40 वर्षों तक चला शंबर- दिवोदास का युद्ध

By: Jun 13th, 2018 12:05 am

अपनी भूमि के लिए, अपने अधिकारों के लिए उन्होंने सदा अपने प्रतिद्वंद्वियों से युद्ध किया। शंबर- दिवोदास युद्ध जो 40 वर्षों तक चलता रहा इसका प्रमाण है, जिसमें दोनों ओर से सब कुछ स्वाह करने की होड़ लगी हुई थी। नाग जाति कितनी प्रबल थी, यह इस बात से स्पष्ट हो जाता है…

स्त्रियों का नाग समाज में कोई विशेष स्थान नहीं था। इनका प्रयोग केवल कृषि में पुरुषों की सहायक के रूप में किया जाता था। नागों के संबंध में एक बात स्पष्ट है कि उनकी वृत्ति सात्विक की अपेक्षा राजसिक अधिक थी। अपनी भूमि के लिए, अपने अधिकारों के लिए उन्होंने सदा अपने प्रतिद्वंद्वियों से युद्ध किया। शंबर दिवोदास युद्ध जो 40 वर्षों तक चलता रहा इसका प्रमाण है, जिसमें दोनों ओर से सब कुछ स्वाह करने की होड़ लगी हुई थी। नाग जाति कितनी प्रबल थी, यह इस बात से स्पष्ट हो जाता है। ऋग्वेद से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि दिवोदास, सुदास और इंद्र, शंगर को रणक्षेत्र में परास्त नहीं कर सके तो उन्हें उसे सोते हुए को मारना पड़ा। आज भी हिमाचल में नागों के वंशज डोगरा वीर, विश्व के अद्वितीय योद्धा हैं, लेकिन इस समय हिमाचल में नाग जाति कोई भिन्न जाति नहीं है।

खश: किन्नर-किरात और नाग जातियों के अलावा एक और शक्तिशाली जाति इस क्षेत्र में रही। यह खश जाति थी। यह जाति पूरे हिमाचल में फैली  मालूम होती है। नागों ने अपनी कोई निशानी, कोई पृथक दैहिक चिन्ह इस क्षेत्र में नहीं छोड़ा है, जबकि खशों की आज भी प्रायः सारे हिमाचल में बस्तियां फैली हैं। इस इलाके में खशों के गांव के गांव मिलते हैं। इस बात का पता उनके द्वारा स्थापित अनेक उपनिवेशों जैसे पब्बर उपत्यका में खशधार, खुरशाली और खशकोड़ी या खशकंडी आदि अनेक गांवों से चलता है। हिमाचल में खशों से संबंधित कतिपय परंपराएं हैं। इनका वर्णन मनुस्मृति, महाभारत और पुराणों में भी मिलता है। मनु ने खशों को क्षत्रिय से शुद्र होने का फतवा दिया है। इधर, पुराण और परंपराएं इन्हें स्वदेशी मानती हैं, जिनके आदि पुरुष किसी ऋषि को माना जाता है। विष्णु पुराण में लिखा है कि कश्यप ऋषि की क्रोधवशा नामक पत्नी की संतान ही कश है। महाभारत में उल्लेख मिलता है कि ऋषि वशिष्ठ की गाय नंदिनी ने गाधिसुत विश्वामित्र से अपनी रक्षा करने के लिए कश आदि अनेक जातियों को अपने भिन्न-भिन्न अंगों से उत्पन्न किया। वायु-पुराण के अनुसार ऋषि वशिष्ठ ने ही राजा सागर के हाथों खशों के समूल नाश को रोका था। महाभारत के द्रोण पर्व से संकेत मिलता है कि खश महाभारत के युद्ध में दुर्योधन की ओर से लड़े थे। आधुनिक खोज के परिणाम इससे भिन्न हैं। लगभग सभी विद्वान यह मानते हैं कि खश कहीं बाहर से भारत मेंं प्रविष्ट हुए हैं। खशों को यहां की  किन्नर-किरात नाग और दूसरी आदि जातियों का संकेत हमें कुल्लू के निरमंड नामक स्थान पर मनाई जाने वाली बूढ़ी दीवाली से भी मिलता है। बूढ़ी दियाउड़ी के नाम से होने वाला सह त्योहार नाग-खश संघर्ष की ओर ईशारा करता है। बूढ़ी दियाउड़ी त्योहार दीवाली के ठीक एक मास बाद मघर मास की अमावस्या को मानाया जाता है।

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