मालरोड पर मुख्यमंत्री 

By: Jul 17th, 2018 12:05 am

भारतीय इतिहास के सबूतों-प्रतीकों के साथ शिमला का मालरोड वैचारिक चश्मे की तरह बहना जानता है, इसलिए जब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर रविवार को टहलते हैं तो सियासी घटाएं भी दस्तक देती हैं। सरकार की तफतीश के निरंतर सिलसिले इसी मालरोड की जुबान बन जाते हैं और तब कॉफी हाउस के संकरे से कोने की दीवारें भी चश्मदीद गवाह बनकर भांप लेती हैं सियासत के कमजोर संबोधन भी। मुख्यमंत्री का सचिवालय के बाहर मालरोड तक का सफर एक तरह से इरादों की झलक और झलकते परिदृश्य से रू-ब-रू होने की मंशा ही मानी जाएगी। जनता से सीधा संपर्क न तो किसी मंच के मार्फत हो सकता और न ही सचिवालय की फाइलों के मंचन से निगाहें सब कुछ ढूंढ सकती हैं। विडंबना यह है कि सार्वजनिक भूमिका में सरकारों के कदम कई बार धरती के बजाय, उस शोर की गवाही में गुम हो जाते हैं, जहां कतारबद्ध जनता केवल दर्शनार्थी होती है, ताकि किसी तरह जनप्रतिनिधियों के दीदार ही सही। बहरहाल मालरोड हर किसी को चलना सिखाता है और विचारों की संगत में टहलने का इससे बढि़या कहीं अन्यत्र मौका नहीं मिलता। राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने जनता के बीच पहुंचने की कुछ इसी तरह की शुरुआत हमीरपुर से की थी, तो वहां के बाजार को मालरोड की तरह वाहन रहित करने की मांग उभर आई थी। कमोबेश हिमाचल के हर शहर में ऐसी वाहन वर्जित सड़कों की जरूरत है, जहां सरकार और समाज एक साथ टहल सकें। सरकार और जनता के बीच प्रदर्शन और अपेक्षाओं की दूरी का हल भी यही है कि मंचों के बजाय कदमों की आहट जमीन सुने। बेशक जनमंच के मार्फत सरकार का किरदार सक्रिय दिखाई देने लगा है, फिर भी है तो यह मंच सरीखा और इसीलिए फैसलों की दरकार में दरकते सुशासन की पूरी तरह जांच नहीं होती। इसके विपरीत सोचना यह होगा कि जनता की भाषा को कैसे सुना जाए और जनता के बीच कैसे चला जाए। मुख्यमंत्री ने सचिवालय का दरवाजा मालरोड की दिशा में खोलकर जनता के समूह में खुद को तलाशा है तो यही भावना हर मंत्री और विधायक से अपेक्षित रहेगी। दुर्भाग्यवश सत्ता की गिनती सामान्य नहीं होती और न ही मंत्रीगण कार्यकर्ताओं की भीड़ से अलग जनता को पहचान पाते हैं। जो परिक्रमा मंत्रियों के जज्बात से निकल कर आम नागरिक के इर्द-गिर्द होनी चाहिए, उसके दायरे संकीर्ण हो जाते हैं। क्षेत्रवाद, जातिवाद या परिवारवाद के समीप अगर सरकार का होना सुनिश्चित होता रहेगा, तो सक्रिय मंत्री भी असंतुलन का पैमाना ही साबित होगा। यह होता रहा है और यह वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी दिखाई दे रहा है, क्योंकि हर विभाग से संबंधित मंत्री सर्वप्रथम अपने ही क्षेत्र को रेखांकित कर रहे हैं। जो समारोह, शासकीय आयोजन या बैठकें किसी उद्देश्यपूर्ण तथा वांछित स्थलों पर होनी चाहिएं, वे मंत्रियों की खुशामद के लिए उनके विधानसभा क्षेत्रों की अमानत बन रही हैं। शायद इसीलिए जिलों का प्रशासन भी आदतन एकतरफा नजर आ रहा है। अधिकारियों की अपनी सत्ता, बदलती हर सत्ता से भी इस कद्र मजबूत हो चुकी है कि जनता और सरकार के बीच संवाद के स्थायी पुल भी ढह रहे हैं। जिस अधिकारी को फील्ड में होना चाहिए, वह राजनीतिक मंच पर जगह ढूंढता है या दफ्तर की कुर्सी पर आराम फरमा रहा होता है। अधिकारी घूमे होते तो हिमाचल में एक साथ इतने होटल अवैध न होते। पानी-बिजली की सप्लाई दोषपूर्ण न होती और न ही जनता को सामान्य कार्य के लिए सरकार के कान ढूंढने पड़ते। हैरानी यह कि जिस स्वच्छता अभियान की मेजबानी आला अधिकारी कर रहे होते हैं, उसी चिराग के नीचे उनके दायित्व की इमारत गंदगी से अटी पड़ी होती है। ऐसे में मुख्यमंत्री जिस भावना से मालरोड पर निकले, उसी प्रकार प्रदेश के हर प्रवास के दौरान दोहराएं। अगर सुबह की राजनीतिक व सरकारी सैर जिला मुख्यालयों पर भी होने लगे, तो मालूम होगा कि प्रशासन की आंखें कितनी आरामपरस्त हो चुकी हैं। विभागीय तौर पर हफ्ते में एक दिन मुकर्रर करते हुए, अगर अधिकारी-कर्मचारी कार्यालय में स्वच्छता अभियान चलाएं और मेज पर अटीं फाइलें हटाएं, तो जनता को खबर होगी। यहां यह भी जरूरी है कि मुख्यमंत्री के कदमों की आहट हिमाचल के प्रमुख कस्बों में भी सुनी जाए, लेकिन इससे पूर्व मालरोड की तर्ज पर सड़कें वाहन वर्जित और टहलने के लिए आवश्यक अधोसंरचना का निर्माण करना होगा। बहरहाल मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की चहलकदमी ने राजधानी का अक्स बदला है, ताकि जनता के समूह में सरकार दिखाई दे।


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