अंततः सिने पर्यटन की ओर

By: Jul 13th, 2018 12:10 am

नीतियों की गुंजाइश में हिमाचल ने फिल्म का क्षेत्र चुनकर एक पुरानी मांग से पर्दा हटाया है। ऐसा लगता है कि अंततः सिने पर्यटन में चर्चित रहे हिमाचल ने गंभीरता से उद्योग के बेहतर स्वरूप को अंगीकार करने का मन बनाया है। विषय और विविधता चुनते हुए अतिरिक्त मुख्य सचिव डा. श्रीकांत बाल्दी ने इस दिशा का प्रारंभिक अवलोकन किया और पहली बार इस क्षेत्र में हिमाचल कुछ कर गुजरने के अंदाज में दिखाई दे रहा है। जाहिर है इससे हिमाचल की प्रस्तुति, संभावना तथा क्षमता में एक और तिलक लगेगा। अतीत में भी ऐसे इरादे जाहिर हुए थे, लेकिन वर्षों बाद भी कोई स्पष्ट रोड मैप नहीं बना और इच्छाशक्ति केवल क्षेत्रवाद के पैमाने देखती रही। फिल्म या सिने पर्यटन नीति के मायने जब तक लोक कलाकार से सीधे नहीं जुड़ेंगे, तब तक किसी बड़े बदलाव की आशा नहीं की जा सकती। कुछ निर्माताओं ने मिट्टी की खुशबू से कहानियां चुनीं और हिमाचली बोलियों में फिल्में बनाने का जोखिम उठाया, लेकिन सरकार और समाज ने दूरी बनाए रखी। फिल्म नीति के अभाव में हिमाचली परिप्रेक्ष्य में हुए प्रयास का न तो कोई विश्लेषण और न ही बाजार विकसित हुआ। यह दीगर है कि इस बीच कुछ फिल्म समारोहों के आयोजन से हिमाचली निर्माताओं का परिचय सार्वजनिक हुआ और बहस ने जन्म लिया। धर्मशाला और शिमला के फिल्म समारोह इस दिशा में हिमाचली करवटों का ऐसा आकाश हैं, जहां स्थानीय परिप्रेक्ष्य में भी कई लोग गंभीरता और प्रतिबद्धता से कार्य कर रहे हैं। इस दौरान हिमाचली विषयों पर आधारित लघु फिल्में तथा डाक्यूमेंटरी सामने आई हैं, जबकि कुछ विषयों की पृष्ठभूमि तथा निर्देशन की खासियत ने इन्हें राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी नवाजा है। ऐसे में फिल्म नीति के साथ-साथ विभागीय तौर पर इस अभियान को सफल बनाने के लिए निजी क्षेत्र तथा स्थानीय फिल्मी हस्तियों की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए। सिने पर्यटन को अगर सशक्त तथा व्यवस्थित करना है, तो इसे स्वायत्त संस्था की तरह विकसित करना होगा। स्थानीय कलाकार, निर्माता तथा निर्माण गतिविधियों में शरीक तकनीकी व अन्य सहयोगियों के करियर के लिए अलग से सरकारी एजेंसी का गठन अपरिहार्य है। हिमाचल में भाषा विभाग व संबंधित अकादमी से अलग कला, संस्कृति व फिल्म प्रोत्साहन विभाग या बोर्ड का गठन करना चाहिए। दूसरी ओर सिने पर्यटन की मौजूदा गतिविधियों के साथ अधोसंरचना विकास के नजरिए से संबंधित विभाग तथा निगम की परिधि और सुदृढ़ करनी पड़ेगी। देश के लगभग सभी छोटे-बड़े राज्यों ने सिने पर्यटन को प्रभावशाली ढंग से पेश करने के लिए फिल्म पालिसी का निर्धारण किया है। उत्तराखंड ने भी 2015 से पालिसी के तहत फिल्म शूटिंग के क्षेत्र में पर्यटक स्थलों को नई परिभाषा दी है। फिल्म उद्योग के साथ-साथ तालमेल बनाते हुए गोवा ने शूटिंग के लिए अति सुविधाजनक माहौल व व्यवस्था कायम की है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने पिछले साल ‘मोस्ट फिल्म फें्रडली अवार्ड’ के तहत मध्य प्रदेश को चुना, तो इसकी वजह राज्य की अधोसंरचना, प्रोत्साहन, मार्केटिंग, प्रचार तथा मुकम्मल डाटाबेस रहा। ऐसा नहीं है कि फिल्म उद्योग की हिमाचल में रुचि कम हो रही है या प्रदेश के भीतर बालीवुड के संपर्क को पुख्ता करते फिल्म समन्वयक नहीं हैं। निजी प्रयासों से बालीवुड के संपर्कों ने शिमला, मनाली, धर्मशाला, डलहौजी, गरली-परागपुर सरीखे कई स्थलों को बड़े पर्दे पर पेश किया है, तो अब इस शृंखला में नीतिगत निर्णय से एक व्यापक योजना पर अमल किया जा सकता है। सिने पर्यटन पालिसी का एक पहलू शूटिंग से जुड़ता है, जबकि इसके दायरे में मनोरंजन, थियेटर, मानव संसाधन की दृष्टि से युवा प्रशिक्षण तथा माकूल अधोसंरचना का विस्तार चाहिए। हिमाचल के नवनिर्माण में शहरी बस स्टैंड परियोजनाओं के साथ मल्टीपलेक्स के जरिए न केवल छविगृहों का विस्तार होगा, बल्कि सरकारी दखल से सिने प्रेमियों को सस्ती दरों पर टिकट मुहैया कराने के नियम भी लागू हों। हिमाचल में फिल्म शूटिंग के लिहाज से वांछित भारी उपकरणों की आपूर्ति जहां आवश्यक है, वहीं फिल्म सिटी की परिकल्पना से रोजगार भी बढ़ेगा। गरली-परागपुर की धरोहर संपत्तियों और कोठियों की वास्तु कला पर जिस तरह बालीवुड मोहित है, उसे देखते हुए वहां केवल एक स्टूडियो स्थापित कर देने से फिल्म सिटी की प्राथमिक आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं। इसी के साथ फिल्म एवं टीवी प्रशिक्षण संस्थान शुरू करके हिमाचली युवाओं की क्षमता को सीधे रोजगार मुहैया हो पाएगा। उम्मीद है सिने पर्यटन की हिमाचली परिकल्पना हकीकत में फिल्म जगत को सुविधाजनक माहौल, वातावरण, उपकरण तथा माकूल अधोसंरचना उपलब्ध कराएगी।

 


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