भारत-पाक रिश्ते और नवाज शरीफ

By: Jul 16th, 2018 12:10 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

नवाज शरीफ को लगा था कि एक निर्वाचित प्रधानमंत्री के रूप में अगर वह सेना की सहायता लेते हैं, तो उनकी समस्या का समाधान हो जाएगा। किंतु सेना ने एक बयान जारी कर स्पष्ट किया कि नवाज ने सहायता मांगी थी, किंतु सेना अध्यक्ष ने इसे मंजूर नहीं किया। सेना ने यह भी स्पष्ट किया कि एक लोकतांत्रिक ढांचे में उसकी भूमिका देश की रक्षा तक सीमित है, देश का शासन चलाना उसके दायरे से बाहर है। वास्तव में नवाज शरीफ अपने प्रति दया भाव पैदा करना चाहते थे। उनके कुशासन के कारण लोग उनसे दूर हो गए। लोग चाहते थे कि वह तथा उनके भाई अर्थात पंजाब के मुख्यमंत्री शहबाज शरीफ अपने पद छोड़ दें तथा देश में मध्यावधि चुनाव हों…

पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने दूसरी बार लोकप्रिय ढंग से निर्वाचित प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को 10 साल के कारावास की सजा सुनाई है। इस फैसले के खिलाफ सामान्य टिप्पणी यह है कि यह कठोर फैसला है। नवाज शरीफ, जिन्होंने इस फैसले को लंदन में सुना, ने कहा कि वह पाकिस्तान लौटेंगे। हालांकि सत्ता के करीब सूत्र बताते हैं कि जैसे वह पाकिस्तान पहुंचेंगे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। एक बार फिर ऐसा लग रहा है कि असैन्य शासकों व सेना के बीच संघर्ष बढ़ता जा रहा है। शायद सेना को यह बात पसंद नहीं आई कि जिस तरह लोगों ने अपना दावा दृढ़ता के साथ रखना शुरू कर दिया था। स्पष्ट है कि नवाज शरीफ उन लोगों के हाथ की कठपुतली नहीं बनना चाहते थे, जो खाकी को वोट करते हैं। सेना ने यह आकलन कर लिया था कि अगर नवाज शरीफ दोबारा सत्ता में आते हैं तो यह उसकी सत्ता के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। नवाज शरीफ के पास इतनी दौलत है कि वह इससे भी बड़ा जुर्माना अदा कर सकते थे। सुप्रीम कोर्ट असमंजस में थी। एक ओर यह सेना को उकसाना नहीं चाहती थी, तो दूसरी ओर यह नवाज शरीफ के साथ न्याय करना चाहती थी। इसलिए इसने अधिकतम सजा सुनाई, वह भी कानून के दायरे में रहते हुए। मैं नवाज शरीफ से लंदन की हृदयस्थली में स्थित उनके आलीशान फ्लैट में मिला था। बहुतायत में दौलत की मौजूदगी ने मुझे हैरान नहीं किया क्योंकि इस उपमहाद्वीप के कई नेताओं के इंग्लैंड में फ्लैट हैं। अंगे्रजों द्वारा 150 वर्ष के शासन ने उनके दिलों में यह बात पैदा कर दी कि लंदन ऐश्वर्य और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।

नवाज शरीफ ने मुझे नाश्ते पर बुलाया था। वहां खाने के मेज पर सबसे बढि़या मांसाहारी डिश मौजूद थीं। उनके परिवार की पाकिस्तान व सऊदी अरब में कई फैक्टरियां हैं। इसलिए मुझे इस बात पर हैरानी नहीं हुई कि उनकी पत्नी व बेटी के लंदन में अलग-अलग फ्लैट हैं। जहां तक नवाज शरीफ का संबंध है, उन पर कोई आरोप नहीं लगे हैं। उन्होंने बचाव में इसी तथ्य को लेकर दलील दी है। आरोप की सत्यता निश्चित करना कठिन है। जब देश में केवल सेना के शब्दों का ही कोई महत्त्व हो तो हर आरोप को नमक की चुटकी की तरह लेना पड़ता है। यह सत्य है कि पाकिस्तान में न्यायपालिका स्वतंत्र रही है, किंतु उसे उस स्थिति से बचना होता है जो सेना के लिए एक चुनौती की तरह हो।  ऐसा लगता है कि सभी दबावों और धमकियों के बावजूद जुल्फिकार अली भुट्टो को दी गई फांसी का सजा का दो न्यायाधीशों ने विरोध किया था। उन्होंने चुपके से देश को छोड़ दिया था क्योंकि उन्हें अपनी जान का खतरा था। नवाज शरीफ प्रतिकूल फैसले से भागना नहीं चाहते हैं। उन्होंने कहा है कि वह पाकिस्तान लौटेंगे तथा कारावास की सजा को झेलेंगे। निर्वाचित नेताओं को यह कीमत अदा करनी होती है ताकि उनकी लोकप्रियता बनी रहे। अन्यथा इससे यह संदेश जाएगा कि अगर न्यायालय उनके खिलाफ फैसला देते हैं तो वे उसका सम्मान नहीं करते हैं। पाकिस्तान में एक समय ऐसा भी आया जब लोग लोकतांत्रिक प्रणाली की रक्षा के लिए सड़कों पर उतर आए। वे उस सेना का विरोध कर रहे थे जिसकी इच्छा देश के मामलों में अहम भूमिका निभाने की थी। आज वही लोग चाहते हैं कि सेना उनके बचाव को आगे आए, चाहे उनके देश में लोकतंत्र का शेष ढांचा किसी भी रूप में बचा हो। यह बात देखने में तब आई जब निर्वाचित प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सेना अध्यक्ष जनरल राहिल शरीफ से मिले और उनसे आग्रह किया कि वे उनकी सहायता करें।

