सबल होने की कला

By: Jun 16th, 2018 12:05 am

ओशो

बुद्ध ने कहा, ऐसा कुछ भी नहीं है। चीजें हो रही हैं। बुद्ध ने जो प्रतीक लिया है जीवन को समझाने के लिए, वह है दीये की ज्योति। सांझ को तुम दीया जलाते हो। रातभर दीया जलता है, अंधेरे से लड़ता है। सुबह तुम दीया बुझाते हो। क्या तुम वही ज्योति बुझाते हो जो तुमने रात में जलाई थी? वही ज्योति को तुम कैसे बुझाओगे? वह ज्योति तो करोड़ बार बुझ चुकी। ज्योति तो प्रतिपल बुझ रही है, धुआं होती जा रही है। नई ज्योति उसकी जगह आती जा रही है। रात को तुमने जो ज्योति जलाई, उस ज्योति की जगह तुम उसकी श्रृंखला को बुझाओगे, उसी को नहीं। वह तो जा रही है, भागी जा रही है, तिरोहित हुई जा रही है आकाश में।

नई ज्योति प्रतिपल उसकी जगह आ रही है। तो बुद्ध ने कहा, तुम्हारे भीतर कोई आत्मा है ऐसा नहीं, चित्त का प्रवाह है। एक चित्त जा रहा है, दूसरा आ रहा है। जैसे दीये की ज्योति आ रही है। तुम वही न मरोगे जो तुम पैदा हुए थे। जो पैदा हुआ था, वह तो कभी का मर चुका। जो मरेगा वह उसी संतति में होगा, उसी श्रृंखला में होगा,लेकिन वही नहीं। यह बुद्ध की धारणा बड़ी अनूठी है, लेकिन बुद्ध ने जीवन को पहली दफा जीवंत करके देखा और जीवन को क्रिया में देखा, गति में देखा।

जो भी आलस्य में पड़ा है, जो रुक गया है, ठहर गया है, जो नदी न रहा और सरोवर बन गया, वह सड़ेगा। विषय रस में अशुभ देखते हुए विहार करने वाले, इंद्रियों में संयत, भोजन में मात्रा जानने वाले, श्रद्धावान और उद्यमी पुरुष को वैसे ही मार नहीं डिगाता जैसे आंधी शैल-पर्वत को। तुम्हारी निर्बलता और दुर्बलता का सवाल है। जब तुम हारते हो, अपनी दुर्बलता से हारते हो। जब तुम जीतते हो, अपनी सबलता से जीतते हो।

वहां कोई तुम्हें हराने को बैठा नहीं है। इस बात को ख्याल में ले लो। शैतान है नहीं, मार है नहीं, तुम्हारी दुर्बलता का ही नाम है। जब तुम दुर्बल हो, तब शैतान हो। जब तुम सबल हो, तब शैतान नहीं हो। तुम्हारा भय ही भूत है।

तुम्हारी कमजोरी ही तुम्हारी हार है। इसलिए यह जो हम बहाने खोज लेते हैं अपना उत्तरदायित्व किसी के कंधे पर डाल देने का कि शैतान ने भटका दिया कि क्या करें मजबूरी है, पाप ने पकड़ लिया। कोई पाप है कहीं जो तुम्हें पकड़ रहा है? तुमने भले पाप को पकड़ा हो, पाप तुम्हें कैसे पकड़ेगा? तो मार तो केवल एक काल्पनिक शब्द है।

इस बात की खबर देने के लिए कि तुम जितने कमजोर होते हो, उतना ही तुम्हारी कमजोरी का कारण, तुम्हारी कमजोरी से ही आविर्भूत होता है, तुम्हारा शत्रु। तुम जितने सबल होते हो, उतना ही शत्रु विसर्जित हो जाता है। सबल होने की कला योग है। अपने जीवन में हार शब्द को मत आने दो। जीवन को प्रतिपल संघर्ष का दौर बना लो।

वर्तमान में जीना सिखो। बुद्ध ने अपने जीवन को इस तरह बना लिया कि किसी भी चीज का असर उन पर न हो सके।  दुनियावी बाहरी आडंबरों से ऊपर उठना बहुत आवश्यक है। अपनी इंद्रियों को पुरुषार्थ में लगाना चाहिए ताकि नकारत्मकता आपके ऊपर हावी न हो सके। जीवन में निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रयास करना न छोड़ें। दूसरों पर निर्भर रहने की बजाय अपने अंदर आत्मविश्वास पैदा करें। फिर देखें कि जीवन कितना सुखद होगा।


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