गटर व गंध में पड़ा महान हास्य उर्दू शायर

By: Jul 29th, 2018 12:05 am

 

है बड़ सबसे बड़ा शायर कोई

उनसे पूछा तो ये बोले जामई

अपने मुंह से मैं भला कैसे कहूं हूं

दूसरे नंबर पे हैं इकबाल भी

हर भाषा के साहित्य में हंसोड़ कवि होते हैं और उर्दू में भी हैं। यूं तो उर्दू में सबसे बड़े हास्य कवि मुश्ताक अहमद यूसुफी माने जाते हैं, मगर उनके बाद जो नंबर आता है, वह पटना में जन्मे, असरार जामई का आता है। अभी हाल ही में असरार अपने घर से बाहर निकले तो एक कार दुर्घटना में उनका हाथ कुहनी से टूट गया। लेखक ने उन्हें डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने बताया कि हड्डी टूट गई है, जिसमें आप्रेशन के बाद तार डाल कर जोड़ा जाएगा। चूंकि उनकी आयु, 80 के ऊपर पहुंच चुकी है, डर के मारे उन्होंने आप्रेशन नहीं कराया और मात्र प्लास्टर से ही काम चलाने की सोची। उन्हें समझाया गया कि डरने की कोई आवश्यकता नहीं है और डाक्टर ने भी कह दिया है कि वह आप्रेशन के बाद ठीक हो जाएंगे, जामई साहब नहीं माने। वास्तव में, यह उम्र ही ऐसी होती है कि जिसमें आदमी को समझाना बड़ा मुश्किल काम होता है। आज इस महान हास्य शायर की स्थिति बड़ी दयनीय है। एक तो हाथ टूटा हुआ, दूसरे शारीरिक कमजोरी और टूटन क्योंकि अब उनसे चला भी नहीं जाता और उन्हें पकड़-पकड़ कर उनके तीसरे मंजिल के बटला हाउस फ्लैट से नीचे लाया जाता है :

पूछते वह कि असरार कौन है/कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या!

उनकी देखभाल के लिए, आजकल कोई भी उनके पास नहीं है। एक तो वह सदा ही कुंवारे रहे और दूसरे, उनके छोटे भाई इकबाल यूसुफ ने उन्हें दगा देकर, उनकी करोड़ों की जायदाद पर हाथ साफ  कर लिया, जबकि अपने छोटे भाई को पढ़ाने, बसाने वाले, असरार ही थे। उन्होंने अपनी भांजियों की भी बड़ी सहायता की, जिसके कारण उनकी दोनों भांजियां पटना विश्वविद्यालय में अध्यापिका हैं। उन्होंने भी जामई की सेवा से इनकार कर दिया। जमाना बड़ा खराब है, अपने वतन पटना से सैकड़ों मील दूर असरार अपने मित्र और अधिवक्ता के फ्लैट की तीसरी मंजिल पर रह रहे हैं। असरार के साथ एक और विडंबना यह भी रही कि आज से दो वर्ष पूर्व उन्हें मृत घोषित कर केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने उन्हें 1500 रुपए की पेंशन देना समाप्त कर दी। जब उन्होंने अपने क्षेत्र के विधायक, अमानतुल्लाह खान के दरबार में गुहार लगाई तो वहां भी, उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। जब-जब उन्होंने दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों से पेंशन की बात की तो उन्हें दुत्कारा गया और उनका मजाक उड़ाया गया कि वे तो मर चुके हैं, तो फिर कैसी पेंशन। बकौल जामई, उनकी हालत कुछ उनके शेर जैसे ही है :

