जिंदगी का दस्तूर

By: Jul 8th, 2018 12:05 am

कहानी

सुंदर हंसकर कहने लगता कि काम करने से मेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला, पारो गुस्से में बोलती हां आपने शरीर को पत्थर समझ रखा है।  सुंदर कहता ला खाना दे, छोड़ इन बातों को और वह खाना खाने लगता…

 एक गांव में सुंदर नाम का किसान रहता था, उसकी पत्नी का नाम पारो था। शादी के कई साल बाद उनके घर में एक बेटे ने जन्म लिया। उन्होंने अपने बेटे का नाम राम रखा, धीरे-धीरे उनका बेटा बड़ा हो गया। अब खेतों में काम करने सुंदर और उसका बेटा राम दोनों जाने लगे, लेकिन सुंदर अपने बेटे से सदा कहता रहता तुम आराम से पेड़ की छाया में लेटो, खेतीबाड़ी का काम मैं खुद कर लूंगा। खेतों में जब पारो खाना लेकर आती थी तो अपने पति को अकेले काम करते देखकर उसे बहुत दुःख होता था, वह कभी क्रोध में आकर कहने लगती क्या तुम सारी उम्र ऐसे ही काम करते रहोगे, राम अपना जवान हो गया है उससे भी काम करवाओ। सुंदर हंसकर कहने लगता कि काम करने से मेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला। पारो गुस्से में बोलती- हां, आपने शरीर को पत्थर समझ रखा है । सुंदर कहता ला खाना दे छोड़ इन बातों को और वह खाना खाने लगता। एक बार सारे गांव में प्लेग की भयंकर बीमारी फैल गई इसी बीमारी की चपेट में पारो आ गई। पारो बेचारी मर गई। सुंदर बहुत रोया, कुछ दिनों बाद सुंदर ने अपने बेटे राम की शादी कर दी और उसके पास चारा भी क्या था। वक्त के साथ सुंदर बूढ़ा हो गया, उसे बीमारी ने बुरी तरह से जकड़ लिया था। सुंदर का ठीक होने का कोई रास्ता नहीं था। इसी बीच राम के घर एक बेटी ने जन्म लिया, उसका नाम गुड्डिया। वह अब करीब 10 साल की थी। गुड्डिया अपने दादा जी के साथ खेलती उनकी सेवा करती और उनका ध्यान रखती थी जब कि गुड्डिया के माता-पिता सोचते की कल मरता आज मरे। पर गुड्डिया यह सब देखती रहती। एक दिन राम ने अपनी पत्नी से कहा कि यह पिता जी अब हम पर बोझ बन गए हैं और यह बूढ़ा मरता भी नहीं की हमको इससे छुटकारा मिले। ऐसा करते हैं हम लोग इसे जंगल में ले जाकर जिंदा दफना देते हैं। राम और उसकी पत्नी दोनों ने यह तय किया कि कल जंगल में जाकर पिता जी को दफना देते हैं। अगले दिन रात को राम अपने पिता जी का हाथ, पैर बांध कर जंगल ले जाने लगता है, तभी उसकी बेटी गुड्डिया आ कर कहती है की मैं भी चलूंगी। राम मना करता है, लेकिन जिद के कारण वह गुड्डिया को लेकर जंगल की तरफ  जाता है। जंगल में पहुंच कर राम एक गड्ढा खोदता है और फिर अपने पिता जी से बोलता है कि पिता जी अब मैं आपको इस गड्ढे में डालकर आपके सारे दुःख दूर कर दूंगा । गुड्डिया यह सब देख रही होते हैं।  पिता जी से बोलती है पापा अब मैंने भी समझ लिया कि दुःख दूर कैसे किया जाता है। आप चिंता मत करिएगा आपको मैं इससे भी जल्दी दफना कर आपका दुःख दूर करूंगी। राम को अपने बच्ची के मुंह से यह बात सुनकर दुःख होता है। उसे समझ में आ जाता है कि वह कितनी बड़ी गलती करने जा रहा था। राम पिता जी से अपनी इस गलती के लिए माफी मांगता है  और उनको घर वापस लाता है। राम अब अपने पिता जी का अच्छे से ख्याल रखने लगता है।सीखः हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हम जैसा करेंगे वैसा ही भरेंगे। राम भी कुछ ऐसा ही करने जा रहा था ,लेकिन बच्ची की सीख ने उसे गलत काम करने से बचा दिया। क्यों जवानी और बुढ़ापा हर किसी ने देखना है इसलिए एक दूसरे के साथी बनो यही

रीत है।


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