संगीत और योग बनाएंगे विद्यार्थियों को निरोग

By: Jul 17th, 2018 12:05 am

डा. राजेश चौहान

लेखक शिमला से हैं

विद्यार्थी शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं। ऐसे में संगीत तथा योग विषय उनका सर्वांगीण विकास करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। जहां संगीत उन्हें मानसिक तनाव से दूर करेगा, वहीं योग शारीरिक रूप से स्वस्थ रखेगा…

हिमाचल प्रदेश सरकार ने संगीत तथा योग विषय को स्कूलों में पढ़ाने का निर्णय लिया है। इस संदर्भ में हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग द्वारा पाठ्यक्रम भी तैयार किया जा रहा है। सरकार के इस निर्णय से प्रदेश के स्कूलों में चल रहे शिक्षा के स्तर को सुधारने में काफी सहायता मिलेगी। वर्तमान समय में हिमाचल प्रदेश के स्कूलों में ये विषय न के बराबर पढ़ाए जाते हैं। वर्तमान समय में प्रतिस्पर्धात्मक शिक्षा की होड़ में विद्यार्थी किताबों तले दब चुके हैं। परिणामस्वरूप मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं, जिसका असर उनके परीक्षा परिणामों तथा स्वास्थ्य पर स्पष्ट देखा जा सकता है। विद्यार्थी शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं। ऐसे में संगीत तथा योग विषय उनका सर्वांगीण विकास करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। जहां संगीत उन्हें मानसिक तनाव से दूर करेगा, वहीं योग शारीरिक रूप से स्वस्थ रखेगा। सरकार के इस फैसले से हिमाचल प्रदेश में संगीत तथा योग विषय में डिग्री धारक सैकड़ों बेरोजगार युवाओं को भी रोजगार मिलेगा। सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी विद्यालयों में संगीत का विषय न होने के कारण निजी विद्यालयों में पढ़ रहे छात्रों से पिछड़ जाते हैं। छात्रों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए निजी विद्यालय संगीत तथा योग विषय की शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में विद्यालयीय परिवेश एवं कक्षा-कक्षों का वातावरण, प्रजातांत्रिक बाल मैत्रीपूर्ण तथा दंड एवं भयमुक्त बनाने पर बल दिया गया है। अपनी पसंद का विषय पढ़ना भी इसी अधिकार के अंतर्गत आता है। इस अधिकार के तहत विद्यार्थी के इच्छित विषय को विद्यालय में पढ़ाने का प्रावधान करवाना सरकार का दायित्व है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहे गरीब एवं मध्यम वर्गीय परिवारों के लाखों विद्यार्थी इन महत्त्वपूर्ण विषयों से अभी तक वंचित हैं। ये विद्यार्थी भी योग, गायन, तबला, हारमोनियम, सितार, नृत्य आदि विधाएं सीखना चाहते हैं, लेकिन विद्यालय में विषय न होने के कारण नहीं सीख पा रहे हैं। परिणामस्वरूप इनकी प्रतिभा विद्यालयी स्तर पर ही धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। शिक्षण में गीत-संगीत का महत्त्व निर्विवाद स्वीकार्य है। वहीं योग की मदद से स्वस्थ शरीर संभव है, क्योंकि इससे सारे शरीर के रोगों का निदान होता है। योग केवल शरीर को ही बलशाली नहीं बनाता है, बल्कि यह मन-मस्तिष्क को कार्य के प्रति जागरूक भी करता है। दृष्टिगोचर है कि विद्यालयों का गंभीर और अरुचिकर वातावरण बच्चों को न केवल शिथिल एवं थका देता है, अपितु उन्हें निस्तेज भी कर देता है। सुबह विद्यालय में प्रवेश करते हुए उत्साह-उल्लास से भरे, हंसते-खिलखिलाते, फूल से सुकोमल चेहरे घर जाते समय मुरझाए और निर्जीव से दिखाई पड़ते हैं। लगातार पढ़ाई से बच्चे विद्यालय में घुटन और पीड़ा झेलने को विवश होते हैं। वे समय-सारिणी के अनुकूल जीने को मजबूर होते हैं। घंटी बजती है, विषय बदलते हैं, शिक्षक बदलते हैं, लेकिन नहीं बदलता तो वह बच्चों को मुंह चिढ़ाता डरावना, बोझिल वातावरण और पारंपरिक शिक्षण का तरीका। परिणामस्वरूप बच्चे निष्क्रिय रहते हैं और उनका सीखना बाधित होता है। विद्यार्थियों की अध्ययन क्षमता को बढ़ाने के लिए शिक्षण के दौरान माहौल को रुचिपूर्ण एवं आनंददायी बनाने के लिए बीच-बीच में प्रेरक चेतना गीतों का प्रयोग करके न केवल बच्चों का मन जीता जा सकता है, बल्कि उनका मानसिक तनाव भी दूर किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त विषयवस्तु को सांगीतिक रूप प्रदान कर उनके लिए सहज ग्राह्य भी बनाया जा सकता है। प्रारंभिक शिक्षा में गिनती, पहाड़े, कविताएं, कहानियां तथा भाषा ज्ञान गीत-संगीत के माध्यम से बड़ी सरलता से बच्चों को दिया जा सकता है। शिक्षण की इस तकनीक का प्रयोग विभिन्न देशों के साथ-साथ भारत के भी उच्च स्तरीय विद्यालयों में सफलता के साथ किया जा रहा है। सरकार की इन विषयों के प्रति सकारात्मक सोच अति सराहनीय है। विद्यालयी शिक्षा में हमारी प्राचीन संस्कृति से संबंधित विषयों को अनिवार्यता से पढ़ाया जाना चाहिए, केवल तभी हम पाश्चात्य संस्कृति की तरफ अग्रसर युवाओं को अपनी समृद्ध संस्कृति से अवगत करवा सकेंगे।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक


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