चंद्रमा की सोलह कलाओं का पूजन करें

By: Jul 14th, 2018 12:05 am

तत्पश्चात जल में ‘आनंद भैरवाय वौषट्’ मंत्र से भैरव का तथा ‘स्हर्क्ष्म्ल्व्लूं सुधा देव्यै वौष्ट्’ मंत्र से सुधा देवी के पूजन की क्रिया करें। तदनंतर मत्स्य, अस्त्र, कवच तथा धेनु मुद्राएं प्रदर्शित कर सन्निरोधिनी मुद्रा से सन्निरोधन कर मुसल, महामुद्रा तथा योनि मुद्रा दिखाएं। इस प्रकार मुद्रा प्रदर्शन के पश्चात कलश की स्थापना करें तथा कलश के दाहिनी ओर शंख तथा विशेषार्घ्य स्थापित करें। अर्घ्यपात्र में अकार आदि सोलह, ककार आदि सोलह एवं थकार आदि सोलह वर्णों की तीन रेखाओं से निर्मित तथा मध्य में ‘ह क्ष’ वर्णों से सुशोभित त्रिकोण का स्मरण कर उसके मध्य में ‘ओउम ह्रीं हं सौः हं स्वाहा’ मंत्र से भगवती का पूजन करें…

-गतांक से आगे…

तापिनी कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

धं पं मरीच्यै नमः।

मरीचिकला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

चं धं रुच्यै नमः।

रुचि कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

छं दं सुषुम्नायै नमः।

सुषुम्ना कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

झं तं विश्वायै नमः।

विश्व कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

टं ढं धारिण्यै नमः।

धारिणी कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

ठं डं क्षमायै नमः।

क्षमा कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

इसके बाद ‘अं आं इं ईं …लं क्षं’ तक मातृका वर्णों को उच्चारित करते हुए कलश में गंगाजल आदि शुद्ध एवं पवित्र जल भरकर ‘ओउम सां सीं सूं र्स्म्ल्व्य सं सोम मंडलाय कामप्रद षोडश कलात्मने सौः कलशामृताय नमः’ मंत्र से कलशोदक का पूजन करें। तदनंतर जल में अमृतादि चंद्रमा की सोलह कलाओं का पूजन करें।

अं अमृतायै नमः।

अमृता कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

आं मानदायै नमः।

मानदा कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

इं पूषायै नमः।

पूषा कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

ईं तुष्टयै नमः।

तुष्टि कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

उं पुष्टयै नमः।

पुष्टि कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

ऊं रत्यै नमः।

रति कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

ऋं धृत्यै नमः।

धृति कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

ऋं शशिन्ये नमः।

शशिनी कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

लं चंद्रिकायै नमः।

चंद्रिका कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

लृं कांत्यै नमः।

कांति कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

एं ज्योत्स्नायै नमः।

ज्योत्स्ना कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

ऐं श्रियै नमः।

श्री कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

ओं प्रीत्यै नमः।

प्रीति कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

औं अंगदायै नमः।

अंगदा कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

अं पूर्णायै नमः।

पूर्णा कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

अः पूर्णामृतायै नमः।

पूर्णामृता कला श्रीपादुकां पूजयामि नमः।

तत्पश्चात जल में ‘आनंद भैरवाय वौषट्’ मंत्र से भैरव का तथा ‘स्हर्क्ष्म्ल्व्लूं सुधा देव्यै वौष्ट्’ मंत्र से सुधा देवी के पूजन की क्रिया करें। तदनंतर मत्स्य, अस्त्र, कवच तथा धेनु मुद्राएं प्रदर्शित कर सन्निरोधिनी मुद्रा से सन्निरोधन कर मुसल, महामुद्रा तथा योनि मुद्रा दिखाएं। इस प्रकार मुद्रा प्रदर्शन के पश्चात कलश की स्थापना करें तथा कलश के दाहिनी ओर शंख तथा विशेषार्घ्य स्थापित करें।

अर्घ्यपात्र में अकार आदि सोलह, ककार आदि सोलह एवं थकार आदि सोलह वर्णों की तीन रेखाओं से निर्मित तथा मध्य में ‘ह क्ष’ वर्णों से सुशोभित त्रिकोण का स्मरण कर उसके मध्य में ‘ओउम ह्रीं हं सौः हं स्वाहा’ मंत्र से भगवती का पूजन करें। फिर उसके ऊपर तीन बार मूल मंत्र का जप करके पूर्वोक्त मत्स्य आदि नौ मुद्राएं बनाएं।

                                       -क्रमशः


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