हंसता हुआ धर्म

By: Jun 9th, 2018 12:05 am

ओशो

कृष्ण का व्यक्तित्व बहुत अनूठा है। अनूठेपन की पहली बात तो यह है कि कुष्ण हुए तो अतीत में, लेकिन हैं भविष्य के। अभी भी कृष्ण मनुष्य की समझ से बाहर हैं। भविष्य में ही यह संभव हो पाएगा कि कृष्ण को हम समझ पाएं। इसके कुछ कारण हैं। सबसे बड़ा कारण तो यह है कि कृष्ण अकेले ही ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म की परम गहराइयों और ऊंचाइयों पर होकर भी गंभीर नहीं हैं, उदास नहीं हैं, रोते हुए नहीं हैं। कृष्ण अकेले ही नाचते हुए व्यक्ति हैं। हंसते हुए, गीत गाते हुए। अतीत का सारा धर्म दुखवादी था। कृष्ण को छोड़ दें, तो अतीत का सारा धर्म उदास, आंसुओं से भरा हुआ था। हंसता हुआ धर्म मर गया है और पुराना ईश्वर, जिसे हम अब तक ईश्वर समझते थे, जो हमारी धारणा थी ईश्वर की, वह भी मर गई है। जीसस के संबंध में कहा जाता है कि वह कभी हंसे नहीं। शायद जीसस का यह उदास व्यक्तित्व और सूली पर लटका हुआ उनका शरीर ही हम दुखी चित्त लोगों के बहुत आकर्षण का कारण बन गया। महावीर या बुद्ध बहुत गहरे अर्थों में इस जीवन के विरोधी हैं। कोई और जीवन है परलोक में, कोई मोक्ष है, उसके पक्षपाती हैं। समस्त धर्मों ने दो हिस्से कर रखे हैं जीवन के एक वह जो स्वीकार योग्य है और एक वह जो इनकार के योग्य है। कृष्ण अकेले ही इस समग्र जीवन को पूरा स्वीकार कर लेते हैं। जीवन की समग्रता की स्वीकृति उनके व्यक्तित्व में फलित हुई है। इसलिए इस देश ने और सभी अवतारों को आंशिक अवतार कहा है, कृष्ण को पूर्ण अवतार कहा है। राम भी अंश ही हैं परमात्मा के, लेकिन कृष्ण पूरे ही परमात्मा हैं और यह कहने का, यह सोचने का, ऐसा समझने का कारण है और वह कारण यह है कि कृष्ण ने सभी कुछ आत्मसात कर लिया है। अल्बर्ट श्वीत्जर ने भारतीय धर्म की आलोचना में एक बड़ी कीमती बात कही है और वह यह कि भारत का धर्म जीवन निषेधक, लाइफ निगेटिव है। यह बात बहुत दूर तक सच है यदि कृष्ण को भुला दिया जाए और यदि कृष्ण को भी विचार में लिया जाए तो यह बात एकदम ही गलत हो जाती है और श्वीत्जर यदि कृष्ण को समझते तो ऐसी बात न कह पाते, लेकिन कृष्ण की कोई व्यापक छाया भी हमारे चित्त पर नहीं पड़ी है। वे अकेले दुख के एक महासागर में नाचते हुए एक छोटे से द्वीप हैं। या ऐसा हम समझें कि उदास, निषेध,दमन और निंदा के बड़े मरुस्थल में एक बहुत छोटे से नाचते हुए मरूद्यान हैं। कृष्ण अकेले हैं, जो शरीर को उसकी समस्तता में स्वीकार कर लेते हैं, उसकी टोटलिटी में। यह एक आयाम में नहीं, सभी आयाम में सच है। शायद कृष्ण को छोड़कर। कृष्ण को छोड़कर और पूरे मनुष्यता के इतिहास में एक दूसरा आदमी है, जिसके बाबत यह कहा जाता है कि वह जन्म लेते ही हंसा। सभी बच्चे रोते हैं। एक बच्चा सिर्फ मनुष्य जाति के इतिहास में जन्म लेकर हंसा। यह सूचक है इस बात का कि अभी हंसती हुई मनुष्यता पैदा नहीं हो पाई और कृष्ण तो हंसती हुई मनुष्यता को ही स्वीकार हो सकते हैं। इसलिए कृष्ण का बहुत भविष्य है। पुराना धर्म सिखाता था आदमी को दमन और सप्रेशन।

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