ओउम संसार सागर से रक्षा करता है

By: Aug 4th, 2018 12:05 am

इस ओउम को प्रणव भी कहते हैं। अव धातु रक्षण, गति, कांति, तृप्ति, अवगम, प्रीति, प्रवेश, श्रवण, स्वाम्यर्थ, याचन, इच्छा क्रिया, दीप्ति, वाप्ति, आलिंगन, हिंसा, दान, भोग, वृद्धि इत्यादि 19 अर्थों में है…

-गतांक से आगे...

क्षारंति सर्वा चैव यो जुहोति यजति क्रियाः।

अक्षज्ञरमक्षयं ज्ञेयं ब्रह्म चैव प्रजापतिः।

‘बिना ओउम के समस्त यज्ञ, जप आदि निष्फल होते हैं, ओउम को अविनाशी, प्रजापति ब्रह्म जानना चाहिए।’

प्रणवं मंत्राणां सेतूः।

‘प्रणव मंत्रों का पुल है अर्थात पार करने के लिए प्रणव की आवश्यकता अपरित्याज्य है।’

यदोंकारमकृतवा किंचिदारभ्यते तद्वज्रोभवति।

तस्याद्वज्रभयाद्भीत ओंकारं पूर्वमारभेदिति।।

‘बिना ओंकार का उच्चारण किए सभी कार्य वज्रवद् अर्थात निष्फल हो जाते हैं, अतः वज्र-भय से डरकर प्रथम ओंकार का उच्चारण करें।’

ओउम के 16 अर्थ

ओउम शब्द आप्लृ ‘वयाप्तौ’ और ‘अव रक्षते’ धातु से सिद्ध होता है। आप्लृ धातु से मन प्रत्यय होता है (अवननिष्टलोपः) इस उणादि से सूत्र से टिका लूप होता है। अव प्लस म् ऐसी अवस्था में (ज्वत्वर) इत्यादि कृदंत के सूत्र से व का ऊठ होता है। अव प्लस ओउम प्लस म् ऐसी अवस्था हो जाती है तदनंतर ‘आ’ ‘आदगुणः’ सूत्र से गुण होकर ओउम सिद्ध होता है। इस ओउम को प्रणव भी कहते हैं। प्रणव प्रपूर्वकणु धातु से स्तुति अर्थ में सिद्ध होता है और इसका अर्थ जिनके द्वारा अभीष्ट देवता की स्तुति की जाए, वह प्रणव होता है। अव धातु रक्षण, गति, कांति, तृप्ति, अवगम, प्रीति, प्रवेश, श्रवण, स्वाम्यर्थ, याचन, इच्छा क्रिया, दीप्ति, वाप्ति, आलिंगन, हिंसा, दान, भोग, वृद्धि इत्यादि 19 अर्थों में है। अतः क्रमशः सभी प्रकार से ओउम का अर्थ यहां दिया जाता है :

  1. रक्षण : अवति संसार सागराद्रक्षति-संसार सागर से रक्षा करता है।
  2. गति : अवति-सर्वे जानति सर्दकाल में समस्त वस्तुओं का यथार्थ ज्ञाता। (क) यति-अवति-संसार चक्रो यस्माद गच्छति-सदा संसार चक्र को चलाने वाला। (ख) गति-अवति-सर्वत्र व्याप्नोति-व्यापक होने से समस्त स्थानों पर विद्यमान तथा सबको प्राप्त। (ग) गति-अवति-ज्ञानेन विश्वं पवर्तयिंतु प्रयत्न करोति-विश्व मर्यादा को ज्ञान पूर्वक चलाने के लिए सर्वत्र प्रयत्न का प्रसार करने वाला है।
  3. कांति : अवति अवति विश्वं प्रकाशयति-जो संसार को प्रकाशित करने वाला है।
  4. अवगम : अवति-अवगच्छति-समस्त प्राणियों के विचार को सर्वदा सर्वत्र जानने वाला।
  5. तृप्ति : अवति-सर्व प्रीणियत- आनंद स्वरूप के कारण सदैव भक्तों को तृप्त करने वाला।
  6. प्रीति : अवति-सर्वे प्रीणियत-आनंद स्वरूप के कारण भक्तों को प्रसन्न करने वाला।
  7. प्रवेश : अवति-सूक्ष्मत्वात्प्रविशति- सूक्ष्म होने के कारण आत्म स्वरूप से समस्त प्राणियों में जो प्रवेश करता है।
  8. श्रवण : अवति-सर्वे शृणोति-स्वयं श्रोतृ इंद्रिय का निर्माता होने के कारण सूक्ष्मदाता, स्थूल, गुप्त से गुप्त शब्दों का श्रोता।
  9. स्वाम्यर्थ : अवति-आधिपत्य करोति-समस्त चराचर जगत का स्वामी होने से शासन करने वाला।
  10. याचन : ऐश्वर्यों से युक्त होने के कारण सब की याचना का स्थान।


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