। विज्ञापन जानकारी भी प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए जब कोई वस्तु बाजार में आती है, तो उसके रूप, रंग, संरचना और गुण की जानकारी विज्ञापनों के माध्यम से ही मिलती है, जिसके कारण उपभोक्ता को सही और गलत की पहचान होती है। इसीलिए विज्ञापन जरूरी हैं।

नकारात्मक नजरिया न बने

विज्ञापन अगर किसी कारोबार की आधारशिला हैं, तो नकारात्मक प्रभाव भी कम नहीं हैं। वर्तमान दौर में विज्ञापनों मंे उत्पाद को कम और नारी काया को ज्यादा दिखा कर पैसा कमाने की होड़ सी लगी हुई है। पुरुषों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली शेविंग क्रीम, अंतःवस्त्र, सूट के कपड़े, जूते, मोटरसाइकिल, तंबाकू, गुटखा, सिगरेट और शराब तक के लिए विज्ञापनों मंे नारी को दिखाया जाता है, जबकि  यहां पर महिला को दिखाने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि इन वस्तुओं का इस्तेमाल पुरुषों द्वारा किया जाता है। फिर भी, इन विज्ञापनों मंे नारी देह का जमकर प्रदर्शन किया जाता है। कई विज्ञापन तो ऐसे होते हैं कि उन्हें परिवार के साथ बैठकर देखा ही नहीें जा सकता। बेशक विज्ञापन कारोबार की जरूरत है, लेकिन अपने व्यावसायिक फायदे के लिए महिलाओं की छवि को धूमिल नहीं  किया जाना चाहिए। देखा जाए तो आजकल ज्यादातर विज्ञापन समाज में अश्लीलता ही परोस रहे हैं।

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