लोक अदालत में मनरेगा मजदूरों की जीत

By: Jul 16th, 2018 12:05 am

सिविल जज अशोक वत्सल ने हित में सुनाया फैसला; बोले, न्यूनतम दिहाड़ी दें पंचायतें

चैलचौक – सिविल जज गोहर व चेयरमैन लोक अदालत अशोक कुमार वत्सल ने कहा है कि मनरेगा श्रमिकों को राज्य सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम दिहाड़ी देनी होगी और यह उनका संवैधानिक अधिकार है। शनिवार को गोहर कोर्ट परिसर में आयोजित लोक अदालत के समक्ष सराज विकास खंड की घाट पंचायत की 26 शिकायतों का निपटारा करते हुए लोक अदालत ने श्रमिकों को न्यूनतम दिहाड़ी देने के आदेश पारित करते हुए कहा कि श्रमिकों का काम श्रम करना है और श्रम करवाना कार्यान्वयन एजेंसी की जिम्मदारी है। इसके लिए श्रमिकों को कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता। पूरी दिहाड़ी लेना श्रमिकों का अधिकार है, जिससे उन्हें वंचित नहीं किया जा सकता। खंड विकास अधिकारी सराज जगदीप ने लोक अदालत के समक्ष बयान दिया कि वह घाट पंचायत के श्रमिकों को न्यूनतम दिहाड़ी देना सुनिश्चित करेंगे। बीडीओ सराज के बयान के बाद लोक अदालत ने घाट पंचायत के सभी मामलों का निपटारा कर दिया। गौरतलब है कि घाट पंचायत में मनरेगा श्रमिकों को कथित असेस्मेंट के बाद 13 रुपए से लेकर 45 रुपए तक दिहाड़ी दी गई थी, जिस पर 26 मनरेगा श्रमिकों ने अधिवक्ता हेम सिंह ठाकुर के माध्यम से लोक अदालत में शिकायतें दर्ज करवाई थीं। लोक अदालत के फैसलों का स्वागत करते हुए मनरेगा मजदूरों के अधिवक्ता हेमसिंह ठाकुर के अनुसार पंचायतों में असेस्मेंट के आधार पर मनरेगा श्रमिकों को दिहाड़ी देना गैरकानूनी है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 23 में प्रदत्त नागरिकों के अधिकारों की अवहेलना है। हेमसिंह ठाकुर ने बताया कि हिमाचल सरकार ने प्रदेश में मनरेगा की दिहाड़ी 184 रुपए निर्धारित कर रखी है। मनरेगा कार्यान्वयन में लगी पंचायतें मनरेगा मजदूरों को 184 रुपए से कम दिहाड़ी नहीं दे सकतीं, अगर किसी पंचायत में ऐसा हो रहा है तो वह कानून की अवहेलना है।


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