अनसुलझे सवाल : भारतीय जनता की संरचना

By: Jul 14th, 2018 12:05 am

हाल ही में किए गए नवीनतम आनुवंशिक अध्ययनों में भारतीय जनसंख्या से वृहद नमूनों को लेकर और विश्लेषण के परिष्कृत तरीकों द्वारा यह सिद्ध किया गया है कि द्रविड़ वास्तव में उन आदि लोगों के वंशज हैं जो अफ्रीका से 70-80 हजार वर्ष पूर्व दक्षिण भारत में आए…

-गतांक से आगे…

भारत से बाहर आर्य भाषाएं हिंद-जर्मन भाषा समूह से संबंधित हैं जो कि किसी समय एक ही कबीले की भाषा थी और संसार की समस्त आर्य भाषाएं उसी भाषा से निकली हैं। द्रविड़ परिवार की भाषाएं तमिल, कन्नड़, मलयालम और तेलुगु हैं। इन भाषाओं के अनेक शब्द आर्य भाषाओं और संस्कृत के शब्द इन द्रविड़ भाषाओं में मिल गए हैं। आदिवासियों के बीच बोली जाने वाली बहुत सी बोलियां औष्ट्रिक (आग्नेय) भाषा समूह में वर्गीकृत की जाती हैं। नीग्रो के बाद आग्नेय, आग्नेय के बाद द्रविड़ और द्रविड़ों के बाद आर्य जाति के आगमन के पश्चात इस देश में सांस्कृतिक समन्वय का काम शुरू हुआ। भारतीय जनता की रचना आर्यों के आने के बाद लगभग पूरी हो गई और आज हम जिसे आर्य या हिंदू सभ्यता कहते हैं, उसकी नींव भी तभी पड़ गई थी। आर्यों ने जो जातियों और संस्कृतियों का समन्वय किया, उसी से आज के हिंदू-समाज व हिंदू-संस्कृति का विकास हुआ। बाद में आने वाले मंगोल, यूनानी, यूची, शक, आभीर, हूण और तुर्क इसी समन्वय में घुल-मिल कर विलीन हो गए। नीग्रो (सबसे पहले आने वाले) और आर्य (सबसे बाद में आने वाले) जातियों के बीच काफी लंबी समय की दूरी है, इसलिए आर्य सभ्यता में नीग्रो सभ्यता का कहां और कितना योगदान है, यह जानना आसान नहीं है। जब द्रविड़ भारत में आए, यहां आग्नेय जाति का बोलबाला था और कुछ नीग्रो जाति भी अस्तित्व में थीं। इसलिए यह अनुमान लगाया जाता है कि नीग्रो और आग्नेय की बहुत सी सांस्कृतिक बातें द्रविड़ों में मिल गईं, तदुपरांत द्रविड़-आर्य मिलन होने पर आर्य-सभ्यता में भी।

द्रविड़ और आर्य आक्रमण का मत

हाल ही में किए गए नवीनतम आनुवंशिक अध्ययनों में भारतीय जनसंख्या से वृहद नमूनों को लेकर और विश्लेषण के परिष्कृत तरीकों द्वारा यह सिद्ध किया गया है कि द्रविड़ वास्तव में उन आदि लोगों के वंशज हैं जो अफ्रीका से 70-80 हजार वर्ष पूर्व दक्षिण भारत में आए। इन अध्ययनों में आर्यों के आक्रमणकारी होने के सिद्धांत को भी गलत सिद्ध किया गया है। आर्य और द्रविड़ दोनों ही इस देश में अनंतकाल से रहते आए हैं और हमारे प्राचीन साहित्य में इस बात का प्रमाण नहीं मिलता कि ये दोनों जातियां बाहर से आईं या फिर इन दोनों के बीच कभी लड़ाइयां भी हुईं। रेस या नस्ल का सिद्धांत भारत में अंग्रेजों द्वारा लाया गया अन्यथा इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं मिलता कि आर्य व द्रविड़ एक-दूसरे को विजातीय समझते थे, बल्कि इनका धर्म, संस्कार, भाव और विचार सदियों से एक ही है। द्रविड़ों में आर्यों की तुलना में श्याम वर्ण की अधिकता है और ये मूलतः दक्षिण भारत में ही रहते हैं। इसी प्रकार स्थानीय विशेषता के बीच, उत्तर और दक्षिण के मंदिर, मूर्तियों, गानों-बजानों में समानता है। बहुत से विद्वान मानते हैं कि द्रविड़ प्राचीन विश्व की अत्यंत सुसभ्य जाति थी जिसने भारत में सभ्यता का आरंभ किया।

जबकि कुछ विद्वानों ने महर्षि वाल्मीकि, वेदव्यास, उपनिषद, भगवान महावीर, भगवान बुद्ध, गोस्वामी तुलसीदास जी आदि का अध्ययन करके निष्कर्षित किया है कि आर्य एक साधना-पद्धति है और द्रविड़, अंग, बंग, पंजाब आदि की तरह ही विविध भू-भागों के संबोधन हैं, अर्थात द्रविड़ नामक जाति ही नहीं है और आर्य-द्रविड़ एक ही हैं। आधुनिक भारत की बात करें तो यहां पर कई जातियां, समुदाय, धर्म, संस्कृतियां व सभ्यताएं हैं। विविधता में एकता भारत की पहचान रही है। यहां हिंदू, सिख, मुसलमान, बौद्ध और ईसाई मिलजुल कर रहते हैं। इन समुदायों के अलावा भी कई समुदाय भारत में रहते हैं, जैसे पादरी आदि। जैन धर्म के लोग भी भारत में हैं। भाषा की दृष्टि से देखें तो यहां हिंदी, उर्दू, अरबी, फारसी, संस्कृत, पंजाबी, हरियाणवी, डोगरी, पहाड़ी, तमिल, तेलगू, कन्नड़, मराठी, गुजराती, बंगाली, उडि़या, असमी, मैथिली, भोजपुरी तथा अन्य अनेक प्रांतीय भाषाएं व बोलियां बोली जाती हैं। हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है।

यह वह भाषा है जो भारत के अधिकांश प्रांतों में बोली व समझी जाती है। विविध भाषा भाषियों के बीच हिंदी ही संपर्क की भाषा है। इन भाषाओं के अलावा यहां अंग्रेजी बोलने वाले लोगों की भी

कमी नहीं है। अंग्रेजी का प्रभाव इतना है कि कोर्ट-कचहरी की भाषा आज भी आजादी के इतने वर्षों बाद अंग्रेजी ही बनी हुई है। इस विविधता के बावजूद भारत में एकता देखी जाती है, जो यहां की अनन्य विशेषता है।                               -समाप्त


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