मेडिटेशन सोई हुई आत्मा जगाता है

By: Jul 28th, 2018 12:05 am

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डा. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं ‘मेडिटेशन’ पर उनके विचार …

गतांक से आगे…

एक बार जब आप निश्चित संख्या तक मनके गिनने शुरू करते हैं तथा यदि आप अब भी माला फेर रहे हैं, तो यह अनुपयोगी है। व्यक्ति को प्रगामी बनना पड़ता है। यह बेतुका है कि आप एकाग्रता पाने के बाद उसी चीज पर प्रेक्टिस करते रहें। शांत चित के लिए कुछ समय के लिए मेडिटेशन करना समझ योग्य बात है, किंतु इसमें हमेशा लगे रहने या फंसे रहने का कोई अर्थ नहीं है। अनुत्पादक मेडिटेशन का क्या प्रयोग है? यह समय व ऊर्जा को व्यर्थ गंवाने के समान है। यह बेहतर होगा कि सुबह जल्दी जाग जाएं तथा कुछ अच्छी पुस्तकें पढ़ें। अद्भुत समझ की बिरली कौंध आप महसूस कर सकते हैं। तथाकथित मेडिटेशन एक अनुपयोगी परंपरा है। यह अपने आप पर शर्तें लागू कर रही है। मेडिटेशन का अभ्यास 7.30 बजे ही क्यों करें, 8.25 बजे क्यों नहीं? इसके अलावा 15 मिनट ही क्यों करें, 20 मिनट क्यों नहीं? हमें मेडिटेशन की जरूरत अपनी सोई आत्मा को जगाने, अपने आप को प्रकाशित करने तथा उसकी इच्छाओं अर्थात प्रकृति के नियमों को समझने के लिए है। सोई हुई आत्मा वाले लोग बकरों का वध करते जाते हैं तथा इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। अपने पशुता संसार को प्रकाशमान करें ताकि आपकी आत्मा का विकास हो सके। यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि हम उसकी इच्छाओं के अधीन हैं। हम अपने दिमाग से अपनी अज्ञानता को बख्श देते हैं तथा दावा करना शुरू कर देते हैं कि मैं यह करूंगा, वह करूंगा। ऐसा करके हम अपने आप को कठिनाई में डाल देते हैं। जानवर अपने स्वभाव के अनुरूप जीते हैं तथा उन्हें कोई परंपरा नहीं निभानी पड़ती है। अगर व्यक्ति की प्रगति परंपराओं, जो उस पर पाबंदियां लगाती हैं, के कारण अवरुद्ध हो जाती है तो अव्यवस्था फैल जाएगी। आदमी अपने दिमाग में सोचता तथा योजना बनाता है, किंतु जानवर अपने शरीर के स्तर पर जीता है। परंपराओं का एक स्याह पक्ष भी है। ये आदमी को धोखेबाज बनाती हैं। वह धोखे के जरिए अपनी कामनाओं की तुष्टि में लगा रहता है। वह चालाकी से जीना शुरू कर देता है। समाज ने इसलिए नियम बनाए ताकि आदमी एक जानवर की तरह व्यवहार न करे तथा अगर वह शक्तिशाली है तो दूसरों की चीजें न छीने। इस बात ने मानव के दिमाग में दोषी का भाव पैदा किया है। एक जानवर वहां पर उस समय मौजूद स्थिति के अनुरूप व्यवहार करेगा, लेकिन आदमी को पहले योजना बनानी पड़ती है। हमें मेडिटेशन की जरूरत अपने आप को समझने तथा एक आदमी की तरह व्यवहार करने के लिए है।

समाधि

समाधि क्या है? यह सम तथा आदि से बना शब्द है जिनके क्रमशः अर्थ हैं समान तथा भीतरी। आदि का अर्थ शुरू से भी है। इस स्थिति में आप स्वयं बेअसर हो जाते हैं। आप वहां मौजूद नहीं होते हैं। आप अपने से अपनत्व को हटाकर उसकी अर्थात भगवान की तरह हो जाते हैं। इस गहन एकाग्रता में आप वहां नहीं होते हैं और यह दिमाग की अपनत्व विहीन स्थिति होती है, आप सामान्य स्तर से ऊपर उठ चुके होते हैं। समाधि का मतलब उस जैसे होने से है तथा अब आपके पास न्याय की एक दृष्टि होती है।  समाधि की अवस्था में आप अपनत्व, इच्छा, अच्छा व बुरा से मुक्त होते हैं। समाधि अवचेतन की अपेक्षा चेतना है। आपका दिमाग चेतना की स्थिति में होता है। ध्यानप्रार्थना में आप सोचते हैं। आपको एक कार की जरूरत है। आप सोचते हैं कि किस मित्र से यह मांगी जानी चाहिए। समाधि में आप सोचना बंद कर देते हैं। आपने दोस्त से कार पा ली है। अब आप इसे पाने की सोचते नहीं हैं, क्योंकि इसकी जरूरत नहीं रह जाती। आप संतोष की स्थिति में पहुंच जाते हैं।


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