सिसकता बलिदान

By: Jun 24th, 2018 12:04 am

गिला करें भी तो किससे। कुर्बानी के बदले भूख की सजा। पौंग के मछुआरे जाएं भी तो कहां। पहले घर-बार ले लिया और जो रोजी-रोटी थी, उस पर वाइल्ड लाइफ एक्ट ने हक जमा लिया। पौंग झील सेंक्चुरी एरिया क्या घोषित हुई, अढ़ाई हजार परिवारों की रोटी पर बन आई। बलिदान के ऐसे भविष्य को नियमों ने सूली पर तो चढ़ा दिया, पर दर्द की यह सिसकियां किसी तक नहीं पहुंचीं…

नूरपुर— दूसरों की खातिर अपना घर-बार न्यौछावर करने वाले पौंग के बाशिंदो ने शायद ही कभी सोचा होगा कि भविष्य में उन्हें रोजी-रोटी के लाले पड़ जाएंगे। उस वक्त उन्होंने यही सोच कर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया कि कुछ नहीं होगा तो मछलियां पकड़ कर ही अपना परिवार पाल लेंगे। और वर्ष 1976 से ऐसा ही चलता आ रहा है, पर अब वाइल्ड लाइफ एक्ट के नियम उनकी रोजी-रोटी को संकट में डालने लगे हैं। पौंग झील वाइल्ड लाइफ  सेंक्चुरी एरिया घोषित हो चुकी है और हर साल यहां विदेशी परिंदों की आमद बढ़ रही है। अब वाइल्ड लाइफ विंग इन परिंदों की खातिर मछुआरों को मछलियां पकड़ने से मना कर रहा है। यह वक्त के सताए वही मछुआरे हैं, जिन्होंने पौंग डैम के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। जानकारी के मुताबिक वाइल्ड लाइफ विभाग ने मत्स्य विभाग को नोटिस देकर पूछा है कि आप किस नियम या अनुमति के तहत मछली पकड़ रहे हैं। वाइल्ड लाइफ  ने मत्स्य विभाग सहित चार विभागों, जिसमें बीबीएमबीए, पर्यटन, वाटर स्पोर्ट्स भी शामिल है, को नोटिस देकर पूछा है कि वे पौंग झील में किए जाने वाले कार्यों की उनसे  अनुमति लेते हैं या नहीं। बीबीएमबी झील के पानी व जमीन का मालिक है और मत्स्य विभाग यहां करीब 1976 से मछली उत्पादन कर रहा है। दरअसल पौंग झील वाइल्ड लाइफ  सेंक्चुरी एरिया घोषित होने और यहां वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम लागू होने से झील में हर कार्य इस अधिनियम के मुताबिक ही हो सकता है। झील में लगभग 1982 में वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी बनाने की अधिसूचना जारी हुई और 1999 में अंतिम अधिसूचना। जानकारों के मुताबिक जब झील को सेंक्चुरी एरिया बनाने की प्रक्रिया चली होगी तो शायद इससे जुड़े विभागों ने कोई आपत्ति या सुझाव नहीं दिए होंगे, जिस कारण अब यह स्थिति बनी है। इस झील से निकलने वाली कोई भी चीज वन संपदा में शामिल है और मछली उत्पादन भी वन संपदा में आता है। इसी के चलते वाइल्ड लाइफ  ने मत्स्य विभाग को नोटिस देकर पूछा है कि आप किसकी मंजूरी से यहां मछली उत्पादित कर रहे हैं। अगर नियम सख्त हुए तो झील से लगभग अढ़ाई हजार परिवार, जो कि सीधे मछली पकड़ने के व्यवसाय में लगे हैं, उनकी रोजी-रोटी पर संकट आ जाएगा।

* मत्स्य विभाग को नोटिस जारी कर पूछा है कि झील से किस नियम व मंजूरी के तहत मछली पकड़ी जा रही है। इसके अलावा बीबीएमबी, पर्यटन व एक  अन्य विभाग को भी नोटिस जारी किया है

कृष्ण कुमार, डीएफओ वाइल्ड लाइफ, हमीरपुर

* एचपी फिशरीज एक्ट के तहत पौंग से मछली पकड़ी जाती है। वाइल्ड लाइफ को जवाब दे दिया है। मत्स्य विभाग 1976 से यहां मछली उत्पादन कर रहा है और इससे सैकड़ों परिवारों की आजीविका जुड़ी है। विभाग ऐसा कोई काम नहीं करता, जिससे झील पर कोई प्रतिकूल असर पड़े। मत्स्य बीज डाल कर विभाग वन्य जीवन को मजबूत कर रहा है

सतपाल सिंह मेहता, निदेशक, मत्स्य विभाग

1976 से मछली उत्पादन

सवाल यह है कि जब पौंग झली सेंक्चुरी एरिया बनी थी तो इस झील के पानी व जमीन के मालिक बीबीएमबी और 1976 से मछली उत्पादन कर रहे मत्स्य विभाग से एनओसी ली थी? सेंक्चुरी एरिया बनने के लगभग 36 साल बाद अब मत्स्य विभाग से मंजूरी की बात क्यों पूछी जा रही है।

किससे ले रहे मंजूरी

वाइल्ड लाइफ  विभाग ने बीबीएमबी से पूछा है कि आप जिन विभागों को झील की जमीन आदि देते हैं तो क्या वाइल्ड लाइफ  की मंजूरी ली है। इसी प्रकार पर्यटन विभाग व वाटर स्पोर्ट्स आदि से भी झील में की जाने वाली गतिविधियों के बारे में पूछा है।


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