चंबा संस्कृति की पहचान मिंजर मेला

By: Jul 28th, 2018 12:07 am

मिंजर मेला प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देशभर में प्रसिद्ध है। चंबा शहर राजा साहिल वर्मन द्वारा उनकी बेटी राजकुमारी चंपावती के कहने पर रावी नदी के किनारे बसाया गया था…

देवभूमि हिमाचल में देवी-देवताओं का वास कहा जाता है। यहां की संस्कृति और परंपराएं काफी अलग हैं। यूं तो प्रदेशभर में बहुत से मेले, त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं, लेकिन शिवभूमि चंबा का मिंजर मेला प्रदेश में ही नहीं, बल्कि पूरे देशभर में प्रसिद्ध है। चंबा शहर राजा साहिल वर्मन द्वारा उनकी बेटी राजकुमारी चंपावती के कहने पर रावी नदी के किनारे बसाया गया था। इसीलिए इस शहर का नाम चंबा रखा गया था। इस मेले को अंतरराष्ट्रीय मेले का दर्जा दिया गया है। यह मेला श्रावण मास के दूसरे रविवार को शुरू होकर सप्ताह भर चलता है। इस बार यह मेला 29 जुलाई से 5 अगस्त तक चलेगा।

इस मेले को क्यों मिला मिंजर का नाम

स्थानीय लोग मक्की और धान की बालियों को मिंजर कहते हैं। इस मेले का आरंभ रघुवीर जी और लक्ष्मीनारायण भगवान को धान और मक्की से बना मिंजर या मंजरी और लाल कपड़े पर गोटा जड़े मिंजर के साथ, एक रुपया, नारियल और ऋतुफल भेट किए जाते हैं। इस मिंजर को एक सप्ताह बाद रावी नदी में प्रवाहित किया जाता है। मक्की की कौंपलों से प्रेरित चंबा के इस ऐतिहासिक उत्सव में मुस्लिम समुदाय के लोग कौंपलों की तर्ज पर रेशम के धागे और मोतियों से पिरोई गई मिंजर तैयार करते हैं, जिसे सर्वप्रथम लक्ष्मीनारायण मंदिर और रघुनाथ मंदिर में चढ़ाया जाता है और इसी परंपरा के साथ मिंजर महोत्सव की शुरुआत भी होती है

क्यों मनाया जाता है मिंजर- लोककथाओं के अनुसार मिंजर मेले की शुरुआत 935 ई. में हुई थी। जब चंबा के राजा त्रिगर्त के राजा जिसका नाम अब कांगड़ा है, पर विजय प्राप्त कर वापस लौटे थे, तो स्थानीय लोगों ने उन्हें गेहूं, मक्का और धान के मिंजर और ऋतुफल भेंट करके खुशियां मनाई थीं।

मिंजर मेले की परंपराएं

मिंजर मेले में पहले दिन भगवान रघुवीर जी की रथ यात्रा निकलती है और इसे रस्सियों से खींचकर चंबा के ऐतिहासिक चौगान तक लाया जाता है, जहां से मेले का आगाज होता है। भगवान रघुवीर जी के साथ आसपास के 200 से ज्यादा देवी-देवता भी वहां पहुंचते हैं। मिर्जा परिवार सबसे पहले मिंजर भेंट करता है। रियासत काल में राजा मिंजर मेले में ऋतुफल और मिठाई भेंट करता था, लेकिन अब यह काम प्रशासन करता है। उस समय घर-घर में ऋतुगीत और कूंजड़ी-मल्हार गाए जाते थे। अब स्थानीय कलाकार मेले में इस परंपरा को निभाते हैं। मिंजर मेले की मुख्य शोभायात्रा राजमहल अखंड चंडी से चौगान से होते हुए रावी नदी के किनारे तक पहुंचती है। यहां मिंजर के साथ लाल कपड़े में नारियल लपेट कर, एक रुपया और फल, मिठाई नदी में प्रवाहित की जाती है। चंबा संस्कृति की झलक मिंजर मेले में देखने को मिलती है। लोग दूर-दूर से इस मेले को देखने आते हैं।

हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक

शाहजहां के शासनकाल के दौरान सूर्यवंशी राजा पृथ्वी सिंह रघुवीर जी को चंबा लाए थे। शाहजहां ने मिर्जा साफी बेग को रघुवीर जी के साथ राजदूत के रूप में भेजा था। मिर्जा साहब जरी गोटे के कम में माहिर थे। चंबा पहुंचने पर उन्होंने जरी का मिंजर बना कर रघुवीर जी, लक्ष्मीनारायण भगवान और राजा पृथ्वी सिंह को भेंट किया था। तब से मिंजर मेले का आगाज मिर्जा साहब के परिवार का वरिष्ठ सदस्य रघुवीर जी को मिंजर भेंट करके करता है। इससे सिद्ध होता है कि चंबा और संपूर्ण भारत धर्म निरपेक्ष था। सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार आज भी मिर्जा परिवार के सदस्यों द्वारा मिंजर तैयार कर भगवान रघुवीर को अर्पित की जाती है, जिसके बाद ही विधिवत रूप से मिंजर मेले का आगाज होता है और मौजूदा समय में भी इस परिवार का वरिष्ठ सदस्य इस परंपरा को पूरी निष्ठा के साथ निभा रहा है।


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