गीत नया गाता हूं

By: Aug 17th, 2018 12:05 am

अटल यूं तो भारतीय राजनीतिक पटल पर एक ऐसा नाम है, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से न केवल व्यापक स्वीकार्यता और सम्मान हासिल किया, बल्कि तमाम बाधाओं को पार करते हुए 90 के दशक में बीजेपी को स्थापित करने में भी अहम भूमिका निभाई। यह वाजपेयी के व्यक्तित्व का ही कमाल था कि बीजेपी के साथ उस समय नए सहयोगी दल जुड़ते गए, वे भी तब जब बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद दक्षिणपंथी झुकाव के कारण उस जमाने में बीजेपी को राजनीतिक रूप से अछूत माना जाता था….

अटल बिहारी वाजपेयी

25 दिसंबर, 1924-16 अगस्त, 2018

कवि, पत्रकार, फिर राजनेता हर रोल में जमाई धाक

क्या हार में, क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं, संघर्ष पथ पर जो मिले, यह भी सही वह भी सही, वरदान नहीं मागूंगा, हो कुछ, पर हार नहीं मानूंगा…

12 बार रहे सांसद

25 दिसंबर, 1924 को जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत छोड़ो आंदोलन के जरिए 1942 में भारतीय राजनीति में कदम रखा था। 1951 में वाजपेयी ने आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई, जिसमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेता शामिल हुए। उन्होंने 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। इसके बाद 1957 में वह सांसद बने। अटल बिहारी वाजपेयी कुल दस बार लोकसभा के सांसद रहे। वहीं वह दो बार 1962 और 1986 में राज्यसभा के सांसद भी रहे। इस दौरान अटल ने उत्तर प्रदेश, नई दिल्ली और मध्य प्रदेश से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीते। वहीं वह गुजरात से राज्यसभा पहुंचे थे। अपनी भाषणकला, मनमोहक मुस्कान, वाणी के ओज, लेखन व विचारधारा के प्रति निष्ठा तथा ठोस फैसले लेने के लिए विख्यात वाजपेयी को भारत व पाकिस्तान के मतभेदों को दूर करने की दिशा में प्रभावी पहल करने का श्रेय दिया जाता है। इन्हीं कदमों के कारण ही वह बीजेपी के राष्ट्रवादी राजनीतिक एजेंडे से परे जाकर एक व्यापक फलक के राजनेता के रूप में जाने जाते हैं। कांग्रेस से इतर किसी दूसरी पार्टी के देश के सर्वाधिक लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहने वाले वाजपेयी को अकसर बीजेपी का उदारवादी चेहरा कहा जाता है। हालांकि उनके आलोचक उन्हें आरएसएस का ऐसा मुखौटा बताते रहे हैं, जिनकी सौम्य मुस्कान उनकी पार्टी के हिंदूवादी समूहों के साथ संबंधों को छिपाए रखती है।

भारत छोड़ो आंदोलन से सियासी सफर की शुरुआत

1942 : भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया, संघ की गतिविधि में शामिल होने के कारण 24 दिन जेल में रहे

1951 : जनसंघ में शामिल हुए, 1957 में दल के नेता के रूप में स्थापित हुए

1957 : पहली बार यूपी के बलरामपुर से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए

1962 : राज्यसभा के लिए पहली बार निर्वाचित हुए

1968 : जन संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने

1975 : आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किया गया

1977-79 : मोराजी देसाई सरकार में विदेश मंत्री बने

1980 : भाजपा की स्थापना की और नई पार्टी के अध्यक्ष बने

1996 : लोकसभा चुनाव जीत पीएम बने, पर 13 दिन ही चली सरकार

1998 : मध्यावधि चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन को जीत मिली, दूसरी बार बने प्रधानमंत्री

1999 : एक वोट से विश्वास मत हारने के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया

1999 : जीत के बाद एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ

2004 : लोकसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा को मिली हार के बाद प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दिया

2009 : फेफड़े में संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया, वेंटिलेटर पर रखे गए

2014 : सरकार ने उनके जन्म दिन को गुड गवर्नेंस-डे के तौर पर मनाने का ऐलान किया

दुनिया में बजाया हिंदी का डंका

1977 में मोरार जी देसाई की सरकार में अटल विदेश मंत्री थे, वह तब पहले गैर कांग्रेसी विदेश मंत्री बने थे। इस दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया था और दुनियाभर में हिंदी भाषा को पहचान दिलाई, हिंदी में भाषण देने वाले अटल भारत के पहले विदेश मंत्री थे।

