हिमाचल की विभूतियां

By: Jul 25th, 2018 12:05 am

पद्मदेव के मार्गदर्शन से आंदोलन में शामिल

ज्ञान चंद टुटू धामी प्रजामंडल के सक्रिय सदस्य बन गए और 1940 ई. में शिमला रियासती प्रजामंडल के महासचिव बन गए और 1940 ई. में इसके अध्यक्ष बने। बाद में वह कुनिहार, अर्की, कोटी, ठियोग, कुमारसैन व सिरमौर आदि प्रजा मंडलों से संबद्ध हो गए …

ज्ञान चंद टुटू

इनका जन्म 15 सितंबर, 1919 ई. को टुटू, शिमला में हुआ। बनारस विश्वविद्यालय में अपने आरंभिक शैक्षिक वर्षों में पंडित पद्मदेव के मार्गदर्शन में वह धामी आंदोलन में शामिल हो गए। वह धामी प्रजामंडल के सक्रिय सदस्य बन गए और 1940 ई. में शिमला रियासती प्रजामंडल के महासचिव बन गए और 1940 ई. में इसके अध्यक्ष बने। बाद में वह कुनिहार, अर्की, कोटी, ठियोग, कुमारसैन व सिरमौर आदि प्रजा मंडलों से संबद्ध हो गए। वह हिमालयन क्षेत्रीय परिषद के प्रतिनिधि थे और फिर इसके उपाध्यक्ष चुने गए। 1946 ई. में इन्होंने हिमालयन क्षेत्रीय परिषद से त्याग पत्र दे दिया। 1942 ई. में राजकुमारी अमृत कौर, बैजनाथ और किशोरी लाल के साथ भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गए। पटियाला पुलिस द्वारा इन्हें गिरफ्तार किया गया और दो महीने के लिए कंडाघाट जेल में कठोर कारावास दिया गया। 1946 ई. में कत्ल के झूठे केस में फंसाया गया और तीन महीने के लिए जेल में डाल दिया। 1947 ई. के बाद वह कई संघों और संगठनों के सदस्य थे। वह पीईपीएसयू विधानसभा के 1953-55 तक सदस्य रहे, 1953-66 तक सार्वजनिक लेखा समिति के चेयरमैन रहे, वेतन संशोधन कमेटी (1956) के चेयरमैन भी रहे। 1962 से 1966 तक पंजाब विधानसभा के सदस्य रहे। 1965-66 ई. में पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों के विकास और उद्योग के उपमंत्री रहे। नए क्षेत्रों का हिमाचल में विलय होने के बाद 1966-67 और 1985-90 ई. में हिमाचल विधानसभा के सदस्य रहे। 1974 ई. में राज्यसभा के लिए चुने गए। 1982 ई. में हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ महासचिव  व प्रदेश कांग्रेस (इंदिरा) पार्टी के अध्यक्ष रहे।  सन् 2009 में इनकी मृत्यु  हो गई।

गौरां देवी

स्वर्गीय डा. एलसी दत्त की पत्नी थी। इसका जन्म ‘रावलपिंडी’ पाकिस्तान में हुआ था स्वतंत्र भारत में ‘किशोर कॉटेज’ शिमला की निवासी बनीं। 1921 से 1947 तक राष्ट्रीय स्वयंसेवी आंदोलन में सक्रिय रहीं। उसने स्वराज आंदोलन में सराहनीय कार्य किया और गांधी जी की निकट सहयोगी रहीं। वह देहाती क्षेत्रों में और नगरों में खुले में जाया करती थीं तथा लोगों के बीच राष्ट्रीय भावना जागृत करती थीं। दूसरों के लिए स्वयं उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने विदेशी वस्त्रों को जलाने के आंदोलन के दौरान पहले अपने कपड़े जलाए। 1984 ई. में समाजसेवा  के लिए उसे ‘जमना लाल बजाज इनाम’ से नवाजा गया।


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