कैसे बदला जा सकता है भारत को ?

By: Aug 2nd, 2018 12:07 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

मैं अमरीकी प्रशासनिक प्रणाली को लागू करने की वकालत करता हूं। अमरीकी राष्ट्रपति देश का मुखिया तो होता है, लेकिन कानून बनाने में उसकी कोई भूमिका नहीं होती, कानून सिर्फ संसद बनाती है। राष्ट्रपति, संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करता है और उनके अनुसार शासन-प्रशासन चलाता है। अतः वह अपनी नीतियों को लागू करने के लिए स्वतंत्र है और उसके लिए उसके पास पर्याप्त समय होता है, अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के रूप में वह राजनीतिज्ञों के बजाय विशेषज्ञों को चुन सकता है…

मैं कई बार सोचता हूं कि यदि मैं सत्ता में होता, तो मैं क्या करता? इसका उत्तर यह है कि मैं स्थानीय संस्थाओं को मजबूत करता, उन्हें पूर्ण स्वायत्तता देता, ताकि वे अपने क्षेत्र की भलाई के लिए निर्णायक ढंग से काम कर सकें। दरअसल, मैं अमरीकी प्रशासनिक प्रणाली को लागू करने की वकालत करता हूं। अमरीकी प्रशासनिक प्रणाली में देश का मुखिया राष्ट्रपति होता है, वह सारे देश का प्रतिनिधि होता है और सारे देश की जनता उसे चुनती है। अमरीकी राष्ट्रपति का कार्यकाल चार साल का होता है और अमरीकी संसद उसे हटा नहीं सकती। राष्ट्रपति का आचरण यदि आपत्तिजनक हो, तो उसे महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है, अन्यथा वह अपना कार्यकाल पूरा करता है। अमरीकी राष्ट्रपति के मंत्रिमंडल के सहयोगी किसी सदन के सदस्य नहीं होते, अतः राष्ट्रपति को यह सुविधा होती है कि वह विषय के विशेषज्ञों को चुन सके। अमरीकी राष्ट्रपति देश का मुखिया तो होता है, लेकिन कानून बनाने में उसकी कोई भूमिका नहीं होती, कानून सिर्फ संसद बनाती है। राष्ट्रपति, संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करता है और उनके अनुसार शासन-प्रशासन चलाता है। राष्ट्रपति का कार्यकाल निश्चित होता है। अतः वह अपनी नीतियों को लागू करने के लिए स्वतंत्र है और उसके लिए उसके पास पर्याप्त समय होता है, अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के रूप में वह राजनीतिज्ञों के बजाय विशेषज्ञों को चुन सकता है।

वह कानून नहीं बनाता, लेकिन किसी कानून को वीटो कर सकता है। संसद सिर्फ महाभियोग द्वारा राष्ट्रपति को हटा सकती है, अतः राष्ट्रपति को कुर्सी जाने का खतरा नहीं होता। अमरीकी संसद सिर्फ विधायी काम करती है। यानी, वह सिर्फ कानून बनाती है, उन्हें लागू नहीं करती। शासन के कामों में अमरीकी संसद का कोई दखल नहीं होता। गवर्नेंस राष्ट्रपति और उनके मंत्रिमंडल का काम है। राष्ट्रपति अपने हर निर्णय की मंजूरी संसद से लेता है, परिणामस्वरूप राष्ट्रपति शक्तिशाली होते हुए भी निरकुंश नहीं हो सकता। हम यदि पंचायतों और नगर निगमों का गठन अमरीकी प्रणाली के अनुसार करना चाहें, तो उसकी राह में कोई अड़चन नहीं है, सिर्फ एक कानून बनाकर ऐसा करना संभव है। इससे मेयर और पार्षदों के अधिकारों और कर्त्तव्यों को परिभाषित करना आसान होगा। अभी हमारे देश में पार्षदों, विधायकों और सांसदों की भूमिका गड्डमड है। यही नहीं, उनके ऊपर बहुत से सरकारी अधिकारी हैं। चुने हुए जनप्रतिनिधियों के पास कोई वास्तविक शक्ति नहीं है और नौकरशाही मनमानी के लिए स्वतंत्र है। इससे अकुशलता आती है और भ्रष्टाचार बढ़ता है। यदि मैं सत्ता में होता तो मैं पंचायतों और नगर निगमों को पूर्ण स्वायत्तता देता, सरपंच और मेयर का चुनाव सीधे जनता द्वारा करवाता, उन पर से सरकारी अधिकारियों का नियंत्रण समाप्त करवाता और सरकार के हर काम में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करता, ताकि तंत्र, लोक के लिए हो, वह लोक पर हावी न हो। हमें अपने रोजमर्रा के कामों के लिए मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री से मिलने की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि रोजमर्रा के कामों के लिए हमारा वास्ता स्थानीय प्रशासन से पड़ता है।