नवाज शरीफ को लगा था कि एक निर्वाचित प्रधानमंत्री के रूप में अगर वह सेना की सहायता लेते हैं, तो उनकी समस्या का समाधान हो जाएगा। किंतु सेना ने एक बयान जारी कर स्पष्ट किया कि नवाज ने सहायता मांगी थी, किंतु सेना अध्यक्ष ने इसे मंजूर नहीं किया। सेना ने यह भी स्पष्ट किया कि एक लोकतांत्रिक ढांचे में उसकी भूमिका देश की रक्षा तक सीमित है, देश का शासन चलाना उसके दायरे से बाहर है। वास्तव में नवाज शरीफ अपने प्रति दया भाव पैदा करना चाहते थे। उनके कुशासन के कारण लोग उनसे दूर हो गए। लोग चाहते थे कि वह तथा उनके भाई अर्थात पंजाब के मुख्यमंत्री शहबाज शरीफ अपने पद छोड़ दें तथा देश में मध्यावधि चुनाव हों।  इसके बावजूद नवाज शरीफ के पास एक प्रस्ताव था जो संसद ने उनके समर्थन में पारित किया था। किंतु तहरीके-इनसाफ के मुखिया इमरान खान तथा पाकिस्तान अवामी तहरीक के मुखिया कादरी का इसको समर्थन नहीं मिल पाया। नवाज शरीफ का विरोध कर रहे कुछ विपक्षी नेता मध्यावधि चुनाव की मांग कर रहे थे। उनका विश्वास था कि लोगों को एक बार फिर यह तय करने का अधिकार दिया जाना चाहिए कि देश पर नवाज शरीफ शासन करें या फिर कोई अन्य। बहुत पहले की बात नहीं है जब नवाज शरीफ को सेना ने प्रधानमंत्री पद से हटा दिया था। उस समय भी उन्होंने सेना प्रमुख से स्थिति में हस्तक्षेप करने की मांग की थी परंतु वह सुनी नहीं गई। उन्हें तब यह एहसास नहीं था कि अगर सेना को लगा तो वह देश का शासन अपने हाथ में भी ले सकती है। यही कारण है कि नवाज शरीफ ने इस बात को रेखांकित करते हुए एक वक्तव्य दिया कि संसदीय लोकतंत्र में सेना की भूमिका महज अस्थायी होती है। विभाजन के बाद मैं दिल्ली में नवाज शरीफ से उस वक्त मिला था जब वह मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उन्होंने यह कहने में देर नहीं लगाई कि मैं सियालकोट से था। उन्होंने मुझसे कहा था कि जिस तरह की पंजाबी मैं बोलता हूं, उसका अलग फ्लेवर है तथा उसे केवल सियालकोट के लोग ही बोल सकते हैं। जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाहौर में नवाज शरीफ से मिले थे, तो वह एक नए अध्याय की शुरुआत कर सकते थे। उस स्थिति में दोनों देशों में मित्रता हो गई होती तथा दोनों देश एक-दूसरे को आर्थिक रूप से लाभ पहुंचा सकते थे। पूंजीगत वस्तुओं के आयात व निर्यात के लिए अभी हम दुबई का प्रयोग करते हैं, अगर भारत-पाक में मित्रता हो गई होती तो दोनों में सीमा पार व्यापार की शुरुआत हो गई होती।

उस समय मोदी का यह वक्तव्य कि दोनों देश निकट आ रहे हैं तथा सीमा पार आवाजाही को शीघ्र ही कोई औपचारिकताएं नहीं निभानी पड़ेंगी, यह काम बहुत पहले हो जाना चाहिए था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इस दृष्टि से एक विजन वाले प्रधानमंत्री थे तथा सीमा पर आवाजाही की बात उन्होंने भी सोची थी। मोदी ने उनका अनुशीलन करने की कोशिश की थी। लाहौर से लौटकर उन्होंने उन वाजपेयी से भी बात की थी, जिन्हें भाजपा का उदारवादी चेहरा माना जाता है। किंतु दुर्भाग्य की बात है कि मोदी के ये प्रयास यहां से आगे नहीं बढ़ पाए और भारत-पाक आज भी एक-दूसरे के सामने खड़े हैं। अब नवाज शरीफ 10 साल का कारावास भुगतेंगे। लोग यह देखना चाहेंगे कि उन पर जो आरोप लगे हैं, उस संबंध में अभियोजकों के पास कोई ठोस सबूत हैं भी या नहीं?

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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