हिंदू धर्म के ऐसे रहस्य जो अनसुलझे हैं 

By: Jun 23rd, 2018 12:05 am

महाभारत युद्ध में भगवान कृष्ण के पास सुदर्शन चक्र था। यह सुदर्शन चक्र कहां से आया था और चक्रों का जन्मदाता कौन था? क्या आज भी इस तरह का अस्त्र बनाया जा सकता है? ऐसे कई सवाल हैं…

-गतांक से आगे...

कहां से आया सुदर्शन चक्र? : कहते हैं कि सुदर्शन चक्र एक ऐसा अचूक अस्त्र था कि जिसे छोड़ने के बाद यह लक्ष्य का पीछा करता था और उसका काम तमाम करके वापस छोड़े गए स्थान पर आ जाता था। इस चक्र को विष्णु की तर्जनी अंगुली में घूमते हुए बताया जाता है। सबसे पहले यह चक्र उन्हीं के पास था। पुराणों के अनुसार विभिन्न देवताओं के पास अपने-अपने चक्र हुआ करते थे। सभी चक्रों की अलग-अलग क्षमता होती थी और सभी के चक्रों के नाम भी होते थे। महाभारत युद्ध में भगवान कृष्ण के पास सुदर्शन चक्र था। यह सुदर्शन चक्र कहां से आया था और चक्रों का जन्मदाता कौन था? क्या आज भी इस तरह का अस्त्र बनाया जा सकता है? या कि यह एक चमत्कारिक शक्ति से ही संचालित होता था, किसी मशीन द्वारा नहीं? ऐसे कई सवाल हैं जिनका रहस्य अभी भी बरकरार है। हालांकि आजकल ऐसी मिसाइलें बनने लगी हैं, जो लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आती हैं, लेकिन चक्र जैसा अस्त्र तो सचमुच ही अद्भुत है।

रस्सी का जादू :  आज पश्चिमी देशों में तरह-तरह की जादू-विद्या लोकप्रिय है और समाज में हर वर्ग के लोग इसका अभ्यास करते हैं। एक समय था, जब भारत में जादूगरों की भरमार थी। इस देश में एक से एक जादूगर, सम्मोहनविद, इंद्रजाल, नट, सपेरे और करतब दिखाने वाले होते थे। बंगाल का काला जादू तो विश्वप्रसिद्ध था। यूरोप की कल्पना में भारत सदा से बेहिसाब संपत्ति और अलौकिक घटनाओं का एक अविश्वसनीय देश रहा है, जहां बुद्धिमान, जादूगर, सिद्ध आदि व्यक्तियों की संख्या सामान्य से कुछ अधिक थी। विदेशी भ्रमणकर्ताओं और व्यापारियों ने भारत से कई तरह का जादू सीखा और उसे अपने देश में ले जाकर विकसित किया। बाद में इसी तरह के जादू का इस्तेमाल धर्म प्रचार के लिए किया गया। आजकल भारत जादू के मामले में पिछड़ गया है। एक समय था, जब सोवियत संघ और रोम में जादूगरों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और हजारों जादूगरों का कत्ल कर दिया गया था, लेकिन आजकल अमरीका और यूरोप के कई देशों में आज भी जादूगरों की धूम है। भारत में सड़क या चौराहे पर जादूगर एक जादू दिखाते थे जिसे रस्सी का जादू या करतब कहा जाता था। बीन या पुंगी की धुन पर वह रस्सी सांप के पिटारे से निकलकर आसमान में चली जाती थी और जादूगर उस हवा में झूलती रस्सी पर चढ़कर आसमान में कहीं गायब हो जाता था। अंग्रेजों के काल में किसी ने यह जादू दिखाया था, उसके बाद से इस जादू के बारे में सुना ही जाता है। अब इसे दिखाने वाला कोई नहीं है। यही कारण है कि इस जादू को दिखाना अब किसी भी जादूगर के बस की बात नहीं रही। यह विद्या लगभग खो-सी गई है। इसके खो जाने के कारण अब यह संदेह किया जाता है कि कहीं ऐसा जादू दिखाया भी जाता था या नहीं? इस तरह हिंदू धर्म से जुड़े अनेक ऐसे रहस्य हैं जिन्हें सुलझाना अभी बाकी है। इन रहस्यों को लेकर लोकमानस में हमेशा से जिज्ञासा बनी हुई है। इन रहस्यों को कब तक सुलझा लिया जाएगा, इसके बारे में अभी कुछ स्पष्ट रूप से कहना बहुत मुश्किल है। फिर भी आशा की जाती है कि इन रहस्यों को जल्द ही सुलझा लिया जाएगा। वैसे श्री कृष्ण के परलोक गमन व श्री राम के देहावसान के रहस्यों को सुलझा लिया गया है। हिंदू धर्म के क्षेत्र में रहस्यों को लेकर यदा-कदा अनुसंधान होते रहते हैं। इन्हीं अनुसंधानों ने अनेक रहस्यों को सुलझाया है और आशा की जानी चाहिए कि जो अनुसंधान चल रहे हैं, उनके परिणामस्वरूप वे रहस्य भी सुलझा लिए जाएंगे जो अभी तक न केवल आम लोगों, बल्कि अनुसंधानकर्ताओं के लिए भी पहेली बने हुए हैं। अनुसंधान के जरिए सुलझाया गया एक मसला यह है कि रामसेतु था अथवा नहीं? नया अनुसंधान बताता है कि रामायण में परिकल्पित रामसेतु वास्तव में आज भी मौजूद है जो तमिलनाडू के एक क्षेत्र से लंका तक जाता है। इस बात के प्रमाण अमरीका के अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो की ओर से जुटाए गए चित्रों में भी मिले हैं। इसलिए  अब यह नहीं कहा जा सकता कि रामसेतु महज  एक कल्पना मात्र है। हिंदू धर्म के ग्रंथों में की  गई परिकल्पनाएं धीरे-धीरे वास्तविक साबित  होने लगी हैं। आशा है कि आगामी दिनों में कुछ और परिकल्पनाएं वास्तविक साबित होंगी।     -समाप्त


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