भारत को शिक्षित कर रहे विदेशी बेटी और बाप

By: Jul 8th, 2018 12:15 am

नेशनल ज्योग्राफिक के रिसर्चर माइक लिबेकी और उनकी 14 वर्षीय बेटी लिलियाना ने दुनिया के कई देशों की यात्राएं की, लेकिन अरुणाचल की यात्रा बाप-बेटी की इस जोड़ी के लिए काफी अलग रही। अब अरुणाचल के तवांग में यह जोड़ी बच्चों को कम्प्यूटर सिखा रही है…

माइक लिबेकी अपनी 14 साल की बेटी लिलियाना के साथ अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के एक गांव में रहते हैं। तमाम परेशानियों के बीच बाप-बेटी की यह जोड़ी इलाके के बच्चों को कम्प्यूटर सिखा रही है। नेशनल ज्योग्राफिक के रिसर्चर माइक लिबेकी और उनकी 14 वर्षीय बेटी लिलियाना ने दुनिया के कई देशों की यात्राएं की, लेकिन अरुणाचल की यात्रा बाप-बेटी की इस जोड़ी के लिए काफी अलग रही। अब अरुणाचल के तवांग में यह जोड़ी बच्चों को कम्प्यूटर सिखा रही है। तवांग जिला में एक कम्युनिटी स्कूल चलता है, जिसमें 90 छोटे-छोटे बच्चों से लेकर किशोर उम्र के छात्र पढ़ने आते हैं।

इनके द्वारा चलाए जा रहे ‘झमत्से गत्सल चिल्ड्रन कम्युनिटी’ सेंटर में बच्चों के पालन-पोषण से लेकर पढ़ाई तक की व्यवस्था की गई है। इन बच्चों को कम्प्यूटर सिखाया जा रहा है। बाप-बेटी की जोड़ी को इस काम में आईटी कंपनी डेल भी मदद दे रही है। कंपनी के कई कर्मचारी यहां इनके साथ काम कर रहे हैं। इस केंद्र में 20 नए लैपटॉप, नए प्रिंटर, इंटरनेट की सुविधा दी गई है। तवांग के बच्चों और टीचर्स को कम्प्यूटर का ज्ञान दिया जा रहा है। कम्प्यूटर केंद्र और कम्युनिटी की अन्य इमारतों में बिजली के लिए सौर ऊर्जा पैनल और सौर जनरेटर भी लगाए गए हैं। माइक लिबेकी इस बारे में कहते हैं, हम कम्युनिटी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इस केंद्र में शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चे या तो अनाथ हैं या पारिवारिक समस्याओं के कारण यहां रहने आए हैं। ये ऐसे बच्चे हैं, जिनके परिवार में कभी किसी बच्चे को पढ़ाई करने का मौका नहीं मिला और ये शिक्षा पाने वाले अपने परिवार की पहली पीढ़ी के बच्चे हैं।

उन्होंने आगे कहा, हमने यहां अनाथ बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के मकसद से सौर ऊर्जा की व्यवस्था और कम्प्यूटर लैब व इंटरनेट की सुविधा दी है। समुदाय के लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे कालेज जाएं। कम्प्यूटर और इंटरनेट के बगैर वे पीछे रह जाएंगे और अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाएंगे। आज हम जिस दौर में रह रहे हैं, वहां प्रौद्योगिकी प्रगति की जरूरत है। कम्प्यूटर और इंटरनेट जैसी प्रौद्योगिकी के बिना प्रगति संभव नहीं है। माइक ने बताया कि तवांग में सभी उपकरण अमरीका से मंगाए गए हैं और डेल के कर्मचारियों ने यहां इन उपकरणों की संस्थापना में मदद की है।

उन्होंने कहा, सिर्फ  कम्प्यूटर स्थापित करना काफी नहीं था। हमें यह भी सुनिश्चित करना था कि बच्चे इनका इस्तेमाल करने में सक्षम हो पाएं। इसलिए उनको समुचित ढंग से प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जब कभी कोई समस्या हो, तो उन्हें तकनीशियनों से मदद मिले। हमें यह भी सुनिश्चित करना था कि सिस्टम सौर ऊर्जा से संचालित हो क्योंकि इस तरह के दूरदराज के इलाकों में प्रायः बिजली नहीं होती है।

जब उन्होंने काम शुरू किया तो अच्छे नतीजे देखने को मिले और अनुभव संतोषजनक रहा। गत्सल चिल्ड्रन कम्युनिटी सेंटर के बच्चों ने पहली बार कम्प्यूटर देखा था। माइक बताते हैं, ‘छोटे-छोटे बच्चों ने जब लिलियाना को कम्प्यूटर चलाते और इंटरनेट का इस्तेमाल करते देखा, तो उनके चेहरे खिल गए।’ लिलियाना 14 साल की उम्र में 26 देशों की यात्राएं कर चुकी है और उसने यहां कम्प्यूटर लगाने में अपने पिता की मदद की। उसे कम्प्यूटर चलाते देख बच्चे ही नहीं, यहां के शिक्षक और अन्य कर्मी भी रोमांचित थे। उनमें सीखने की लालसा बढ़ गई।

माइक आगे कहते हैं, हर समय हम समुदाय से जुड़ते हैं और हमें उनसे जो मिलता है, उसकी एवज में उन्हें कुछ वापस करने की कोशिश करते हैं, क्योंकि हम उनको जो देते हैं, उससे ज्यादा हमें मिलता है। हमारे पास जो अवसर हैं, वे उनके पास नहीं हैं और उनकी जिंदगी में थोड़ा बदलाव लाकर सचमुच हमें बड़ी तसल्ली मिलती है। हम उनको कम्प्यूटर और इंटरनेट प्रदान कर रहे हैं।

माइक का कहना है कि वे इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल एक औजार के रूप में कर रहे हैं, ये बच्चे भी अन्य लोगों की तरह ही कालेज जाना चाहते हैं, तो फिर इन सुदूर इलाके के बच्चों को भी हमारी तरह अवसर क्यों न मिलें। इसी दिशा में हम अपना काम कर रहे हैं। वह कहते हैं कि अगर वे अपने योगदान से एक समुदाय के जीवन में बदलाव लाते हैं, तो उससे हजारों लोगों के जीवन में बदलाव आ सकता है, क्योंकि इस तरह की पहलों का प्रभाव दूर तक जाता है। जो आज इस प्रयास से लाभ उठा रहे हैं, उनको जब कभी मौका मिलेगा, वे दूसरों की जिंदगी में बदलाव लाने की कोशिश करेंगे।


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