पड्डल की घास पर क्रिकेट

By: Jul 19th, 2018 12:05 am

फिर मंडी के पड्डल मैदान की घास उलझ रही है और सामने क्रिकेट के बिछौने का विरोध आकर खड़ा हो गया। दरअसल विवाद क्रिकेट बनाम अन्य खेल संघों के बीच सरोकारों का है। इसमें दो राय नहीं कि हिमाचल में क्रिकेट एसोसिएशन की जीत का असर खेल मैदानों की संपत्ति के रूप में दर्ज है, लेकिन सही यह भी है कि ढांचागत निर्माण की पहल में इसी संघ की सफलता स्पष्ट है। जाहिर है क्रिकेट की निगाह में प्रदेश के कई मैदान रहे और जहां एसोसिएशन की घास बिछती गई, मिलकीयत भी इसके नाम हो गई। ऐसा सौभाग्य अन्य खेल संगठनों का नहीं, वरना प्रदेशभर में हर खेल के हिसाब से मैदान व स्टेडियम बनते। इसके विपरीत पिछले कुछ वर्षों से बड़े खेल मैदानों की पैमाइश में प्रशासनिक भवनों की घुसपैठ हो गई। सुजानपुर, चंबा, नाहन, सोलन, जयसिंहपुर, कुल्लू व मंडी की पहचान में ऐतिहासिक मैदानों का हमेशा योगदान रहा है, लेकिन हिमाचल निर्माण की नींव, इनके वजूद का अतिक्रमण करती रही और आज कई प्राचीन मैदान सिकुड़ चुके हैं। इसके साथ ही सामुदायिक आधार पर बने मैदानों पर भी बुरी नजर लग गई। कुछ समय पूर्व धर्मशाला के नेताजी सुभाष खेल स्टेडियम पर संरक्षक बने पुलिस विभाग की ही नजर लग गई। नागरिकों, खेल प्रेमियों, पर्यावरणविदों तथा समाज के प्रबुद्ध वर्ग ने हरसंभव प्रयास करते हुए सरकार से इसकी परिधि में इमारत खड़ी न करने का बार-बार आग्रह किया, लेकिन मैदान के एक छोर पर पुलिस भवन का कंकरीट निरंकुश अंदाज में बहुमंजिला बन गया। कमोबेश हर बड़े मैदान का यही हाल है, इस लिहाज से पड्डल मैदान की दास्तान पर भारी पड़ता नया विवाद समझना होगा। क्रिकेट एसोसिएशन बेशकीमती घास उगाकर इस पर बैटिंग करना चाहती है, तो क्षेत्ररक्षण में अन्य खेल संघों का औचित्य सिफर होने लगता है। बहरहाल यहां तो मसला फिर भी खेल से रू-ब-रू है, अन्यथा मैदानों के मैदानी योगदान पर ही संकट है। बड़े मैदान या तो पार्किंग का बोझ उठा रहे हैं या व्यापारिक-सांस्कृतिक आयोजनों की कीलों से बार-बार छलनी हो रहे हैं। पड्डल की आबरू में क्रिकेट का घास स्वाभाविक तौर पर खेल का एक चेहरा है, लेकिन मैदान का बेहतर इस्तेमाल अपने साथ कई प्रश्नों का हल तलाश रहा है। जिस तरह शिवरात्रि महोत्सव का साजो-सामान या रौनक का द्वार, पड्डल के आस्तीन में अनेक सांप छिपा लेता है, उसे देखते हुए इस मैदान के अस्तित्व में विभिन्न खेल संगठनों को अपनी भूमिका सुनिश्चित करनी होगी। हमें यह भी समझना होगा कि हॉट वैदर फुटबाल के आयोजन का जो मंजर पड्डल में वर्षों से सज रहा है, क्या उसे परिमार्जित करने के लिए मैदान की वर्तमान स्थिति व रूपरेखा परिपूर्ण है। खेल संगठनों की विडंबना भी यही है कि इनका संचालन राजनीति के कोरे कागज पर हस्ताक्षर करने जैसा है। क्रिकेट संघ इसीलिए भारी पड़ा क्योंकि वहां राजनीतिक इच्छाशक्ति बरकरार रही। धूमल सरकार के समय इसका स्वर्णिम युग शुरू हुआ और वर्तमान में सांसद अनुराग ठाकुर के प्रभाव का प्रश्रय सलामत है। यह दीगर है कि जो खिलाड़ी प्रदेश का नाम ऊंचा कर रहे हैं, वे ऐसे खेलों से संबंधित हैं जिनका ढांचागत उत्थान न के बराबर है। राज्य व भारतीय खेल प्राधिकरण के छात्रावासों में कुछ आधारभूत सुविधाओं के कारण सुखद परिणाम सामने आ रहे हैं, फिर भी प्रतिभा तलाश की हिमाचली कोशिश स्कूल स्तर से और बेहतर ढंग से होनी चाहिए। हिमाचल में खेल प्राधिकरण का गठन लाजिमी तौर पर सुनिश्चित करना चाहिए, ताकि माकूल खेल अधोसंरचना का निर्धारण हो सके। कम से कम खेल व सामुदायिक मैदानों के इस्तेमाल की दिशा तो तय हो। बदलते परिदृश्य में यह समझना जरूरी है कि पड्डल को सामुदायिक मैदान की दृष्टि से देखें या विशुद्ध खेल मैदान मानें। हमारा मानना है कि मंडी या हिमाचल के कमोबेश हर छोटे-बड़े शहर में सामाजिक, सांस्कृतिक व व्यापारिक गतिविधियों के लिए अलग से सामुदायिक मैदान विकसित किए जाएं, ताकि खेलों के लिए निर्धारित मैदान सुरक्षित रहें।


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