संकरी पैमाइश की उच्च शिक्षा

By: Jun 15th, 2018 12:05 am

संकरी पैमाइश की उच्च शिक्षा में गुणवत्ता तलाशने की हिमाचली कोशिश को जबरदस्त तरीके से समझने की जरूरत है। तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति एसपी बंसल ने पद संभालते ही शिक्षा को सहेजने का संकल्प लेकर यह बता दिया कि पूरी तकनीकी शिक्षा के मानदंड किस स्थिति में हैं। बेशक पिछले एक दशक में राज्य ने इंजीनियरिंग कालेजों का भरपूर माल्यार्पण किया, लेकिन यह जश्न जमीनी यथार्थ व जरूरतों के विपरीत रहा। अगर अस्सी फीसदी इंजीनियरिंग उपाधि प्राप्त युवा नौकरी के काबिल नहीं बने, तो हमारे सपनों की न जाने कितनी अर्थियां उठेंगी। कोई भी शिक्षण संस्थान जब तक प्रार्थना स्थल नहीं बनेगा, परिणामों की सूची में शून्यता ही रहेगी। हिमाचल में इंजीनियरिंग कालेजों व निजी विश्वविद्यालयों की अनावश्यक खेप ने यह साबित कर दिया कि मुश्किल प्रश्नों का हल केवल लंबी रेखा खींचने से नहीं होता, बल्कि प्रकाश की किरणों को पहचानने की विधा ही विद्या है। दुर्भाग्यवश इन सालों में ऐसा पाठ्यक्रम नहीं बना, जो भविष्य की रोजगार मांग के अनुरूप हो या जिससे छात्र समुदाय की काबिलीयत में नवाचार प्रधान बन जाए। अत्यधिक खुले इंजीनियरिंग कालेजों ने छात्रों की योग्यता को नजरअंदाज करके प्रवेश की पर्चियों से केवल सौदेबाजी की, तो अब मुजरिम बने कुछ संस्थानों के औचित्य पर प्रश्न चस्पां हैं। छात्र-प्राध्यापक संख्या के बिगड़े अनुपात के बावजूद, सक्षम फैकल्टी का अभाव अध्यापन को कोसता है। विडंबना यह भी कि इंजीनियरिंग कर रहे छात्रों को माकूल इन्टर्नशिप सुविधाएं ही उपलब्ध नहीं हुईं, तो हुनरमंद होने का अवसर कैसे मिलेगा। जाहिर है ऐसे वातावरण से मुक्त करने की परीक्षा में सर्वप्रथम तकनीकी विश्वविद्यालय को ही पारंगत होना पड़ेगा। विजन डाक्यूमेंट की दिशा में कुलपति कितनी खामियों का निवारण सुनिश्चित करते हैं, यह एक लंबी प्रक्रिया व जद्दोजहद होगी। आवश्यकता इस बात की भी है कि प्रदेश का छात्र समुदाय सर्वप्रथम अपनी दिमागी फितरत तथा शिक्षा की अभिलाषा में अपना नजरिया बदले। रोजगार का महाकुंभ न तो मेडिकल और न ही इंजीनियरिंग शिक्षा के द्वार पर लगा है, ऐसा है भी तो उस स्तर को पाना टेढ़ी खीर है। एक अच्छे इंजीनियर का उद्यमशील चरित्र तथा नवाचार के प्रति रुझान होना लाजिमी है, लेकिन हिमाचल में छात्र उपक्रम न के बराबर है। क्यों नहीं हमारी शैक्षणिक योग्यता स्वरोजगार निर्धारित कर पा रही है। ऐसे में न केवल तकनीकी, बल्कि हर विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में इतना जुनून तथा ज्ञान भरा होना चाहिए कि युवा क्षमता अपनी प्रतिभा के दम पर जीवन यापन की मंजिल रेखांकित कर सके। कायदे से प्रदेश में न तो विज्ञान, न मानव विज्ञान और न ही कला, गीत व संगीत की शिक्षा का उच्च स्तर प्राप्त हो रहा है। बिजनेस स्कूलों का मौजूदा प्रारूप निराशाजनक इसलिए भी है, क्योंकि पढ़ाई की माला जपते हुए छात्र केवल सरकारी रोजगार की अरदास तक सिमट जाते हैं। इसी तरह कानूनी पढ़ाई के आसरे जो व्याख्या हो रही है, उससे हमें काबिल प्रोफेशनल तो नहीं मिल रहे। बहरहाल आशा का दीप लेकर तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति ने चंद अंधेरों के प्रति ध्यान तो आकृष्ट किया, वरना शैक्षणिक नेतृत्व या तो विचारधारा का प्रसार कर रहा है या अपना पक्षधर समूह तैयार कर रहा है। हिमाचल के संदर्भों में उच्च शिक्षा का मूल्यांकन जिस तरह रूसा से रूठ कर हुआ है, उसी तरह इंजीनियरिंग व मेडिकल कालेजों की लचर व्यवस्था में नाकामयाबी ही दर्ज कर रहा है। हिमाचल के विषयों में शोध और सोच का जागरण, अगर विभिन्न विश्वविद्यालयों के माध्यम से नहीं होता, तो शिक्षा केवल बेरोजगारों की लंबी होती कतार के पैमानों में दर्ज होकर रह जाएगी। उम्मीद है नए कुलपति तकनीकी शिक्षा के प्रांगण का दायरा बढ़ाते हुए इसे विश्वविद्यालय से तकनीकी स्कूलों तक जोड़ने में सफल होंगे।


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