आत्म पुराण

By: Aug 4th, 2018 12:05 am

हे मैत्रेयी! यह आत्मा तीनों काल मेें सर्वभेद से रहित और अद्वितीय है। जैसे जगत की स्थिति के समय यह सर्वभेद रहित है उसी प्रकार जगत की उत्पत्ति से पूर्व भी थी। जैसे प्रज्वलित अग्नि से चिंगारी और  अंगार रूप कार्य की उत्पत्ति होती है, वैसे ही प्रपंच रूप कार्य की उत्पत्ति से पूर्व भेद रहित आनंदस्वरूप आत्मा से यह जड़ चेतन रूप समस्त जगत उत्पन्न हुआ। हे मैत्रेयी! परमात्मादेव से हिरण्यगर्भ द्वारा इस स्थूल जगत की उत्पत्ति हुई है, उसे श्रुति-स्मृतियों ने बहुत विस्तार से कथन किया है, जैसे ‘सूर्या,चंद्रमसोधाता यथा पूर्वमकल्पयत।’ अर्थात ‘उस माया विशिष्ट परमात्मादेव ने जगत की रचना के समय सूर्य, चंद्रमा आदि से लेकर सब पदार्थों को पूर्व कल्प की तरह रच दिया।’ इसी प्रकार स्मृति ने कहा।

तेषांच नाम रूपाणि कर्माणि च पृथक-पृथक।

वेद शब्देभ्यवादौ निर्ममेस महेश्वरः।।

अर्थात – जगत की उत्पत्ति के समय वह परमात्मादेव ने आकाशादि पदार्थों के भिन्न-भिन्न नामों को, रूपों को और कर्मों को वेद के शब्दों से उत्पन्न किया।

हे मैत्रेयी! इन श्रुति स्मृति के अनेक वचनों में आकाश आदि से जगत की उत्पत्ति बतलाई गई है, उसे तू आप ही जान लेगी, इससे उसका विस्तार करने की  आवश्यकता नहीं।

पर ऋग्वेदादिक शब्द प्रपंच की उत्पत्ति को तू स्वयं नहीं जान सकेगी, इसलिए इस शब्द प्रपंच की उत्पत्ति आत्मदेव से किस प्रकार हुई, उसे तू श्रवण कर। हे मैत्रेयी! जिस प्रकार इस लोक में सूखी लकडि़यों और गीली लकडि़यों से अलग-अलग तरह का धुंआ निकलता है, वैसे ही इन सर्वज्ञ परमात्मादेव से यह विलक्षण शब्द रूप वेद उत्पन्न होते हैं।

शंका- हे भगवन! यदि ऋग्वेद आदि की उत्पत्ति जो ईश्वर से मान ली जाएगी तो वेद रूप शब्द भी लौकिक शब्दों की तरह पौरुषेय माने जाएंगे और शस्त्रों में वेद रूप शब्दों को अपौरुषेय कहा गया है। इससे शास्त्र का निरोध होगा।

समाधान – हे मैत्रेयी! जिस शब्द का उच्चारण सुनकर प्रत्यक्ष अनुमान आदि प्रमाणों की आवश्यकता हों, वह शब्द उस अर्थ के  संबंध से उत्पन्न होता है। पर यह वेद रूप शब्द जो परमात्मा से उत्पन्न होता है, वह अर्थ का विचार करके उत्पन्न नहीं होता, किंतु जैसे बिना प्रयत्न किए ही हमारी सांस चलती रहती है, वैसे ही बिना प्रयत्न के परमात्मा देव से वे वेद रूप शब्द उत्पन्न होते हैं, पर जिन शब्दों को पुरुष अर्थ का विचार करके बोलते हैं वे पौरुषेय कहे जाते हैं।

शंका-हे भगवन! अगर कोई पुरुष अर्थ का विचार किए बिना ही यह शब्द का उच्चारण करे तो क्या वे भी अपौरुषेय माने जाएंगे।

समाधान- हे मैत्रेयी! यह जीव भ्रम, प्रमाद आदि दोषों से युक्त है। इसलिए यदि वह बिना अर्थ का विचार किए शब्द उच्चारण करेगा, वे शब्द उन्मत्त पुरुष के शब्द की तरह निरर्थक होंगे। हे मैत्रेयी! इस मनुष्य लोक की तो क्या बात अगर ब्रह्मलोक में भी कोई बिना अर्थ का विचार किए शब्द का उच्चारण करेगा, तो उन्मत्त के शब्दों की तरह निरर्थक ही माना जाएगा। पर सर्वत्र परमात्मादेव भ्रम, प्रमाद आदि दोषों से रहित है, इसलिए वह अर्थ का विचार किए बिना जो शब्द उच्चारण करता है वे वेद वचन सार्थक ही होते हैं। इससे सिद्ध होता है कि वेद-वचनों के लिए हमको किसी तरह के प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणों की आवश्यकता नहीं है।

शंका-हे भगवन! यदि अर्थ के बोध होने से ही किसी शब्द को प्रमाण माना जाए तो जिस वचन से किसी अर्थ का बोध न हो उसको अप्रमाण रूप माना जाएगा।


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