‘कर चले हम फिदा’ गाना बना कर रुला डाला था हिंदोस्तान

By: Jul 14th, 2018 12:06 am

पुण्यतिथि विशेष

वर्ष 1965 मे प्रदर्शित फिल्म ‘हकीकत’ में मोहम्मद रफी की आवाज में मदन मोहन के संगीत से सजा गीत ‘कर चले हम फिदा जानों तन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों’ आज भी श्रोताओं में देशभक्ति के जज्बे को बुलंद कर उनकी आंखें नम कर देता है। कहा जाता है कि मदनमोहन के एक गीत, आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे, दिल की ऐ धड़कन ठहर जा मिल गई मंजिल मुझे, से संगीत सम्राट नौशाद इस कदर प्रभावित हुए थे कि उन्होंने मदन मोहन से इस धुन के बदले अपने संगीत का पूरा खजाना लुटा देने की इच्छा जाहिर कर दी थी। मदन मोहन कोहली का जन्म 25 जून, 1924 को हुआ। उनके पिता राय बहादुर चुन्नी लाल फिल्म व्यवसाय से जुड़े हुए थे और बांबे टाकीज जैसे बडे फिल्म स्टूडियो में साझीदार थे। लेकिन अपने पिता के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का फैसला ले लिया और देहरादून में नौकरी शुरू कर दी। लेकिन कुछ समय के बाद उनका मन सेना की नौकरी से ऊब गया और वह नौकरी छोड लखनऊ आ गए और आकाशवाणी के लिए काम करने लगे। अपने सपनों को नया रूप देने के लिए मदन मोहन लखनऊ से मुंबई आ गए। संगीतकार के रूप में 1950 में प्रदर्शित फिल्म ‘आंखें’ के जरिए वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने मे सफल हुए। इस फिल्म के बाद लता मंगेशकर मदन मोहन की चहेती गायिका बन गईं और वह अपनी हर फिल्म के लिए लता मंगेशकर से ही गाने की गुजारिश किया करते थे। लता मंगेशकर भी मदनमोहन के संगीत निर्देशन से काफी प्रभावित थीं और उन्हें ‘गजलों का शहजादा’ कह कर संबोधित किया करती थीं। मदनमोहन के संगीत निर्देशन मे आशा भोंसले ने फिल्म मेरा साया के लिए झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में, गाना गाया जिसे सुनकर श्रोता आज भी झूम उठते हैं। 1957 में प्रदर्शित फिल्म देख कबीरा रोया में पार्श्वगायक मन्ना डे के लिए कौन आया मेरे मन के द्वारे जैसा दिल को छू लेने वाला संगीत देकर उन्होंने अपने बारे में प्रचलित धारणा पर विराम लगा दिया।  अपनी मधुर संगीत लहरियों से श्रोताओं के दिल में खास जगह बना लेने वाला यह सुरीला संगीतकर 14 जुलाई 1975 को इस दुनिया से अलिवदा कह गया। मदन मोहन के निधन के बाद 1975 में ही उनकी ‘मौसम’ और ‘लैला मजनू’ जैसी फिल्में प्रदर्शित हुईं, जिनके संगीत का जादू आज भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करता है। मदन मोहन के पुत्र संजीव कोहली ने अपने पिता की बिना इस्तेमाल की हुई 30 धुनें यश चोपडा को सुनाई जिनमें आठ का इस्तेमाल उन्होंने अपनी फिल्म ‘वीर जारा’ के लिए किया। ये गीत भी काफी लोकप्रिय हुए।


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