हिमाचली भाषा का स्वरूप एवं दिशाएं

By: Jul 15th, 2018 12:05 am

अमरदेव आंगिरस

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत के विभिन्न प्रदेशों का गठन उनकी भौगोलिक स्थिति, इतिहास, संस्कृति एवं भाषा के आधार पर किया गया था। शिवालिक पहाडि़यों के अंतर्गत इसी परिप्रेक्ष्य में 15 अप्रैल, 1948 को हिमाचल प्रदेश का गठन हुआ था। हिमाचल का अभिप्राय ही था- ‘बर्फ की पहाडि़यों का प्रदेश’। उस समय राजनीतिक कारणों से हिमाचल के गठन में इसके कुछ पहाड़ी क्षेत्र पंजाब राज्य में ही रह गए थे, जिन्हें पहली नवंबर, 1966 के पुनर्गठन में हिमाचल में मिला दिया गया। ये क्षेत्र थे- कांगड़ा, कुल्लू, शिमला, लाहुल-स्पीति, नालागढ़, ऊना आदि। यह पुनर्गठन विशेष रूप से भाषा के आधार पर किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप पंजाब, हरियाणा तथा हिमाचल नए कलेवर में अस्तित्व में आए। गठन के समय प्रारंभ में नई सरकार ने पहाड़ी भाषाओं को अधिमान दिया और हिमाचल की भाषा पहाड़ी मानी गई, किंतु तात्कालिक स्थिति यह थी कि विभिन्न रियासती भाषाओं में प्रचलित किस पहाड़ी बोली को भाषा का दर्जा दिया जाए, यह असमंजस की स्थिति अवश्य थी। उस समय के गठित जिले चंबा, मंडी, बिलासपुर, सिरमौर और महासू थे, जिनकी अपनी बोलियां चंबयाली, मंडयाली, कहलूरी, सिरमौरी और महासूवी (क्योंथली) प्रचलित थीं। वस्तुतः हिमाचल प्रदेश जिसे कुछ लोग पुराना हिमाचल कहते हैं, इन्हीं रियासतों के मेल को कहा जाता था। हां, कुछ दिन पश्चात इनमें किन्नौर क्षेत्र भी मिला दिया गया था, जो नए जिले के रूप में गठित हुआ। इस समय की बोलियों पर विचार किया जाए तो रियासती (जिलों) विस्तृत क्षेत्र में बोली जाने वाली बोलियां भले ही मंडयाली, सिरमौरी, चंबयाली आदि रही हों, किंतु ऐतिहासिक एवं राजनीतिक कारणों से क्योंथली (महासूवी) एवं बघाटी महत्त्वपूर्ण एवं प्रमुख रहीं।  इसका कारण 1805 ई. के गोरखा-युद्ध में अंग्रेजों की विजय तथा समस्त ठाकुराइयों पर विजय के कारण अंग्रेजी कंपनी ने बघाट (सोलन) व क्योंथल (शिमला) को अपनी राजधानी और छावनियां ही नहीं बनाया, बल्कि यहां की भाषा संस्कृति को भी प्रमुखता दी। यह प्रशासन के लिए स्वाभाविक भी था। ये बोलियां शिमला एवं सोलन क्षेत्रों में प्रचलित थीं, अतः अंग्रेज सर्वेक्षकों ने ‘क्योंथली’ एवं ‘बघाटी’ के अंतर्गत ही अठारह ठकुराइयों ही नहीं, बल्कि कुल्लवी बोलियों को भी इनकी उपबोलियां मान लिया। 1895 में जार्ज ग्रियर्सन ने जो यहां भाषा-सर्वेक्षण किया, उसमें इसी प्रकार का वर्गीकरण मिलता है। जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन (1851-1941) ने लिंग्विंगस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया नाम से उत्तरी भारत की समस्त बोलियों का वर्गीकरण एवं विश्लेषण किया, जो बहुत ही वैज्ञानिक और व्यवस्थित सर्वेक्षण माना जाता है। आज तक भी इतना बड़ा कार्य नहीं हुआ है। इस सर्वेक्षण में वर्गीकरण के साथ बोलियों का क्षेत्र निर्धारण भी है, जिसमें कुछ विसंगतियां मिलती हैं। इसके कारण पहाड़ों की दूरियां तथा स्थानीय लोगों के पूर्वाग्रह अथवा अधूरी जानकारी हो सकते हैं। दक्षिण भारतीय भाषाओं को छोड़कर समस्त भाषाएं अपभ्रंश से निकली हैं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App