हमदर्दी की लज्जत बनते रहे हैं खुशियों के पैमाने में

कितने दुखी इंसान हैं, यह कोई नहीं पहचाने हैं

मुल्कों, मुल्कों, बस्ती, बस्ती, शोर हमारी जुर्रत का

बच्चा, बुड्ढा, बुड्ढा, तंज हमारी जाने है

बड़े खेद का विषय है और बड़ी शर्म की बात है कि उर्दू के इस विश्व विख्यात हंसोड़ कवि को बेदर्द उर्दूदां तबके और देशवासियों ने एक दर्दनाक और आहिस्ता-आहिस्ता समाप्त करने वाली मौत के सहारे छोड़ दिया। लेखक से जितना हो सकता है, वह उनके पास जा कर अपने हाथों से उन्हें कभी भोजन खिला देता, जूस पिला देता है या कपड़े पहना देता है, साथ ही साथ मुश्ताक अली के पुत्र शानदार सिद्दीकी भी उनकी सेवा में जुटे हैं। जब उनकी पेंशन समाप्त होने का समाचार कुछ उर्दू व अंग्रेजी समाचारपत्रों में प्रकाशित हुआ तो कुछ लोगों ने थोड़ी-बहुत सहायता कर दी, मगर अब न तो वे मुशायरों में जा पाते हैं और न ही कोई उनके पास खटकता है। एक समय था कि असरार जामई की तूती बोलती थी और उन्हें डा. राजेंद्र प्रसाद ने एक तमगा भी दिया था। यही नहीं उनकी प्रशंसा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री करपूरी ठाकुर एवं लालू यादव ने भी की थी। 11 अगस्त 1937 में जन्मे जामई ने असरारुल हक के नाम से इंजीनियरिंग में बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालोजी एंड साइंस, पिलानी से स्नातक की डिग्री ली और पटना में अपना एक संस्थान भी बनाया। उन्होंने स्कूली शिक्षा जामिया मिल्लिया इस्लामिया से प्राप्त की, जहां उनके अनुसार यह उनका सौभाग्य था कि डा. जाकिर हुसैन उनके अध्यापक रहे। उनके पिता जो कि एक नामचीन जमीदार थे, खिलाफत आंदोलन में महात्मा गांधी और मुहम्मद अली जौहर के साथ अग्रसर रहे। अपने स्कूल के समय से जामई हंसमुख और खुश मिजाज तबियत के रहे और मजाहिया शायरी अर्थात् हास्य कविता को अपना पेशा बनाया। इसमें कोई दो राय नहीं कि हास्य उर्दू शायरी में आज उनका कोई सानी नहीं, मगर अफसोस की बात है कि उनके साथ तो कई उर्दू संस्थाओं ने भी इंसाफ  नहीं किया, जैसा कि उनके शेर में कहा गया हैः

गालिब के ऐवना गए हम

करने को गुणगान गए हम

देखते ही कुर्बान गए हम

बिजनेस करना जाए गए हम

परिवार के लोगों से विरक्त होने के बाद जामई दिल्ली आ गए, मगर यहां भी चैन का सांस न ले पाए। दक्षिण दिल्ली के क्षेत्र बटला हाउस में एक मकान किराए पर लिया तो वहां से किसी ने इनका लैपटॉप एवं काफी किताबें, जिनमें इनकी नई पुस्तक ‘‘तंज पारे’’ भी शामिल थी, के अतिरिक्त नकदी भी चुरा ली। यदि इनके भाई एवं अन्य परिवार जन इनकी देखभाल करते तो शायद आज वे इतनी दयनीय स्थिति में न होते। परिवार के बंटवारे पर उनका शेर है :

दस बच्चों को पाला था किसी मां ने जतन से

ममता का सिला वो भी बुढ़ापे में न पाई

हर चीज को तो बांट लिया बाप के मरते

एक मां थी, जो हिस्से में किसी के भी न आई!

कुछ यही विडंबना जामई की भी रही। अच्छी खासी जायदाद और रिश्तेदार हुए भी, आज वह विश्व में अकेले हैं। लानत है ऐसे समाज पर कि जहां अनगिनत संस्थाएं, बूढ़ों के लिए घर आदि हैं, मगर इस बे यार-ओ-मददगार 81 वर्षीय के लिए कोई भी नहीं आगे आया। यह बड़े खेद का विषय है कि असरार की महानता को आज हम सब ने मिट्टी में मिला दिया है, उनको इस हालत में छोड़ कर बड़े गुनहगार हो रहे हैं।

-फिरोज बख्त अहमद, जाकिर नगर, नई दिल्ली-110025


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