आयुर्वेद को मिले सरकार की संजीवनी

By: Jul 10th, 2018 12:05 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

भारत में आज भी शहरी और ग्रामीण आबादी का 50 फीसदी हिस्सा निजी डाक्टरों और प्राइवेट क्लीनिक तथा अस्पतालों में महंगा इलाज करवाने के लिए अभिशप्त है। इस तथ्य के आधार पर भी लोगों को सस्ती और उचित स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें, आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली को बढ़ावा देने की जरूरत है…

भारत में प्राचीनकाल से ही चिकित्सा विज्ञान की उन्नत एवं श्रेष्ठ परंपरा रही है। समय- समय पर अनेकों ऋषियों तथा साधकों ने आयुर्वेद ज्ञान को अपनी तपस्या, साधना और शोध से ऊंचाइयों पर प्रतिष्ठित करने में अपना अतुलनीय योगदान दिया है। जिनमें धन्वंतरि, प्रजापति, अश्विनी कुमार, निमि, अजेय, दिवोदास, सुश्रुत,जीवक, चरक, नागार्जुन, शालिहौत्र, माध्वाकार और भावमित्र आदि प्रमुख हैं। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि नालंदा और तक्षशिला विश्विद्यालयों में आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र प्रमुख रूप से पढ़ाया जाता था और यहां सुदूर चीन, तिब्बत, जापान, कोरिया और मंगोलिया से छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते थे। भारत में आयुर्वेद का इतिहास हजारों साल पुराना है। आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ है ‘जीवन का ज्ञान’। प्राचीन भारतीय आयुर्वेद ज्ञान परंपरा का संरक्षण, अगली पीढ़ी को हस्तांतरण एवं इसके विकास को गति मिलती रहे, इस दिशा में जिला कांगड़ा के बैजनाथ उपमंडल के पपरोला कस्बे में स्थापित राजीव गांधी स्नातकोत्तर आयुर्वेदिक महाविद्यालय पिछले चार दशकों से सेवारत है।

1972 में हिम आयुर्वेदिक कालेज के रूप में अस्तित्व में आने के बाद 3 मार्च, 1978 को तत्कालीन हिमाचल सरकार ने इस महाविद्यालय का अधिग्रहण किया और 1979 में इसे हिमाचल प्रदेश विश्विद्यालय से संबद्धता मिली। प्रदेश के इस इकलौते आयुर्वेदिक शिक्षण संस्थान को भारत सरकार के सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन से मान्यता प्राप्त है और यहां बीएएमएस की स्नातक उपाधि के अतिरिक्त 14 में से 11 विभागों द्वारा 39 विद्यार्थियों को स्नातकोत्तर उपाधि प्रदान की जा रही है। हिमाचल औषधीय जड़ी बूटियों से समृद्ध प्रदेश है और दिन- प्रतिदिन आयुर्वेद की बढ़ती स्वीकार्यता के चलते आज बड़ी संख्या में निजी क्षेत्र की कंपनियां आयुर्वेद दवा तथा उपकरण निर्माण की दिशा में काम कर रही हैं और इस क्षेत्र में भी रोजगार की असीम संभावनाएं हैं। ब्लूमबर्ग संस्था द्वारा संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन के संकलित आंकड़ों के आधार पर 2017 में विभिन्न देशों के हैल्थ स्कोर के अनुसार दुनिया के सर्वाधिक स्वस्थ देशों की सूची में इटली पहले स्थान पर, तो भारत 103वीं पायदान पर खड़ा है।

भारत में आज भी शहरी और ग्रामीण आबादी का 50 फीसदी हिस्सा निजी डाक्टरों और प्राइवेट क्लीनिक तथा अस्पतालों में महंगा इलाज करवाने के लिए अभिशप्त है। इस तथ्य के आधार पर भी लोगों को सस्ती और उचित स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें, आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली को बढ़ावा देने की जरूरत है। हिमाचल प्रदेश के वर्ष 2018-19 के बजट में आयुर्वेद विभाग के लिए 263 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है। वर्तमान समय में हिमाचल प्रदेश में 32 आयुर्वेदिक अस्पताल और 118 आयुर्वेदिक डिस्पेंसरियां हैं। प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के एक सर्वे के अनुसार 10 से कम रोजाना ओपीडी वाली आयुर्वेदिक डिस्पेंसरियों को बंद कर वहां के स्टाफ  को अन्यत्र शिफ्ट करने की योजना है, जबकि आवश्यकता इस बात की है कि जगह जगह कम आबादी वाले इलाकों में स्वास्थ्य केंद्र खोलने के बजाय एक केंद्रीकृत स्थान पर समस्त सुविधाओं से परिपूर्ण अस्पताल खोले जाएं। बैजनाथ उपमंडल में पपरोला स्थित आयुर्वेदिक स्नातकोत्तर महाविद्यालय का अपना गौरवशाली इतिहास एवं परंपरा रही है। 215 बिस्तरों वाले इस अस्पताल की श्रेष्ठ उपलब्धियां हैं तो वहीं कुछ समस्याएं एवं चुनौतियां भी हैं। इस संस्थान के अप्रैल 2017 से फरवरी 2018 के आंकड़े बताते हैं कि इस अवधि में ओपीडी में एक लाख दो हजार तीन सौ एक बीमारों ने अपनी जांच करवाई, जबकि इसी अवधि में 29 हजार 838 रोगियों को दाखिल कर उनका उपचार किया गया। ये आंकड़े इस स्वास्थ्य संस्थान के प्रति लोगों के विश्वास को प्रदर्शित करते हैं। इस अस्पताल में कुल स्वीकृत 75 में से 30 पद खाली चल रहे हैं, जिनमें रेडियोलॉजस्ट का पद भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके अभाव में यहां रखी मशीनें तथा उपकरण धूल फांक रहे हैं। ब्लड बैंक की स्थापना की जरूरत है। संस्थान का हर्बल गार्डन जोगिद्रनगर में है, जो दूर है। अपर्याप्त होस्टल सुविधाएं हैं, अपनी बस अथवा बड़े वाहन नहीं हैं।

स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों को मिलने वाला वजीफा बेहद कम है। आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारियों के वेतनमान को एलोपेथी डाक्टर्स के समान करने की जरूरत है। सुरक्षाकर्मियों की संख्या बढ़ाने तथा बाउंडरीवाल लगाने की दरकार है। कुछ पदों को प्राथमिकता के आधार पर भरने की जरूरत है। हेल्दी स्टेट्स प्रोग्रेसिव इंडिया स्वास्थ्य सूचकांक में केरल पहले तथा हिमाचल पांचवें स्थान पर है।


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