संरक्षणवादी नीति अपनाए भारत

By: Jun 26th, 2018 12:10 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

संरक्षणवाद को अपनाने में मुख्य समस्या सरकारी नौकरशाही की है। आज भारत सरकार के कुल बजट में लगभग पचास प्रतिशत रकम सरकारी कर्मचारी के वेतन एवं पेंशन में खप रही है। भारत सरकार को इनके वेतन अदा करने के लिए भारी मात्रा में बाजार से ऋण लेना पड़ रहा है। विदेशी निवेश के आने से भारत के मुद्रा बाजार में तरलता बढ़ती है और भारत सरकार के लिए ऋण लेना आसान हो जाता है। इसलिए भारतीय नौकरशाही चाहती है कि विदेशी निवेश आए जिससे कि भारत सरकार के लिए ऋण लेना आसान हो जाए और उनको मिलने वाले वेतन तथा पेंशन में उत्तरोत्तर बढ़त होती रहे…

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आयात होने वाले स्टील तथा एल्युमिनियम के उत्पादों पर आयात कर बढ़ा दिए हैं। इसकी जवाबी कार्रवाई में अमरीका से आयातित होने वाले बड़ी क्षमता के मोटरसाइकिल एवं बादाम पर भी आयात कर बढ़ाने का मन भारत ने बनाया है। इस प्रकरण से स्पष्ट होता है कि मुक्त व्यापार का सिद्धांत कारगर नहीं रहा है। नब्बे के दशक में अमरीका मुक्त व्यापार का समर्थक था। अमरीका ने बड़े जतन से विश्व व्यापार संधि को लागू किया था और वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूटीओ) बनवाया था। उस समय अमरीका में नई तकनीकों का आविष्कार हो रहा था, जैसे-माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने विंडो सॉफ्टवेयर का आविष्कार किया था। इस सॉफ्टवेयर को बनाने में माइक्रोसॉफ्ट को लगभग एक डालर प्रति सॉफ्टवेयर का खर्च आता है, जबकि उस समय वह दस डालर में बेच रहा था। इसी प्रकार सिस्को सिस्टम के द्वारा इंटरनेट के राउटर, आईबीएम तथा हयूवेट पेकार्ड द्वारा कम्प्यूटर बनाकर पूरी दुनिया को सप्लाई किए जा रहे थे। मोनसानटो द्वारा जीन परिवर्तित बीज, जैसे-बीटी कॉटन बना कर निर्यात किए जा रहे थे। इन हाईटेक उत्पादों के निर्यात से अमरीका को भारी लाभ हो रहा था। इसलिए अमरीका के लिए उस समय मुक्त व्यापार डबल लाभ का सौदा था। अमरीकी कंपनियों को अपने हाईटेक उत्पादों को पूरी दुनिया में बेचने का मौका मिल रहा था। दूसरी तरफ भारत जैसे देशों से सस्ते कपड़े और खिलौने अमरीकी उपभोक्ता को मिल रहे थे। बीते दो दशक से परिस्थिति में मौलिक परिवर्तन हो गया है। आज अमरीका में विंडो सॉफ्टवेयर जैसे नए उत्पाद नहीं बन रहे हैं। इंटरनेट का चीन ने अपना विकल्प बना लिया है। चीन तथा कोरिया में बड़ी मात्रा में आधुनिक कम्प्यूटर बन रहे हैं। भारत में जीन परिवर्तित जैसे बीज महिको जैसी कंपनियां बना रही हैं।

इस प्रकार अमरीका के लिए हाईटेक उत्पादों का व्यापार करना कठिन हो गया है। फलस्वरूप अमरीका के निर्यात दबाव में हैं, जबकि आयात बढ़ रहे हैं। आयातों के बढ़ने से अमरीकी मजदूरों का हनन हो रहा है, जबकि हाईटेक उत्पादों के निर्यात में कमी आने से भी अमरीकी मजदूरों का हनन हो रहा है। इस समस्या से उबरने के लिए राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत से आयातित होने वाले स्टील तथा चीन से आयातित होने वाले तमाम उत्पादों पर आयात कर बढ़ा दिए हैं। उनकी सोच है कि भारत तथा चीन से माल नहीं आएगा, तो उस माल का उत्पादन अमरीका में होगा। इसलिए नागरिकों के लिए रोजगार बनेगा और मतदाताओं के बीच उनकी पैठ बनी रहेगी। इसलिए ट्रंप मुक्त व्यापार से पीछे हट रहे हैं। जिस मुक्त व्यापार को नब्बे के दशक में अमरीका की समृद्धि का रास्ता समझा जा रहा था, उसी मुक्त व्यापार को अमरीकी रोजगार के हनन का कारण माना जा रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा मुक्त व्यापार से पीछे हटना अमरीकी नागरिकों के लिए खट्टा-मीठा परिणाम देगा। एक तरफ उनके लिए रोजगार बनेंगे, क्योंकि भारत से स्टील तथा एल्युमिनियम कम आएगा और इनका उत्पादन अमरीका में होगा, लेकिन दूसरी तरफ भारत के द्वारा प्रतिक्रिया में आयात कर बढ़ाने से अमरीका में निर्यात भी घटेंगे। तकनीकी आविष्कारों की कमी के कारण अमरीका के निर्यात पहले ही प्रभावित थे, अब ये और ज्यादा प्रभावित होंगे।

