अहंकार का अर्थ

By: Jul 14th, 2018 12:05 am

ओशो

सहजयोग का अर्थ है प्राकृतिक, स्वाभाविक. जो सबके लिए सहज हो। सुनने में लगता है कि बड़ा आसान है, लेकिन यह सबसे कठिन है। सहज का अर्थ है हम वास्तव में जो हैं, वही बाहर भी दिखें, लेकिन हर मनुष्य जो है, उससे विपरीत दिखने की चेष्टा करता है। जो वह है, उससे उलट का दावा करना चाहता है। अहंकार यही है। अहंकार का अर्थ है कि हम कुछ विशिष्ट हैं औरों से अलग हैं। जैसे कोई पत्ती सोचे कि वह वृक्ष से अलग है। हम ऐसे ही धारणा से बंध गए हैं कि हम अस्तित्व से अलग हैं और यही हमारे दुःख का कारण है।

योग की भाषा में कहें, तो पांचवें चक्र पर जो मन है, अहंकार, चित्त और बुद्धि उसी की अवस्थाएं हैं। सहज का अर्थ है, अहंकार के इस पार आ जाओ अथवा उस पार चले जाओ। अहंकार के उस पार क्या है? पांचवें चक्र के ऊपर जो छठा चक्र है, आज्ञा चक्र। वह अस्मिता में, इंडिविजुअल्टी में, प्रेजेंस में, साक्षी में ले जाता है। इसे यूं समझें कि जब तक आपके भीतर ‘मैं हूं’ का भाव है, तब तक अहंकार मौजूद है। इसमें से यदि ‘मैं’ को गिरा दें और केवल ‘हूं’ बच जाए तो आप अस्मिता के, निजता के, इंडिविजुअल्टी के तल पर आ जाते हैं। हूं का भाव आते ही आप साकार से ऊपर उठ जाते हैं। शरीर, विचार, मन, बुद्धि और अहंकार सब साकार के ही हिस्से हैं। हम असहज हैं क्योंकि हमने स्वयं को साकार का हिस्सा मान लिया है। जैसे ही आप स्वयं को अस्तित्व का हिस्सा मानते हैं, आप सहज हो जाते हैं। आपने गौर किया होगा, जब कोई दूसरा मौजूद नहीं होता, तब आप अत्यंत सहज महसूस करते हैं। अपने बाथरूम में भी आप एकदम सहज होते हैं। जैसे कोई बच्चा दर्पण के सामने करता है, आप भी गुसलखाने में वैसे ही अपना मुंह बनाते-बिगाड़ते हैं, एकदम सहज। अपने स्नानागार में आप जो कुछ भी करते हैं, वह सहजयोग ही है और जैसे आप बाथरूम के एकांत में होते हैं, अगर वैसे ही संसार में रह सकें, तो आप सहजयोगी बन सकते हैं। यही कसौटी है। इस पैमाने पर आप कह सकते हैं कि सारे बच्चे सहजयोगी हैं क्योंकि वे चिंता नहीं करते, अपनी मौज में होते हैं, अपने स्वभाव में, अपनी सहजता में जीते हैं। इसलिए छठे चक्र पर यानी अपनी निजता में आते ही आप सुखी हो जाते हैं। जब भी आप अपने स्वभाव में होंगे, आप सुखी होंगे, जब भी आप अहंकार में होंगे, दुःखी होंगे। मनुष्य को परमात्मा ने सहज रूप से सुखी बनाया है, लेकिन हम न सुखी दिखते हैं न सुखी होते हैं। इसका एकमात्र कारण यह है कि हम अपने स्वभाव से नीचे गिर गए हैं। हमारा स्वभाव अस्मिता का है, साक्षी का है, लेकिन हम अहंकार में पड़कर खुद ही सुख से दूर हो गए हैं। आज के दौर में हम इस कद्र व्यस्त रहते हैं कि हमारा स्वभाव असहज  हो गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमारा अहंकार हमारे ज्ञान पर हावी हो जाता है और  हम अपनी सोच में बदलाव लाने की बजाय और उलझ जाते हैं। हर मनुष्य बाहर से कुछ और होने का दिखावा करता है, जबकि असल जिंदगी में वह बिलकुल विपरीत दिशा में जा रहा होता है। ईश्वर ने हमें जो जिंदगी दी है उसमें हम इतना बदलाव कर देते हैं कि असली सुख का बोध क्या है, इसका हमें पता ही नहीं चलता।

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App