हिंदुत्व का मर्म समझने में राजनेता विफल

By: Jul 20th, 2018 12:10 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

हिंदुत्व के दुर्भावनापूर्ण प्रयोग का अधिक बुरा उदाहरण कांगे्रस नेता शशि थरूर ने पेश किया है जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की आलोचना करने के लिए अपने ट्वीट में कहा कि अगर अगले चुनाव में वह जीतती है तो भारत हिंदू पाकिस्तान बन जाएगा। इसने भारत में भारी विरोध को आकर्षित किया है और ऐसा केवल इसलिए नहीं हुआ कि यह मामला धार्मिक है, बल्कि इसलिए भी कि टिप्पणी दुर्भावनापूर्ण है क्योंकि हमारा संविधान पंथनिरपेक्ष है तथा चुनाव जीतता हिंदुत्व कल्पनातीत है…

श्रद्धोन्मत्त हिंदुओं व राजनीतिक क्षेत्र में आलोचकों के कारण हर जगह हिंदुत्व पर बहस होती रही है। राजनीतिक क्षेत्र में तो कुछ ताकतें ऐसी भी हैं जो इसका प्रयोग अपने ढंग से वोट प्राप्त करने के लिए करती रही हैं। इस दिशा में सबसे महत्त्वपूर्ण दावा राहुल गांधी का है जिन्होंने घोषित किया  कि वह जनेऊधारी हिंदू हैं तथा उस कांग्रेस की अध्यक्षता करते हैं जो तथाकथित मुस्लिम पार्टी है। केवल एक हिंदू ही अपनी पार्टी की ओर से प्रतिरोध के जोखिम के बिना यह  बात कह सकता था। पार्टी को आशा है कि इससे मुस्लिम मतदाता उनके पक्ष में हो जाएगा और इससे वह खुश भी है।

इसी समय भाजपा भी हिंदुत्व को राजनीतिक हित साधने के लिए प्रयोग कर रही है। दोनों दलों को हिंदुत्व की गहराई व उसकी गंभीरता को समझना होगा। भीड़ द्वारा हत्याएं, गौरक्षकों द्वारा हत्याएं, लव जेहाद व घर वापसी जैसे घटनाक्रम हर जगह बड़े पैमाने पर पब्लिसिटी तो करते हैं, परंतु उनका परिमाप न्यूनतम है, हालांकि मानसिक संकल्पना काफी विस्तृत है। यह हिंदुत्व का सार नहीं है। सार तो इससे भी बड़ा तथा आध्यात्मिक दृष्टि से सर्वांगीण है। हिंदुत्व के दुर्भावनापूर्ण प्रयोग का अधिक बुरा उदाहरण कांगे्रस नेता शशि थरूर ने पेश किया है जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की आलोचना करने के लिए अपने ट्वीट में कहा कि अगर अगले चुनाव में वह जीतती है तो भारत हिंदू पाकिस्तान बन जाएगा। इसने भारत में भारी विरोध को आकर्षित किया है और ऐसा केवल इसलिए नहीं हुआ कि यह मामला धार्मिक है, बल्कि इसलिए भी कि टिप्पणी दुर्भावनापूर्ण है क्योंकि हमारा संविधान पंथनिरपेक्ष है तथा चुनाव जीतता हिंदुत्व कल्पनातीत है।

इससे भी ज्यादा भाजपा देश के लोकतांत्रिक ढांचे के तहत चुनाव लड़ रही है तथा इसे धार्मिक राज्य में बदलने का कोई अभियान नहीं है। कोई भी व्यक्ति इस तरह के बेतुके व हास्यास्पद ट्वीट को गंभीरता से नहीं लेगा, परंतु  शशि थरूर विद्वान राजनेताओं में से एक हैं जो संयुक्त राष्ट्र में काम कर चुके हैं तथा वैश्विक वातावरण को अच्छी तरह समझते हैं। चूंकि वह ‘व्हाई आई एम हिंदू’ जैसी किताब लिखकर अपनी गंभीरता का परिचय दे चुके हैं, ऐसी स्थिति में उनसे इस तरह के बेहूदा ट्वीट की कोई अपेक्षा नहीं कर रहा था। इस किताब में भी उन्होंने गौरक्षा के नाम पर हत्याओं, लव जेहाद जैसी परिपाटियों की निंदा की है तथा बड़े स्तर पर धर्म-परिवर्तन को घिनौना कार्य माना है। उनके आलोचक उनकी इसलिए आलोचना करते हैं कि वह निजी स्तर पर धर्म-परिवर्तन को नाजायज नहीं ठहराते, खासकर तब जब वह धर्म को एक निजी मामला मानते हैं। अपनी पुस्तक में उन्होंने हिंदुत्व के तत्त्वों की व्याख्या करने में अपनी विद्वता सिद्ध करने का प्रयास किया है। लेकिन हिंदुत्व की विस्तृत व गहन ज्ञान-मीमांसा वर्षों के समर्पित अध्ययन का मसला है। मिसाल के तौर पर उनका यह कहना कि हिंदुओं का कोई भी देवता सेक्सलैस नहीं था, यह दर्शाता है कि सृष्टि-रचना की सृजनात्मकता को वह समझते नहीं हैं जो कि एक उच्च मूल्य है तथा प्रेम को इस धर्म में चार प्राथमिक मूल्यों-धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की तरह ही सम्मान दिया गया है। यह जीवन का अखंड मिशन है तथा किसी मुंबइया फिल्म का रोमांस नहीं है। विस्तृत दर्शन की उनकी समझ पर उस समय सवाल उठ खड़े होते हैं जब वह सवाल उठने पर फिल्मी गीत की तरह कहते हैं, ‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।’ वह गहनता व छिछोरेपन के बीच झूलते हैं।