रोजगार की दृष्टि से ट्रंप की पालिसी सही दिखती है, लेकिन साथ-साथ भारत के सस्ते स्टील तथा एल्युमिनियम के अनुपलब्ध हो जाने के कारण अमरीकी उपभोक्ता को इन माल को अमरीका में ऊंचे दाम पर खरीदना होगा। अतः एक तरफ रोजगार का मीठा परिणाम होगा, तो दूसरी तरफ माल के दाम में वृद्धि का खट्टा परिणाम होगा। इस पृष्ठभूमि में भारत को तय करना है कि हम मुक्त व्यापार को अपनाएंगे या इससे पीछे हटेंगे। मुक्त व्यापार के हमारे लिए दो पहलू हैं। पहला पहलू विदेशी निवेश का है। सोचा गया था कि मुक्त व्यापार के साथ अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में फैक्ट्रियां लगाएंगी, जिससे भारत को उच्च तकनीकी एवं विदेशी निवेश दोनों मिलेगा, लेकिन जैसा ऊपर बताया गया है आज अमरीका के पास उच्च तकनीकी न होने के कारण विदेशी निवेश के आधार पर भारत में इनका आना कम ही हो गया है। दूसरा पहलू यह है कि यदि हम वैश्वीकरण को अपनाए रखते हैं, तो भी हमारे निर्यात कम होंगे, क्योंकि अमरीका द्वारा मुक्त व्यापार को त्याग दिया जा रहा है और अमरीका द्वारा हमारे माल पर अधिक आयात कर लगाया जा रहा है। इस परिस्थिति में मेरी दृष्टि से हमें भी ट्रंप का अनुसरण करते हुए मुक्त व्यापार से पीछे हटकर संरक्षणवाद की नीति अपनानी चाहिए। विदेशी निवेश के स्थान पर घरेलू निवेश को प्रोत्साहन देना चाहिए, इस बात के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं कि भारत के उद्यमी आज भारत में निवेश करने के स्थान पर विदेशों में कारखाने लगाना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। विदेशी निवेश के माध्यम से नई तकनीकों को हासिल करने के स्थान पर भारत को स्वयं नई तकनीकों के आविष्कार के प्रयास करने चाहिए तथा अपनी यूनिवर्सिटियों आदि में रिसर्च के भारी प्रोग्राम लेने चाहिए। ऐसा करने से हम घरेलू निवेश एवं घरेलू तकनीकों के आधार से आगे बढ़ सकेंगे। इस संरक्षणवाद को अपनाने में मुख्य समस्या सरकारी नौकरशाही की है। आज भारत सरकार के कुल बजट में लगभग पचास प्रतिशत रकम सरकारी कर्मचारी के वेतन एवं पेंशन में खप रही है।

भारत सरकार को इनके वेतन अदा करने के लिए भारी मात्रा में बाजार से ऋण लेना पड़ रहा है। विदेशी निवेश के आने से भारत के मुद्रा बाजार में तरलता बढ़ती है और भारत सरकार के लिए ऋण लेना आसान हो जाता है। इसके विपरीत यदि घरेलू निवेश को बढ़ाया जाए, तो घरेलू निवेशक और भारतीय सरकार अपने एक ही मुद्रा बाजार में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। इससे ब्याज दर बढ़ती है और भारत सरकार के लिए उधार लेना कठिन हो जाता है। इसलिए भारतीय नौकरशाही चाहती है कि विदेशी निवेश आए, जिससे भारत सरकार के लिए ऋण लेना आसान हो जाए और उनको मिलने वाले वेतन तथा पेंशन में उत्तरोत्तर बढ़त होती रहे। इसमें कोई व्यवधान उत्पन्न न हो। तकनीकी आविष्कार में भी नौकरशाही ही समस्या दिखती है। तकनीकी आविष्कार में निवेश करने के लिए भारत को भारी रकम चाहिए, लेकिन भारत सरकार का राजस्व सरकारी कर्मियों को वेतन देने में खप रहा है, इसलिए तकनीकी आविष्कार में भारत सरकार निवेश नहीं कर पा रही है। तकनीकी आविष्कार निवेश बढ़ाने के लिए सरकारी कर्मियों के वेतन में कटौती करनी होगी। इस प्रकार मेरा मानना है कि हमें ट्रंप की सही पालिसी अनुसरण करते हुए मुक्त व्यापार को त्यागकर संरक्षणवाद का रास्ता अपनाना चाहिए। दुर्भाग्य है कि इस दिशा में भारत की नौकरशाही अपने स्वार्थ के लिए इस सही नीति को लागू नहीं होने दे रही है और देश गड्ढे में जा रहा है।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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