क्या है शिवलिंग का अद्भुत रहस्य

By: Aug 4th, 2018 12:05 am

स्कंद पुराण में कहा गया है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसकी पीठ या आधार है और सब अनंत शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे शिवलिंग कहा गया है। शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है…

शिवलिंग का शास्त्रों में अर्थ बताया गया है परम कल्याणकारी शुभ सृजन ज्योति। संपूर्ण ब्रह्मांड और हमारा शरीर इसी प्रकार है। भृकुटी के बीच स्थित हमारी आत्मा या कहें कि हम स्वयं भी इसी तरह हैं। बिंदु रूप। शिवलिंग का गलत अर्थ बताने वाले या तो अज्ञानी हैं या फिर वे जान बूझकर ऐसा कर रहे हैं। आइए जानते हैं शिवलिंग के अद्भुत रहस्य।

ब्रह्मांड का प्रतीक-संपूर्ण ब्रह्मांड उसी तरह है जिस तरह कि शिवलिंग का रूप है, जिसमें जलाधारी और ऊपर से गिरता पानी है। शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा और उन पिंडों की तरह है, जहां जीवन होने की संभावना है। वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रह्मांड का अक्सधुरी ही शिवलिंग है। वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुनः सृष्टिकाल में जिससे सृष्टि प्रकट होती है, उसे शिवलिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही शिवलिंग की प्रतीक है। वस्तुतः यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। यही सबका आधार है।

शिव का आदि और अनादि रूप- ईश्वर निराकार है। शिवलिंग उसी का प्रतीक है। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि भगवान शंकर या महादेव भी शिवलिंग का ही ध्यान करते हैं। शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे शिवलिंग कहा गया है। स्कंद पुराण में कहा गया है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसकी पीठ या आधार है और सब अनंत शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे शिवलिंग कहा गया है। शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है। इस पुराण के अनुसार शिव ही पूर्ण पुरुष और निराकार ब्रह्म हैं।

निराकार ज्योति का प्रतीक – पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है, जैसे प्रकाश स्तंभलिंग, अग्नि स्तंभलिंग, ऊर्जा स्तंभलिंग, ब्रह्मांडीय स्तंभलिंग आदि। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में पुराणों में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं। वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी व्यापक ब्रह्मात्मलिंग, जिसका अर्थ है व्यापक प्रकाश। शिवलिंग के 12 खंड हैं। शिव पुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

कब से प्रारंभ हुई शिवलिंग की पूजा- भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग (ज्योति) को प्रकट किया था। इस ज्योतिर्लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ। इसी समय से शिव को परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में ज्योतिर्लिंग की पूजा आरंभ हुई। हिंदू धर्म में मूर्ति की पूजा नहीं होती, लेकिन शिवलिंग और शालिग्राम को भगवान शंकर और विष्णु का विग्रह रूप मानकर इसी की पूजा की जानी चाहिए।

आसमानी पत्थर-  ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार विक्रम संवत् के कुछ सहस्राब्दी पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ। आदिमानव को यह रुद्र (शिव)का आविर्भाव दिखा। जहां-जहां ये पिंड गिरे, वहां-वहां इन पवित्र पिंडों की सुरक्षा के लिए मंदिर बना दिए गए। इस तरह धरती पर हजारों शिव मंदिरों का निर्माण हो गया। उनमें से प्रमुख थे 108 ज्योतिर्लिंग, लेकिन अब केवल 12 ही बचे हैं। शिव पुराण के अनुसार उस समय आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेक उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे।

औषधि और सोने का रहस्य -शिवलिंग में एक पत्थर की आकृति होती है। जलाधारी पीतल की होती है और नाग या सर्प तांबे का होता है। शिवलिंग पर बेलपत्र और धतूरे या आकड़े के फूल चढ़ते हैं। शिवलिंग पर जल गिरता रहता है। कहते हैं कि ऋषि-मुनियों ने प्रतीक रूप से या प्राचीन विद्या को बचाने के लिए शिवलिंग की रचना इस तरह की है कि कोई उसके गूढ़ रहस्य को समझकर उसका लाभ उठा सकता है, जैसे शिवलिंग अर्थात पारा, जलाधारी अर्थात पीतल की धातु, नाग अर्थात तांबे की धातु आदि को बिल्व पत्र, धतूरे और आंकड़े के साथ मिलाकर कुछ भी औषधि, चांदी या सोना बनाया जा सकता है।


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