‘सिंडिकेट’ की सियासत या साजिश

By: Jul 18th, 2018 12:02 am

प्रधानमंत्री मोदी की मिदनापुर रैली में पंडाल गिरना और 13 महिलाओं समेत 67 लोगों का घायल होना, यह कोई सामान्य हादसा नहीं है। बेशक स्टील के ढांचे पर उत्साहित भीड़ के चढ़ने पर खंभा ढह गया हो और पंडाल भी धराशायी हुआ हो, लेकिन प्रधानमंत्री की रैली में ऐसी लापरवाही अक्षम्य है। शुक्र है कि कोई हताहत नहीं हुआ और प्रधानमंत्री भी सुरक्षित हैं, लेकिन जिस तरह ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने रैली स्थल की घेराबंदी की थी, अपनी नेता के पोस्टरों और कटआउट से वह इलाका पाट दिया था, प्रधानमंत्री की रैली नाकाम करने की कोशिशें की गईं, बेशक वे राजनीतिक साजिश का हिस्सा मानी जा सकती हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है या कोई ‘केलातंत्र’ है? ‘सिंडिकेट’ की बात प्रधानमंत्री मोदी ने की थी-‘बंगाल में सिंडिकेट की अनुमति के बिना कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। वंदे मातरम् और जन गण मन की धरती पर राजनीतिक माफिया का शासन…! यह माफिया तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति कर रहा है। बंगाल में पूजा-अनुष्ठान, महान परंपराएं और विरासत खतरे में हैं। विरोधियों की हत्या कराई जा रही है। पलटवार कर तृणमूल ने भाजपा को धार्मिक उन्माद, हत्याओं, अत्याचार और भ्रष्टाचार की ‘सिंडिकेट’ करार दे दिया। क्या 2019 का जनादेश ‘सिंडिकेट’ की इसी सियासत को हासिल होगा? इन आरोपों से हटकर बंगाल की स्थिति देखें, तो बेशक बदतर ही हुई है। ममता का बंगाल देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है। औसत प्रति व्यक्ति आय करीब 12 फीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत से बेहद कम है। किसान की औसत आय 4000 रुपए माहवार से भी कम है, जबकि पंजाब-हरियाणा सरीखे राज्यों में 18,000 रुपए से भी ज्यादा है। जिस मुस्लिम तुष्टिकरण की बात कोलकाता हाईकोर्ट ने भी कहकर राज्य सरकार को फटकार लगाई है, उस राज्य में 27 फीसदी मुस्लिम आबादी का मात्र 1.8 फीसद ही सरकारी नौकरी में स्थान हासिल कर पाया है। तुष्टिकरण भी जुबानी, बयानी और कागजी है! प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है कि ममता सरकार का न्यायपालिका में विश्वास नहीं है। चिट फंड चलाने, किसानों के लाभों को हड़पने तथा गरीबों पर अत्याचार करने के लिए ‘सिंडिकेट’ चलाया जा रहा है। बहरहाल बंगाल का दूसरा काला पक्ष भी देखते हैं। कानून-व्यवस्था का मुद्दा राज्य सरकार के अधीन होता है, फिर भी प्रधानमंत्री को निशाना कैसे बनाया गया? प्रधानमंत्री की रैली के दौरान पंडाल कैसे गिरा? बंगाल को ‘राजनीतिक हत्याओं का गढ़’ क्यों माना जाने लगा है? दरअसल जो हिंसात्मक और हत्यारी इकाइयां वाममोर्चा सरकार के दौरान सक्रिय थीं, वे आज ममता राज में कहीं अधिक हो गई हैं। 2017 में ही 58 घटनाएं / हादसे हुए, जिनमें 9 लोग मारे गए और 230 लोग घायल हुए थे। 2018 में ही पुरुलिया (बंगाल) क्षेत्र में कई भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याएं की गईं। उसके बावजूद खुद ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी, केंद्रीय मंत्रियों समेत भाजपा को ‘उग्रवादी संगठन’ करार दिया था। क्या वह देश का अपमान नहीं था? यदि प्रधानमंत्री और मंत्री ‘उग्रवादी’ हैं, तो सत्तारूढ़ पक्ष के करीब 340 सांसद भी ‘उग्रवादी’ हैं क्या? दरअसल ममता बनर्जी अहंकारी, असहिष्णु, अराजक और अमर्यादित किस्म की राजनेता हैं। क्या लोकतंत्र में एक मुख्यमंत्री इतना बदजुबान भी हो सकता है? मिदनापुर में जो भी हादसा/ हंगामा हुआ है, उसकी उच्चस्तरीय जांच जरूरी है, क्योंकि निशाने पर देश के प्रधानमंत्री भी हो सकते हैं। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल सरकार से विस्तृत रपट मांगी है। दरअसल ममता बनर्जी और उनका गैंग किसी भी कीमत पर 2019 में प्रधानमंत्री मोदी को पराजित करने पर आमादा हैं, लिहाजा उन्हें संदेह के घेरे से बाहर नहीं रखा जा सकता। मिदनापुर में प्रधानमंत्री की यह प्रथम जनसभा थी। इस साल पांच और जनसभाएं करने का प्रधानमंत्री का कार्यक्रम तय है। मौजूदा रैली के दौरान पंडाल धराशायी होने के साथ-साथ भारी बारिश भी थी और मैदान में पानी भी भर गया था। उसके बावजूद प्रधानमंत्री की रैली में जनसमूह उमड़ा और प्रधानमंत्री मोदी के ‘युगांतकारी संबोधन’ का साक्ष्य बना। प्रधानमंत्री की लोकप्रियता साबित हुई। इस बार बंगाल में 22 लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य है भाजपा का और खास फोकस जंगलमहल इलाके पर है। उसके तहत मिदनापुर, पुरुलिया और झारग्राम जिले आते हैं। यहां पंचायत चुनावों में भाजपा ने अच्छी कामयाबी हासिल की है और अब वह तृणमूल के बाद बंगाल की दूसरी ताकतवर राजनीतिक पार्टी है। 2019 के चुनावी नतीजे क्या होंगे, हम अभी से मीमांसा नहीं कर सकते, लेकिन चुनाव लोकतांत्रिक ढंग से लड़े जाएं, वही हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती होगी। बांग्लादेश से जो लगातार घुसपैठ हो रही है, रोहिंग्या मुसलमानों को बसेरा और राहत मुहैया कराई जा रही है, यह तुष्टिकरण नहीं है, तो और क्या है? ममता बनर्जी को संवैधानिक दायरों में रहकर काम करना होगा, नहीं तो संविधान में और कई प्रावधान भी हैं।


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