हफ्ते का खास दिन

By: Jun 3rd, 2018 12:05 am

विश्व पर्यावरण दिवस

5 जून

विश्व पर्यावरण दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा सकारात्मक पर्यावरण कार्य हेतु दुनिया भर में मनाया जाने वाला  सबसे बड़ा उत्सव है। पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टाकहोम स्वीडन में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया। इसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य किया। इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का जन्म हुआ तथा प्रति वर्ष 5 जून, को पर्यावरण दिवस आयोजित करके नागरिकों को प्रदूषण की समस्या से अवगत कराने का निश्चय किया गया। तथा इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाते हुए राजनीतिक चेतना जागृत करना और आम जनता को प्रेरित करना था। उक्त गोष्ठी में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति एवं उसका विश्व के भविष्य पर प्रभाव विषय पर व्याख्यान दिया था। पर्यावरण-सुरक्षा की दिशा में यह भारत का प्रारंभिक कदम था। तभी से हम प्रति वर्ष 5 जून, को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते आ रहे हैं।

19 नवंबर, 1986 से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। तदनुसार जल, वायु, भूमि इन तीनों से संबंधित कारक तथा मानव, पौधों, सूक्ष्म जीव, अन्य जीवित पदार्थ आदि पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं। भले ही इस अवसर पर बड़े-बड़े व्याख्यान दिए जाएं, हजारों पौधा-रोपण किए जाएं और पर्यावरण संरक्षण की झूठी कसमें खाईं जाएं, पर इस एक दिन को छोड़ शेष 365 दिन प्रकृति के प्रति हमारा अमानवीय व्यवहार इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि हम पर्यावरण के प्रति कितने उदासीन और संवेदन शून्य हैं। आज हमारे पास शुद्ध पेयजल का अभाव है, सांस लेने के लिए शुद्ध हवा कम पड़ने लगी है। जंगल कटते जा रहे हैं, जल के स्रोत नष्ट हो रहे हैं, वनों के लिए आवश्यक वन्य प्राणी भी विलीन होते जा रहे हैं।

भारत की सत्तर प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। अब वह भी शहरों में पलायन हेतु आतुर है जबकि शहरी जीवन नारकीय हो चला है। वहां हरियाली का नामोनिशान नहीं है, बहुमंजिली इमारतों के जंगल पसरते जा रहे हैं। शहरी घरों में कुएं नहीं होते, पानी के लिए बाहरी स्रोत पर निर्भर रहना पड़ता है। गावों से पलायन करने वालों की झुग्गियां शहरों की समस्याएं बढ़ाती हैं। धरती का तापमान निरंतर बढ़ रहा है, इसलिए पशु-पक्षियों की कई प्रजातियां लुप्त हो गई हैं। जंगलों से शेर, चीते, बाघ आदि गायब हो चले हैं। भारत में 50 करोड़ से भी अधिक जानवर हैं, जिनमें से पांच करोड़ प्रति वर्ष मर जाते हैं और साढ़े छरू करोड़ नए जन्म लेते हैं। वन्य प्राणी प्राकृतिक संतुलन स्थापित करने में सहायक होते हैं। उनकी घटती संख्या पर्यावरण के लिए घातक है। जैसे गिद्ध जानवर की प्रजाति वन्य जीवन के लिए वरदान है पर अब 90 प्रतिशत गिद्ध मर चुके हैं इसलिए देश के विभिन्न भागों में सड़े हुए जानवर दिख जाते हैं। जबकि औसतन बीस मिनट में ही गिद्धों का झुंड एक बड़े मृत जानवर को खा जाता था। पर्यावरण की दृष्टि से वन्य प्राणियों की रक्षा अनिवार्य है। इसके लिए सरकार को वन-संरक्षण और वनों के विस्तार की योजना पर गंभीरता से कार्य करना होगा। वनों से लगे हुए ग्रामवासियों को वनीकरण के लाभ समझा कर उनकी सहायता लेनी होगी। मारे जंगल नए सिरे से विकसित हो पाएंगे जिसकी नितांत आवश्यकता है।

पृथ्वी के सभी प्राणी एक-दूसरे पर निर्भर है तथा विश्व का प्रत्येक पदार्थ एक-दूसरे से प्रभावित होता है। इसलिए और भी आवश्यक हो जाता है कि प्रकृति की इन सभी वस्तुओं के बीच आवश्यक संतुलन को बनाए रखा जाए। इस 21वीं सदी में जिस प्रकार से हम औद्योगिक विकास और भौतिक समृद्धि की ओर बढ़े चले जा रहे हैं, वह पर्यावरण संतुलन को समाप्त करता जा रहा है। अनेकानेक उद्योग-धंधों, वाहनों तथा अन्यान्य मशीनी उपकरणों द्वारा हम हर घड़ी जल और वायु को प्रदूषित करते रहते हैं। वायुमंडल में बड़े पैमाने पर लगातार विभिन्न घटक औद्योगिक गैसों के छोड़े जाने से पर्यावरण संतुलन पर अत्यंत विपरीत प्रभाव पड़ता रहता है।

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