कविता

By: Jul 29th, 2018 12:04 am

बस

जलती हुई बस

सिसक कर पूछ रही है

मेरा कसूर तो बताओ

दंगा, आंदोलन, बंद

सबका शिकार

मैं ही क्यों?

मैं तो सबको सही मुकाम तक पहुंचाती हूं

फिर मेरी यात्रा और जीवन

खत्म क्यों कर दिया जाता है?

मेरी छोटी बहन

एंबुलेंस ने क्या कसूर किया था?

उसे भी खदेड़ दिया

और मरीज की जान

आंदोलन की भेंट चढ़ गई

मैंने तो विकलांग और महिला के लिए

आरक्षित सीटें छोड़ी हैं

आप तो सिर्फ  एक वर्ग तक सीमित हो

कितनी मनुहार के बाद

मुझे और मेरे रूट को पाया था

लेकिन जलाते वक्त

एक बार भी नहीं सोचा कि

अबकि गांव कैसे लौटेंगे?

जलती बस सिसक रही है

कोई सुनने वाला नहीं

वह सवाल कर रही है

मैं ही सबका शिकार क्यों बनती हूं?

 -कमलेश भारतीय, चंडीगढ़


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