जैसी उनकी हिंदुत्व के अध्यात्मविज्ञान को लेकर समझ है, वैसा ही है उनका ट्वीटर तक सीमित हिंदू पाकिस्तान वाला नारा। हिंदू प्रदर्शनों के खिलाफ महान चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन की उनके द्वारा पैरवी भी जायज नहीं लगती है। हुसैन मेरे घनिष्ठ मित्रों में से एक रहे हैं तथा मैंने उनका अनावश्यक आलोचना से बचाव करते हुए समर्थन भी किया था। साथ ही मैंने उन्हें कहा था कि देवी दुर्गा का उनके द्वारा चित्रण अश्लील है तथा इसे कोई स्वीकार नहीं करेगा।

इस बात में कोई संदेह नहीं कि नग्नता की अपनी-अपनी व्याख्याएं हैं तथा हिंदू धर्म उदारवादी है। यहां तक कि वैश्विक कलात्मक मूल्यांकन में भी नग्नता को सौंदर्य के करीब प्रतिष्ठित नहीं किया जा सकता। यह समस्या इसलिए उठी क्योंकि पहले सभी दल तथा मुख्यतः कांग्रेस मुस्लिम धर्म को वोट खींचने के उपकरण के रूप में प्रयोग कर रहे थे। वे प्राथमिकता से उनका समर्थन करते थे ताकि पार्टी के लिए वे वोट बैंक बने रहें। मुस्लिम इसी लाइन पर वोट करते रहे हैं, हालांकि अब उनमें से कुछ इस सियासी खेल को समझ चुके हैं। मुस्लिम मतदाताओं को किस प्रकार लुभाया जाता रहा है, यह बात तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस बयान से बखूबी समझी जा सकती है जिसमें उन्होंने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। वर्षों तक हिंदुओं से उनके बहुसंख्यक होते हुए भी पक्षपात होता रहा क्योंकि अन्यों को उन पर प्राथमिकता दी जाती रही। भाजपा के सरकार बनाने के बाद हिंदुओं ने समानता के लिए काम करना शुरू किया जिसकी संविधान में गारंटी दी गई है। इसने संतुलन को अव्यवस्थित कर दिया क्योंकि समर्थनवाद व तुष्टिकरण को अब कोई जगह नहीं रह गई है। यह वही है जिसे शशि थरूर पहले पहुंचाई गई पीड़ा का प्रतिशोध कहते हैं।

तथ्य यह है कि आज अगर कोई समानता की बात करता है तो उस पर प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है। वर्ग और जाति की राजनीति के कारण भी हिंदुओं को नुकसान झेलना पड़ा है। जबकि वेदों में जाति नहीं है तो वे अब एक क्यों नहीं हो सकते? हिंदू अब एक होने का दावा करते हैं, किंतु उन्हें अन्यों को भयभीत नहीं करना चाहिए क्योंकि धर्म सहिष्णुता में विश्वास रखता है, अन्य धर्म से जुड़े लोगों के संहार में नहीं।

सभी को यह समझने की जरूरत है कि हिंदुत्व अपने नजरिए में सार्वभौमिक है तथा यह सबकी भलाई की कामना करता है। विश्व में कोई भी ऐसा धर्म नहीं है, सिवाय हिंदू धर्म के, जो उन लोगों की भलाई भी चाहता है जो उसके अनुयायी नहीं हैं। दूसरी ओर कई धर्मों में गैर अनुयायियों को पूरी तरह खत्म कर दिया जाता है। हिंदू धर्म किसी पर पाबंदी नहीं लगाता है। स्वामी विवेकानंद ने विश्व सम्मेलन में कहा था, ‘मुझे उस धर्म से संबद्ध होने पर गर्व है जिसने विश्व को सहिष्णुता तथा सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया।’ हिंदुत्व की यही सच्ची आत्मा है।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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