भगोड़े कब लौटेंगे भारत ?

By: Jul 27th, 2018 12:05 am

भगोड़ा आर्थिक अपराधी बिल के राज्यसभा में भी पारित होने के बाद अब यह कानून का रूप धारण कर लेगा। लोकसभा पहले ही इसे पारित कर चुकी है। संसद ने पहली बार ऐसा बिल पारित किया है। आर्थिक अपराध होते रहे हैं और ऐसे अपराधी करोड़ों-अरबों रुपए लेकर विदेशों में ‘भगोड़े’ बनकर बसते रहे हैं। इन आर्थिक घोटालों में हमारे बैंक प्रबंधन की भी गलत भूमिका रही है। मौजूदा सवाल यह है कि क्या ऐसे कानून से आर्थिक भगोड़ों को भारत वापस लाया जा सकेगा? क्या उनकी संपत्तियां जब्त कर नुकसान की भरपाई हो सकेगी? क्या टापूनुमा और बेहद गरीब देशों में शरण लिए ‘भगोड़ों’ को भी कानून के कटघरे तक लाया जा सकेगा? आर्थिक अपराध सिर्फ पंजाब नेशनल बैंक तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि भारतीय स्टेट बैंक समेत कई और बैंक भी इसकी चपेट में हैं। फिलहाल हमारे सामने विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और ललित मोदी के ही उदाहरण हैं। राज्यसभा में बताया गया कि 2004 और 2014 के बीच 30 आर्थिक भगोड़े देश छोड़कर विदेशों में जा बसे हैं। जो चार नाम हमने सामने रखे हैं, उनका ही अपराध 2.4 लाख करोड़ रुपए का है। हालांकि माल्या ने बार-बार लौटने के संकेत दिए हैं, क्योंकि ब्रिटिश अदालत भी उसके खिलाफ सख्त रवैया अपनाने लगी है, लेकिन माल्या को भारत सरकार से न जाने क्या आश्वासन चाहिए कि वह अभी तक तो वापस नहीं आया है। नीरव मोदी और उसके मामा मेहुल चोकसी कभी लंदन में दिखाई देते हैं, कभी न्यूयॉर्क और फिर मकाऊ में रहने लगते हैं, तो कभी किसी और देश में जाकर बस जाते हैं। हीरे की ब्रांडेड ज्वैलरी के बड़े व्यवसायी रहे दोनों ही देश ऐसे बदल रहे हैं, मानो कपड़े बदल रहे हों! हैरानी का सवाल यह भी है कि आखिर ऐसे व्यवसायी करोड़ों-अरबों का धन और संसाधन विदेशों में संचित कैसे कर पाते हैं कि ‘भगोड़ा’ बनने की स्थिति में भी जिंदगी ऐशोआराम से चलती है? अलग-अलग देश, अलग-अलग शहरों में कैसे बसा जा सकता है? अब मेहुल का ही उदाहरण लें। अमरीका उसके खिलाफ प्रत्यर्पण की कार्रवाई शुरू करता, उसके पहले ही उसने एंटीगुआ कैरेबियाई देश की नागरिकता हासिल कर ली। इस देश की नागरिकता लेने के तीन मोटे आधार हैं-आप 1.40 करोड़ रुपए दे दें या 2.80 करोड़ रुपए की संपत्ति खरीद लें अथवा 10 करोड़ रुपए निवेश कर कोई व्यापार शुरू करें। लेकिन यह बुनियादी शर्त है कि आपराधिक पृष्ठभूमि न हो। यह तब हुआ है, जब बीते दिनों प्रधानमंत्री मोदी और एंटीगुआ के प्रधानमंत्री में ‘दोस्ती का मिलाप’ हुआ था। यदि आज भारत सरकार मेहुल की नागरिकता पर आपत्ति करे, तो भी प्रत्यर्पण की कार्रवाई शुरू होने में कमोबेश एक साल का समय लग जाएगा। हालांकि सीबीआई ने एंटीगुआ के अधिकारियों को पत्र लिखकर ‘भगोड़े’ के ठिकाने की जानकारी मांगी है। मेहुल और नीरव के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किया जा चुका है। ऐसी स्थिति में कोई भी वांछित अपराधी देश नहीं छोड़ सकता, लेकिन इन भगोड़ों का केस सामने है। यह भी संभव है कि एंटीगुआ में भी प्रत्यर्पण की कार्रवाई शुरू हो और मेहुल कहीं और भाग जाए! इन भ्रष्ट कारोबारियों की ‘भगोड़े’ वाली स्थिति तब आई है, जब मोदी सरकार ने लगातार दबाव बनाया है। यदि यह सरकार 2019 के चुनाव से पहले किसी भी भगोड़े को भारत वापस लाने और कानूनी कार्रवाई शुरू करने में कामयाब हो जाती है, तो उसके राजनीतिक लाभ भी हो सकते हैं, क्योंकि बुनियादी तौर पर यह आम आदमी के खून-पसीने की कमाई है, जिसे भगोड़े डकारे बैठे हैं। बैंकों की जो राशि हड़पी हुई है, वह भी 18.6 लाख करोड़ से बढ़कर 52.15 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। आखिर इसकी भरपाई कैसे होगी? प्रस्तावित कानून 100 करोड़ रुपए और उससे ज्यादा की रकम डकारने वालों पर ही लागू होगा। प्रवर्तन निदेशालय इसकी मूल एजेंसी होगी। वित्त मंत्री पीयूष गोयल का कहना था कि सरकार फिलहाल बड़ी मछलियों को फांसना चाहती है, लिहाजा यह सीमा तय की गई है। बहरहाल कानून में संशोधन तो होते ही रहते हैं, लेकिन निश्चित यह किया जाना चाहिए कि भगोड़े यथाशीघ्र कानूनी कटघरे तक पहुंचाएं जा सकें। बैंकों का लुटा धन भी हासिल हो। काले धन के साथ-साथ डकारा पैसा भी वसूल होना चाहिए, ताकि उससे राजमार्ग, स्कूल, अस्पताल और पुल बनाए जा सकें और जरूरतमंद की मदद बैंक कर सकें। क्या वह दिन भी आएगा?


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