नवाज शरीफ पर विराम नहीं

By: Jul 16th, 2018 12:05 am

पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पाकिस्तान में अवाम ‘शेर’ मानती है। बेशक आज ‘शेर’ पिंजरे में कैद है, लेकिन उसकी ताकत छिन्न-भिन्न नहीं हुई है। अवाम अब भी उनकी समर्थक है। उनके पार्टी कार्यकर्ता मायूस नहीं हैं। वे जश्न के मानस में हैं, झंडा लहरा रहे हैं और नारों में उनकी आवाज बुलंद है। अवाम और ज्यादातर नवाज की पार्टी के कार्यकर्ताओं का भरोसा है कि देर-सबेर उनके नेता को अदालत से जमानत मिल सकती है। नवाज शरीफ एक बार फिर पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम बन सकेंगे या नहीं, यह तो वहां की संसद या अदालत तय करेगी, लेकिन लंदन से पाकिस्तान लौटकर उन्होंने साबित कर दिया कि वह ‘भगोड़ा’ नहीं हैं। पाकिस्तान की जो न्यायिक प्रक्रिया है, उसका सम्मान करते हुए वह सजा काटेंगे और कानून के साथ-साथ सियासी लड़ाई भी लड़ते रहेंगे। नवाज ने पाकिस्तान लौटकर अवाम को संदेश देने की कोशिश की है कि वह पाकिस्तान की आने वाली नस्लों के लिए ‘कुर्बानी’ दे रहे हैं। नवाज ने अपने समर्थकों से उनके साथ खड़े रहने और देश की किस्मत बदलने की भी अपील की। नवाज ने भी माना कि इस वक्त देश एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है। वह देश के मुस्तकबिल के लिए जेल जा रहे हैं। बहरहाल सोमवार को जमानत अर्जी देने का आखिरी दिन है। कानून के जानकारों का मानना है कि राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो का केस बेहद कमजोर है। यह फैसला फौज के दबाव में आया है, बड़ी अदालत में टिकना मुश्किल है। दूसरी तरफ 25 जुलाई को संसद (नेशनल असेंबली) के चुनाव हैं, लेकिन पाकिस्तान में हालात इतने उग्र हैं कि सैकड़ों की हत्या की जा चुकी है और उससे ज्यादा लोग जख्मी हैं। आत्मघाती हमले किए जा रहे हैं। आतंकवाद के खौफ तले चुनाव हो रहे हैं। अब फौज और खुफिया एजेंसी आईएसआई की रणनीति और सोच क्या है, वे इमरान खान की पार्टी-पीटीआई को समर्थन दे रही हैं अथवा आतंकवाद के सरगना हाफिज सईद के उम्मीदवारों का परोक्ष प्रचार कर रही हैं, एक खबर तो यह भी है कि फौज और आईएसआई ने किसी कट्टरपंथी पार्टी के उम्मीदवारों की ‘आर्थिक मदद’ करने का अघोषित फैसला किया है, लेकिन इतना तय है कि नवाज शरीफ की देश वापसी से ही उनकी पार्टी-पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) की चुनावी संभावनाएं बदलेंगी। नवाज के पक्ष में एक खास सहानुभूति और भावुकता की लहर जोर पकड़ सकती है और पाकिस्तान एक बार फिर नवाज के नेतृत्व में भरोसा बयां कर सकता है। पाकिस्तान के तीन बार प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ को तीसरी बार जेल जाना पड़ा है, लेकिन गौरतलब यह है कि उनका हुकूमत में रहना हिंदुस्तान के पक्ष में है। हालांकि हुकूमत में रहते हुए नवाज भी कश्मीर का राग अलापते रहे हैं और आतंकवाद पर काबू पाने में नाकाम रहे हैं। फिर भी नवाज उच्छृंखल और भड़काऊ तेवरों के नेता नहीं हैं। उनकी जड़ें भारत के साथ जुड़ी रही हैं। कल्पना करें, यदि चुनाव के बाद हाफिज सईद पाकिस्तान की हुकूमत में साझेदार बन जाता है, तो तब हालात और समीकरण क्या होंगे? नवाज को पनामा पेपर्स लीक के मुताबिक अघोषित धन निवेश करने और विदेश में संपत्तियां खरीदने को राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो ने भ्रष्टाचार का गंभीर मामला आंका है और उन्हें 10 साल की कैद के साथ-साथ जुर्माना भी लगाया है। उनकी बेटी मरियम को भी 7 साल की जेल हुई है और जुर्माना अलग है। दोनों को रावलपिंडी की अदियाला जेल में कैद किया गया है। उसी जेल में मरियम के पति भी कैद हैं। इस कथित ‘कुर्बानी’ के लिए नवाज शरीफ को लंदन में अपनी बीमार पत्नी कुलसुम को ‘अल्लाह भरोसे’ छोड़कर पाकिस्तान लौटना पड़ा है। कुलसुम को गले का कैंसर है और लंदन के अस्पताल में वह इलाज करवा रही हैं। दरअसल सरोकार अपनी विश्वसनीयता का था। नवाज चाहते, तो लंदन, अबू धाबी या दुबई में कहीं भी ‘शरण’ मांग सकते थे, क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री के अलावा वह एक बड़े उद्योगपति भी हैं। उनके बेटे, पोते-नाती भी लंदन में हैं, लेकिन वह अंततः परवेज मुशर्रफ नहीं हैं। पूर्व तानाशाह मुशर्रफ के खिलाफ कई केस अदालतों में हैं, लेकिन जेल के डर से मुशर्रफ कभी भी पेश नहीं हुए और पाकिस्तान भी वापस नहीं आए। पूर्व सेना प्रमुख जनरल कयानी रिटायरमेंट के बाद से आस्टे्रलिया में जाकर बस गए। क्या उन्हें कोई पूछने वाला नहीं है कि इतना पैसा कहां से आया? मुंबई के 26 / 11 आतंकी हमले के ‘मास्टरमाइंड’ हाफिज सईद को 10 साल के बाद भी कोई निर्णायक सजा नहीं दी गई है, लेकिन नवाज के खिलाफ 9-10 महीनों के अंतराल में ही जांच भी हो गई और सजा भी सुना दी गई! यह है पाकिस्तान की न्यायिक और कानूनी व्यवस्था…! बहरहाल नवाज को उनकी विश्वसनीयता के आधार पर ही जमानत मिल सकती है या बड़ी अदालत उन्हें और भी राहत दे सकती है। यदि पाकिस्तान में नवाज की पार्टी हुकूमत में आई, तो विधायी तौर पर उनके खिलाफ केस भी रद्द किए जा सकते हैं। वह सियासत में पूरी तरह लौट सकते हैं, लिहाजा नवाज के सियासी करियर पर फिलहाल विराम लगाना उचित नहीं है।


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