बच्चों में टोरेट सिंड्रोम

By: Jul 28th, 2018 12:05 am

बच्चे जब इस दुनिया में कदम रखते हैं, तो वे हर चीज से अनजान होते हैं, ऐसे में उनके समुचित विकास की सही तरह से देखभाल करने की जिम्मेदारी मां-बाप की होती है। टोरेट सिंड्रोम बच्चों को 2 से 14 साल की उम्र में होता है। टोरेट सिंड्रोम तंत्रिकाओं से जुड़ा रोग है, जिसमें मांसपेशियों में समय-समय पर टिक्स यानी अचानक संकुचन या सिकुड़न होती है। इसी वजह से अचानक पीडि़त के हाव-भाव और शब्द बदल जाते हैं। बच्चों में इस बीमारी की शुरुआत होना बड़ी बात नहीं है, लेकिन इसे नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। इसलिए मां-बाप को बच्चों के चलने, उठने, लिखने, सीखने व व्यवहार करने पर गौर करना चाहिए।

यह सिंड्रोम दिमाग में मौजूद न्यूरोट्रांसमीटर के संतुलन के बिगड़ने के कारण होता है, क्योंकि दिमाग का यही हिस्सा कोशिकाओं को एक्टिव रखता है। हालांकि इसका उपचार नहीं हो सकता, लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

ऐसे पहचानें लक्षण- बच्चा अगर सामान्य है, तो उनका व्यवहार भी असामान्य नहीं होगा। जबकि टोरेट सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चे की शारीरिक हरकतें कुछ अलग होंगी। बार-बार लगातार पलकें झपकाना, बाहें हिलाना, होठों का हिलना इसके लक्षण हैं।

शारीरिक गतिविधि

बच्चों का स्वभाव बहुत ही चंचल होता है और वे शरारती भी होते हैं, इसलिए एक जगह बैठना उनके लिए असंभव है और वे हमेशा कूद-फांद करते रहते हैं, लेकिन जो बच्चा टोरेट सिंड्रोम से ग्रस्त होगा उसे चलने, दौड़ने, सीधा बैठने आदि में समस्या होगी।

अर्थहीन और गलत शब्दों का प्रयोग

बच्चे गुस्सा हो जाएं तो कयामत आ जाती है, लेकिन यह सामान्य बच्चों के साथ कभी-कभी होता है और वे गलत शब्दों का प्रयोग नहीं करते हैं। टोरेट सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चे कहीं पर भी यहां तक कि सार्वजनिक जगहों पर अर्थहीन और गलत शब्दों का प्रयोग बार-बार करेंगे।

गुस्सैल स्वभाव

अगर बच्चे का आक्रामक व्यवहार निरंतर बना रहता है, तो समझ लीजिए कि आपका बच्चा टोरेट सिंड्रोम से ग्रस्त है। इस सिंड्रोम के कारण बच्चा हमेशा गुस्से में रहेगा, हर बात पर चिल्लाएगा, तोड़-फोड़ करेगा व खुद को भी चोट पहुंचाएगा।

मानसिक रूप से अस्वस्थ

टोरेट सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चे मानसिक रूप से भी अस्वस्थ रहते हैं। ऐसे बच्चों का मूड स्विंग होता है। तनाव ग्रस्त रहते हैं। इसके अलावा इस सिंड्रोम का लक्षण कुछ हद तक ओसीडी (ऑब्सेसिव कॉम्पलसिव डिसऑर्डर)और एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर) के जैसा होता है। ऐसे में बच्चों के लक्षण की पहचान कर चिकित्सक से जल्द संपर्क करें। इस बीमारी का सही कारण अब तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन कई बार यह आनुवंशिक होता है। इसलिए बच्चों का खास ध्यान रखें।


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