शिक्षा अवमूल्यन को जिम्मेदार कौन ?

By: Jun 18th, 2018 12:05 am

शंकर लाल वसिष्ठ

लेखक, सोलन से हैं

चयनित राजनीतिक जनेच्छा मात्र मतों के लाभ-हानि का गणित करते हैं, प्रशासनिक अधिकारी हां में हां मिलाने में ही अपना कर्त्तव्य समझते हैं,  आगे शिक्षा अधिकारियों की क्या हिम्मत जो विद्यालय परिस्थिति को जानते हुए भी अपनी सम्मति दे सकें…

हाल ही में हिमाचल प्रदेश शिक्षा बोर्ड ने दसवीं व बारहवीं कक्षा का परिणाम घोषित किया। सामने आए परिणाम कहीं शत- प्रतिशत, कहीं उत्तम और कहीं अति न्यूनतम। दो-चार दिन अभिभावकों ने यथासंभव हो-हल्ला मचाया, समाचार-पत्रों में भी निंदनीय अधिकारियों ने कारण बताओ का नोटिस व उचित कार्रवाई का निर्देश देकर इतिश्री कर ली। सरकार ने जांच के आदेश देकर कार्रवाई करने का आश्वासन देकर प्रभावित जनमानस को शांत करने का छलावा कर लिया। यह सत्य है कि जिन विद्यालयों में किसी भी प्रकार की सुविधा का अभाव नहीं है, यदि वहां का परिणाम संतोषजनक नहीं है, तो वहां के विद्यालय प्रशासन व शिक्षकों को ‘कारण बताओ’ नोटिस मिलना ही चाहिए, परंतु सुविधा विहीन विद्यालयों को आप क्या कहेंगे?

जहां पर न बैठने की व्यवस्था, विषय शिक्षकों की रिक्तता, विद्यार्थियों की संख्या अनुपात में भवन की कमी व शिक्षकों की कमी, शौचालयों की कमी, पेयजल की असुविधा, शैक्षणिक परिवेश-पर्यावरण की कमी है वहां पर कौन जिम्मेदार है? सर्वेक्षण से पता चल सकता है कि हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण परिवेश में सरकारी विद्यालय किस कद्र कदमताल कर रहे हैं। सरकार व प्रशासन कितनी सजगता व कर्मठता से शिक्षा की गुणवत्ता के लिए अपना किरदार निभाते हैं। चयनित राजनीतिक जनेच्छा मात्र मतों के लाभ-हानि का गणित करते हैं, प्रशासनिक अधिकारी हां में हां मिलाने में ही अपना कर्त्तव्य समझते हैं, आगे शिक्षा अधिकारियों की क्या हिम्मत जो विद्यालय परिस्थिति को जानते हुए भी अपनी सम्मति दे सकें। उन्हें तो मात्र ऊपर से आए आदेश की पालना करनी है। आवश्यकता अनुरूप विद्यालय नहीं है, अपितु वोटों के अनुरूप विद्यालय खैरात की तरह बांटे गए हैं। जहां पर विद्यार्थी अधिक हैं वहां शिक्षक व अन्य सुविधाएं नहीं और कहीं विद्यार्थी नहीं तो शिक्षकों का व्यर्थ बोझ सरकार झेल रही है। विज्ञान संकाय में यह स्थिति अधिक देखने को मिलती है। यदि दो-चार विद्यार्थियों के लिए चार शिक्षक लगाने पडें़, तो उससे बेहतर होगा कि विद्यालयों के विद्यार्थियों को एक स्थान पर एकत्रित कर छात्रावास सुविधा के साथ भी पढ़ाया जाए, तो अधिक खर्च नहीं आएगा। शिक्षक अभाव की परिस्थितियों में विद्यालय प्रभारी येन-केन-प्रकारेण सुचारू व्यवस्था हेतु दूसरे विषय के शिक्षकों को छात्रों की जुगाली मात्र करने के लिए एडजस्टमेंट कर देते हैं। मुझे लगभग 36 वर्ष सरकारी शिक्षा विभाग में अध्यापन करने का सौभाग्य मिला है। विद्यालय भी ऐसे जहां पर अधिक संख्या होती थी। ऐसी भी स्थिति रहती थी कि विद्यार्थी तक जा पाना भी मुश्किल होता था। एक घटना का स्मरण हो रहा है… लगभग 27 वर्ष पूर्व मैं गांव के एक बहुसंख्यक विद्यार्थियों के स्कूल में था। प्रतिकक्षा 100 से अधिक छात्र-छात्राएं और क्लासरूम छोटे-छोटे। जमीन पर विद्यार्थियों को ठूंस-ठूंस कर बैठने को मजबूर होना पड़ता था। हमारा विद्यालय स्टेट हाई-वे पर था, इसलिए अधिकारी आसानी से अपनी उपस्थिति लगा लेते थे। एकाएक तात्कालिक शिक्षा निदेशक आए। सरल, सदाचारी, विवेकशील। उनके व्यक्तित्व को देखकर कहा नहीं जा सकता था कि वह इतने बड़े अधिकारी हैं। उन्होंने मेरे बाहर खड़े होने पर आपत्ति जताई और परिस्थिति जांचे बिना कह दिया। क्या बात आप दरवाजे पर से पढ़ाते हैं? मुझे पता नहीं था कि कौन है मैंने भी आक्रोशित लहजे में कह डाला, आप अंदर जाकर देखो। निदेशक महोदय ने नाराजगी के साथ अंदर झांका और भेड़-बकरियों की तरह सटे विद्यार्थयों को देखकर, कार्यालय की तरफ बढे़। तब तक पता चल गया था कि साहब शिक्षा निदेशक हैं। चाय की चुस्कियों के साथ निदेशक महोदय ने अपनी चिंता प्रकट की और आश्वासन देकर चले गए कि आपकी समस्या को जाते ही हल करूंगा। उसके बाद वर्षों वह भी निदेशक रहे और मैंने भी उसी विद्यालय में 5-6 वर्ष काटे। समस्या ज्यों की त्यों बनी रही। यहां जिम्मेदारी का प्रश्न कौंधता है। दूसरी घटना का स्मरण इससे भी अधिक आवश्यक है। छात्र संख्या को देखकर स्थानीय जागरूक लोगों के सहयोग से प्रति-बच्चा चंदा डालकर तीन प्रशिक्षित अध्यापक तैनात किए गए। ज्यों ही प्रदेश स्तर के कामरेड नेता को पता चला, उन्होंने आकर एक जनसभा की और सरकार पर आरोप लगाया कि लोगों को सरकारी स्कूलों में अपने अध्यापक रखने पड़ रहे हैं। सरकार इस किरकिरी को न झेल सकी। दो तीन दिन बाद फरमान आया कि विद्यालय मुखिया की एक्सप्लेनेशन और लगाए गए अध्यापक बाहर। राजनीतिक द्वंद्व में पिसते रहे बेचारे विद्यार्थी, निदान शून्य। सौभाग्य की बात है कि वर्तमान में स्कूल प्रबंधन कमेटी इस कार्य में सहयोगी व सार्थक किरदार निभा रही है।


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