शिक्षा से जुड़े यक्ष प्रश्नों के उत्तर कौन देगा ?

By: Jun 11th, 2018 12:05 am

सुगन धीमान

लेखक, बद्दी से हैं

प्रदेश में 39 स्कूलों का मैट्रिक परिणाम मन में प्रश्नों का ढेर लगाता है। इन शंकाओं का निवारण कैसे होगा? कौन करेगा? कब करेगा? ये सब यक्ष प्रश्न हैं। शायद ये सब प्रश्न सबको जल्दी भूल जाएं, लेकिन अच्छा होगा कि इनका जल्दी ही समाधान निकाला जाए…

शिक्षा अमूल्य रत्न है। शिक्षा जीवन में विवेक पैदा करती है। दो कदम आगे बढ़कर कहा जा सकता है कि शिक्षा तीसरा नेत्र है। जीवन में प्रगति तभी संभव है जब शिक्षा का सूरज देश, समाज और परिवार का पथ प्रदर्शन करने लगे। अब तो आम आदमी ने भी समझ लिया है कि अच्छे पदों को पाने के लिए शिक्षा के बिना कोई दूसरा रास्ता नहीं है। देश को आगे बढ़ने के लिए भी शिक्षित व ईमानदार नागरिकों की जरूरत पड़ती है। तभी तो देश की पहली पांच वर्षीय योजना में शिक्षा को प्रथम स्थान दिया गया था। सरकार ने गांव-गांव स्कूल खोलने की योजना बनाई थी। बड़े अमीर और राजे रजवाड़े लोगों के लिए पहले से ही देश में निजी स्कूल थे, जहां गरीब या साधारण लोगों को अपने बच्चे पढ़ा पाना सपना मात्र से अधिक कुछ न था, लेकिन वर्ष 1970 के बाद तो देश में निजी स्कूलों की बाढ़ सी आने लगी। अब निजी स्कूलों की गिनती बड़े शहरों में सरकारी स्कूलों से तीन गुना अधिक हो सकती है।

अब तो छोटे-बड़े गांव के आसपास भी निजी छोटे स्कूल दिखाई देने लगे हैं। हिमाचल प्रदेश भी निजी स्कूलों से अछूता नहीं। लोकमत के अनुसार निजी स्कूल अब केवल शिक्षा की केवल दुकान मात्र हैं। फिर भी निजी स्कूलों की चकाचौंध इतनी है कि आम व्यक्ति अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर इन निजी स्कूलों की ओर आकर्षित होने लगा। अनेक लोग अब भी समाज में ऐसे हैं, जो अपनी सीमित आय को भुलाकर अपने बच्चे को निजी स्कूल में पढ़ाने के लिए फैसला ले रहे हैं, चाहे इस काम के लिए अपना पेट ही क्यों न काटना पड़े। इसलिए कि कल उसके सपनों को पंख लग सकें। हमारा यह मानना है कि बच्चे की पढ़ाई बच्चे की रुचि पर निर्भर करती है। यह जरूरी नहीं है कि निजी स्कूल में ही किसी बच्चे का बौद्धिक विकास हो सकता है। अनेक ऐसे भी महान व्यक्ति हुए हैं जिनकी शिक्षा सरकारी स्कूल में हुई है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, चंद्रशेखर व देश के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम जिन्हें मिसाइलमैन के नाम से जाना जाता है, ये सभी सरकारी स्कूलों में पढ़े हैं।

आज भारत में हजारों की तादाद में डाक्टर, इंजीनियर ऐसे होंगे, जिन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूलों से शुरू की और देश को शानदार सेवाएं देकर देश का नाम ऊंचा किया। इन बातों से साबित होता है कि जिनको आगे निकलना होता है, वे किसी सहारे के मोहताज नहीं होते। निजी स्कूलों का दावा रहता है कि हम सरकारी स्कूलों की अपेक्षा बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन हाल ही की मैट्रिक परीक्षा के परिणाम प्रदेश को परेशान करने वाले हैं, जिनमें से 20 सरकारी और 19 निजी स्कूलों के मैट्रिक परिणाम शून्य रहे हैं। प्रश्न उठता है कि निजी स्कूलों के बेहतर शिक्षा देने के वादे कहां गए? मोटी-मोटी फीस लेकर शून्य प्रतिशत परिणाम कैसे आ गया? वे दावा करते नहीं थकते कि उनके शिक्षक बहुत अधिक मेहनती और योग्य होते हैं। स्कूल प्रबंधन के मालिक लाख सफाई दें, लेकिन प्रश्नों के साए शीघ्र साथ नहीं छोड़ते। मान लो एक कक्षा में 20 विद्यार्थी थे, तो क्या एक भी बच्चे को स्कूल के अध्यापक सफलता तक पहुंचाने में कामयाब नहीं रहे? जबकि पांच प्रतिशत बच्चे मामूली गाइडेंस से ही परीक्षा पास कर लेते हैं। अध्यापक को अपनी कक्षा के एक-एक विद्यार्थी के बौद्धिक स्तर का ज्ञान होता है, तो क्या पढ़ाई में कमजोर विद्यार्थियों के मामले में उनके अभिभावकों को स्थिति से अवगत कराया था? शायद नहीं। माना जा सकता है कि स्कूल के अच्छे परिणाम की होड़ में निजी स्कूलों में भी नकल का सहारा लिया जाता हो। यह इसलिए कि स्कूल के रुतबे को बट्टा न लग जाए। प्रतिवर्ष ऐसी खबरें भी सुनने को मिलती रहती हैं कि पैसे के बल पर शिक्षा प्रणाली में सब कुछ संभव है, लेकिन ऐसी सोच देश के लिए बड़ी घातक है। विभाग को अध्यापकों के प्रति बनते सवालों को कड़ा रुख अपनाकर लंबी पूछताछ करनी चाहिए। संतुष्टि होने पर ही किसी को छोड़ना चाहिए, क्योंकि ठोस कार्रवाई के बिना किसी निर्णय पर पहुंचा नहीं जा सकता। वर्षों से ढुलमुल नीति से अभिभावकों और बच्चों का बड़ा नुकसान हुआ है। स्कूल चाहे सरकारी हो या निजी, दोनों तरह के स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता से किसी तरह का समझौता नहीं होना चाहिए। खोखली शिक्षा देश व समाज को खोखला कर देगी। खोखली शिक्षा से बना डाक्टर, इंजीनियर, विज्ञानी, अध्यापक क्या गुल खिला सकता है, यह किसी से पूछने की जरूरत नहीं। प्रदेश में 39 स्कूलों का मैट्रिक परिणाम मन में प्रश्नों का ढेर लगाता है। इन शंकाओं का निवारण कैसे होगा? कौन करेगा? कब करेगा? ये सब यक्ष प्रश्न हैं। शायद ये सब प्रश्न सबको जल्दी भूल जाएं, लेकिन अच्छा होगा कि इनका जल्दी ही समाधान निकाला जाए।

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