कांगड़ा से फूटी थी सत्याग्रह की चिंगारी

By: Aug 16th, 2018 12:05 am

कांगड़ा— गुलामी की बेडि़यों को तोड़ने में जिन वीरों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था,उसमें कांगड़ा के युवकों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का बिगुल बजाया तो ठाकुर पंचम चंद्र इस आंदोलन में कूद पड़े और उन्होंने कांगड़ा निवासी बाशी राम नादौन के सर्व मित्र व भवारना के सरदार कृपाल सिंह को लेकर अंग्रेजी साम्राज्य मुक्त करवाने के लिए सक्रिय हो गए।  प्रभावित होकर देहरा निवासी हेमराज ने कालेज की पढ़ाई छोड़ दी और इस आंदोलन में कूद पड़े । फौजी भर्ती के खिलाफ  महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए व्यक्तिगत सत्याग्रह का जिला कांगड़ा में श्री गणेश तहसील कांगड़ा से हुआ। सबसे पहले सत्याग्रही मंगतराम खन्ना वकील ने गिरफ्तारी दी। उसके पश्चात ईश्वरदास, शंकर दास, दौलत पुरी व ओमप्रकाश ने कांगड़ा में गिरफ्तारी दी। रोशन लाल ने धर्मशाला में सत्याग्रह करके गिरफ्तारी दी। तत्पश्चात हेमराज  कांगड़ा घर को तिलांजलि देकर बाहर निकले और घनोटू गांव तहसील कांगड़ा में30-40 हजार लोगों की हाजिरी में पं. भगत राम ने गिरफ्तारी दी ।आजाद हिंद फौज के गीत कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा, यह जिंदगी है कौम की तू कौम पर लुटाए जा , आज भी सुना जाता  है ।  इस गीत के संगीत निर्देशक राय सिंह ठाकुर खनियारा निवासी थे।

कांशी राम की कविताओं ने भरा जोश

लाहौर में शिक्षा ग्रहण करने वाले तीन छात्र पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े । उनमें से यशपाल  तथा इंद्रपाल हथियारबंद क्रांति में भरोसा रखते थे । इस आंदोलन में कांशीराम ने कहानी और कविताओं के माध्यम से जगह-जगह लोगों  में आजादी के विचार का संचार किया । बाद में यही कांशीराम पहाड़ी बाबा गांधी बाबा कांशी राम के नाम से मशहूर हुए ।

सलियाणा में जलाया विदेशी सामान

असहयोग आंदोलन के तहत मार्च 1922 में पूरे कांगड़ा में जगह-जगह अंग्रेजी कपड़ों तथा वस्तुओं की होली जलाई गई। लोगों में देशी चीजों को अपनाने का संकल्प लिया। सलियाणा के मेले में तो महिलाओं ने विदेशी चूडि़यों व रेशमी घाघरो को जला दिया। उनकी देखा देखी पुरुषों ने भी रेशमी रुमाल टोपियां  व पगडि़या आग  की भेंट कर दी ।

सत्याग्रहियों से भर गई जेलें

आठ मार्च, 1922 को पुलिस ने भीड़ पर लाठियां बरसाई उस लाठी चार्ज में कई लोग घायल हुए। जिससे कांगड़ा क्षेत्र में जबरदस्त रोष  फैला था । कांगड़ा की जेल सत्याग्रहियों से भर गई और यह सिलसिला वर्षो तक चलता रहा। आखिर  स्वतंत्रता आंदोलन कामयाब हुआ और आजादी  मिली।


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