भगवान शिव एवं नारायण का प्रेम

By: Jul 14th, 2018 12:05 am

गतांक से आगे…

धन्य है वे आंखें, जिन्होंने उस अद्भुत छटा का निरीक्षण किया । दैवयोग से नारदजी उधर आ निकले। वह इस अलौकिक दृश्य को देखकर मस्त हो गए और लगे बीणा के स्वर के साथ गाने। भगवान शिव उनके सुमधुर संगीत को सुनकर, खेल छोड़कर जल से बाहर निकल आए और ओदे वस्त्र पहने ही नारद के सुर में सुर मिलाकर स्वयं राग अलापने लगे। अब तो भगवान विष्णु से भी नहीं रहा गया। वे भी बाहर आकर मृदंग बजाने लगे। उस समय वह समां बंधा जो देखते ही बनता था ।

सहस्रों शेष और शारदा भी उस समय के आनंद का वर्णन नहीं कर सकते। बूढ़े बह्मजी भी उस अनोखी मस्ती में शामिल हो गए। उस अपूर्व समाज में यदि किसी बात की कमी थी, तो वह प्रसिद्ध संगीत कोविद पवनसुत हनुमान जी के आने से पूरी हो गई। उन्होंने जहां अपनी हृदय हारिणी तान छेड़ी वहां सबको चुप हो जाना पड़ा। अब तो सब के सब निस्तब्ध होकर लगे हनुमान जी के गायन को सुनने। सब के सब ऐसे मस्त हुए कि खाने-पीने तक की सुधि भूल गए। उन्हें यह भी होश नहीं रहा कि हम लोग महर्षि गौतम के यहां निमंत्रित है।

उधर जब महर्षि ने देखा कि उनका पूज्य अतिथि वर्ग स्नान करके सरोवर से नहीं लौटा और मध्याह्न बीता जा रहा है, तो वे बेचारे दौडे़ आए और किसी प्रकार अनुनय विनय करके बड़ी मुश्किल से सबको अपने यहां लिवा लाए। तुरंत भोजन परोसा गया और लोग लगे आनंदपूर्वक गौतमजी का आतिथ्य स्वीकार करने। इसके अनंतर हनुमान जी का गायन प्रारंभ हुआ।

भोलेबाबा उनके मनोहर संगीत को सुनकर ऐसे मस्त हो गए कि उन्हें तन मन की सुधि न रही । उन्होंने धीरे से एक चरण हनुमान की अंजलि में रख दिया और दूसरे चरण को उनके कंधे, मुख, कंठ, वक्षस्थल, हृदय के मध्य भाग, उदर देश तथा नाभि मंडल से स्पर्श कराते हुए मौज से लेट गए। यह लीला देखकर विष्णु कहने लगे. आज हनुमान के समान सुकृती विश्व में कोई नहीं है। जो चरण देवताओं को दुर्लभ है तथा वेदो के द्वारा अगम्य हैं, उपनिषद भी जिन्हें प्रकाश नहीं कर सकते, जिन्हें योगिजन चिरकाल तक विविध प्रकार के साधन करके तथा व्रत उपवासादि से शरीर को सुखाकर क्षण भर के लिए भी अपने हृदय देश में स्थापित नहीं कर सकते, प्रधान मुनीश्वर सहस्र कोटि संवत्सर पर्यंत तप करके भी जिन्हें प्राप्त नहीं कर सकते, उन चरणों को अपने समस्त अंगो पर धारण करने का अनुपम सौभाग्य आज हनुमान को अनायास ही प्राप्त हो रहा है। मैंने भी हजार वर्ष तक प्रतिदिन सहस्र पद्मो से आपका भक्ति भावपूर्वक अर्चन किया, परंतु यह सौभाग्य आपने मुझे कभी प्रदान नहीं किया। लोक में यह वार्ता प्रसिद्ध है कि नारायण शंकर के परम प्रीतिभाजन हैं, परंतु आज हनुमान को देखकर मुझे इस बात पर संदेह सा होने लगा है और हनुमान के प्रति ईर्ष्या भी हो रही है।

भगवान विष्णु के इन प्रेम लपेटे अटपटे वचन सुनकर शंकर मन ही मन मुस्कराने लगे और बोले नारायण ! यह आप क्या कह रहे हैं। आपसे बढ़कर मुझे और कोईं प्रिय हो सकता है औरो की  तो बात ही क्या, पार्वती भी मुझे आपके समान प्रिय नहीं हैं। इतने में ही माता पार्वती भी वहां आ पहुंची । शंकर को बहुत देर तक लौटते न देखकर उनके मन में स्त्री सुलभ शंका हुईं कि कहीं स्वामी नाराज तो नहीं हो गए। दौड़ी हुई महर्षि गौतम के आश्रम में पहुंची। गौतम की मेहमानी में जो कमी थी, वह उनके आगमन से पूरी हो गई। उन्होंने भी अपने पति की अनुमति लेकर महर्षि का आतिथ्य स्वीकार किया और फिर शंकरजी के समीप आकर उनकी और विष्णु भगवान की प्रणयगोष्ठी में सम्मिलित हो गईं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App