हम किसी पटवारी, किसी तहसीलदार, किसी बीडीओ, किसी एसडीएम के दफ्तर के चक्कर काटते रह जाते हैं। मैं सत्ता में होता, तो चुने गए पार्षद शहर के लिए नियम-कानून बनाते और मेयर उन्हें लागू करता तथा उनके अनुसार शहर का प्रशासन चलाता। शहर के शेष सभी अधिकारी उसके अधीन होते, वह अपने शहर का सच्चा मुखिया होता। यदि हमारी स्थानीय संस्थाएं मजबूत होंगी, शक्तिसंपन्न हों, तो आम आदमी की बहुत सी तकलीफें खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगी। मैं यह सुनिश्चित करता कि पंचायतों और नगर निगमों के कामकाज में जनता की भागीदारी हो, इनके निर्णय जनता की मर्जी से लिए जाएं, ताकि वह जनता के  काम करें, सचमुच जनहितकारी हों। यदि मैं सत्ता में होता, तो सत्ता अधिकारियों या कुछ विशिष्ट राजनीतिज्ञों के पास होने के बजाय सचमुच जनता के पास होती। यदि मैं सत्ता में होता तो जनता को सूचना के अधिकार के कानून की आवश्यकता ही न होती।

सरकार के हर काम की, हर नियम की जानकारी संबंधित विभाग की वेबसाइट पर होती। उसके लिए जनता को अर्जी न देनी पड़ती, बल्कि वह सूचना पहले से ही सार्वजनिक होती, हालांकि सूचना का अधिकार बरकरार रहता। सरकार के हर काम में जनता की भागीदारी सुनिश्चित होती, और सरकारी अधिकारियों को अपना हर काम निश्चित समय में निपटाना पड़ता। उनके हर काम और हर फैसले की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होती। फिलहाल सरकार के निर्णय को प्रभावित करने के लिए जनता के पास प्रार्थना और आंदोलन के अलावा अन्य कोई साधन नहीं है। मैं इस स्थिति को बदल देता। स्थानीय निकायों का सशक्तिकरण मात्र पहला कदम होता। भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए मैं सुनिश्चित करता कि लोग सरकारी विभागों की वेबसाइट पर ही अपनी शिकायत और सुझाव दर्ज करवा सकें  और उनका निपटारा एक निश्चित समय में संभव होता। लोक  अदालत हर रोज लगती और जनता के छोटे-मोटे काम तुरंत निपट जाते। हर नागरिक को सरकार के हर खर्च की जानकारी रहती, नागरिकों को मालूम रहता कि उनका दिया टैक्स सरकार कहां खर्च कर रही है। भ्रष्टाचार की शुरुआत नौकरियों में नियुक्तियों और जनप्रतिनिधियों के चुनाव के तरीके से होती है। एक तरफ सरकारी अधिकारियों को निश्चित समय में काम निपटाने का इंतजाम होता, तो दूसरी तरफ चुनाव में भ्रष्टाचार पर रोकथाम के  लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान होता। हमारे देश में सबसे ज्यादा वोट पाने वाला उम्मीदवार विजयी होता है। कई उम्मीदवार तो सिर्फ एक वोट के अंतर से जीतते रहे हैं। सिर्फ एक वोट ज्यादा पाने वाला व्यक्ति सभी शक्तियों का स्वामी बन  जाता है और हारा हुआ उम्मीदवार अप्रासंगिक हो जाता है। यही कारण है कि उम्मीदवार चुनाव जीतने के लिए हर जायज-नाजायज तरीके अपनाते हैं। इसके विपरीत ‘प्रपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन’ यानी आनुपातिक  प्रतिनिधित्व में विभिन्न दलों को उनके वोट प्रतिशत के हिसाब से सीटें दी जाती हैं और उनकी सूची के वरीयता क्रम के अनुसार उम्मीदवारों को सदन में जगह मिलती है। यानी, अगर सदन में कुल 100 सीटें हों और किसी एक दल को सारे प्रदेश में 34 प्रतिशत मत मिलें, तो विधानसभा में उसके 34 सदस्य होंगे। यही नियम चुनाव लड़ रहे सभी दलों पर लागू होगा। इससे चुनाव में होने वाले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। आज हमें यह सोचना है कि हम भारत को कैसे बदलें, कैसे इसे मजबूत बनाएं और प्रगति के पथ पर ले जाएं। ये कुछ कदम जिनका मैंने जिक्र किया है, देश को एक नई दिशा दे सकते हैं। हमें यही सोचना है कि हम कैसा लोकतंत्र चाहते हैं और उसके लिए देश को बदलने की दिशा क्या हो। यदि हम चाहते हैं कि देश मजबूत हो, तो हमें यह करना ही होगा, इसके अलावा और कोई चारा नहीं है।

ईमेलः indiatotal.features@gmail.com


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