क्लिंटन से कहा था, कल का सूरज नहीं देख पाएगा पाकिस्तान

कारगिल युद्ध के दौरान भारत-पाक के बीच भीषण युद्ध के हालात बने थे। भारत की नाराजगी और गुस्से के मद्देनजर पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से मिलने पहुंचे थे। नवाज शरीफ ने क्लिंटन से मुलाकात के दौरान कहा था कि उन्हें अंदेशा है कि पाकिस्तान सेना कहीं परमाणु का इस्तेमाल न कर दे। इस पर क्लिंटन ने वाजपेयी से बात की थी। वाजपेयी के जवाब ने पाकिस्तान ही नहीं, अमरीका के होश उड़ा दिए थे। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान को परमाणु बम का इस्तेमाल करने दें। भारत का कुछ बिगड़ेगा, लेकिन अगला सूर्योदय पाकिस्तान नहीं देख पाएगा। आज नहीं तो कल पाकिस्तान को सबक सिखाने के बारे में निर्णय लेना ही होगा।

2009 से ही व्हीलचेयर पर थे

श्री वाजपेयी कई बीमारियों से जूझ रहे थे। वाजपेयी को गुर्दा (किडनी) नली में संक्रमण, छाती में जकड़न व मूत्रनली में संक्रमण आदि के बाद 11 जून को एम्स में भर्ती कराया गया था।  बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी डिमेंशिया नाम की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे और 2009 से ही व्हीलचेयर पर थे।

संकुचित राजनितिक सोच से बहुत ऊपर थे वाजपेयी जी

ओजस्वी वक्ता सवेदनशील कवि एक राजनेता से कहीं अधिक ऊंचे कद वाले स्टेट्समैन, धरती पुत्र पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे। वह एक राजनेता के तौर पर जितने सराहे गए, उतना ही प्यार उनकी दिल को छु जाने वाली कविताओं को भी मिला। साल 1988 में जब वाजपेयी किडनी का इलाज कराने अमरीका गए थे, तब धर्मवीर भारती को लिखे एक खत में उन्होंने मौत की आंखों में देखकर उसे हराने के जज्बे को कविता के रूप में सजाया था। धर्मवीर भारती को लिखे खत में अटल जी ने बताया था कि डाक्टरों ने उन्हें सर्जरी की सलाह दी है। उसके बाद से वह सो नहीं पा रहे थे। उनके मन में चल रही उथल-पुथल ने इस कविता को जन्म दिया था। दिलचस्प बात यह भी है कि अमरीका में अटल को इलाज के लिए भेजने के पीछे एक बड़ा योगदान तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का था। राजीव ने संयुक्त राष्ट्र को भेजे डेलिगेशन में अटल का नाम शामिल किया था, ताकि इसी बहाने अटल अपना इलाज करा सकें। अटल हमेशा इस बात के लिए राजीव गांधी की महानता की सराहना करते रहे और कहते रहे कि राजीव की वजह से ही वह जिंदा हैं। इन स्टेट्समैन नेताओं के रिश्तों से जुड़े कुछ किस्सों का वरिष्ठ पत्रकार किंगशुक नाग ने अपनी किताब ‘अटल बिहारी वाजपेयी- मैन फॉर ऑल सीजन’ में जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि दरअसल एक बार जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री भारत की यात्रा पर आए तो नेहरू जी ने वाजपेयी से उनका विशिष्ट अंदाज में परिचय कराते हुए कहा कि इनसे मिलिए! यह विपक्ष के उभरते हुए युवा नेता हैं। मेरी हमेशा आलोचना करते हैं ,लेकिन इनमें मैं भविष्य की बहुत संभावनाएं देखता हूं। इसी तरह यह भी कहा जाता है कि एक बार नेहरू ने किसी विदेशी अतिथि से अटल बिहारी वाजपेयी का परिचय संभावित भावी प्रधानमंत्री के रूप में कराया। उन्होंनें कहा कि वाजपेयी जी का राजनितिक नजरिया संकुचित और तुच्छ सोच से बहुत ऊंचा था यह नजरिया आज देश में नदारद है सचमुच भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्र कभी भूला न पाएगा।

अटल ही रहे…

गीत नहीं गाता हूं

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं

टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं

गीत नहीं गाता हूं

लगी कुछ ऐसी नजर बिखरा शीशे-सा शहर

अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं

गीत नहीं गाता हूं

पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद

मुक्ति के क्षणों में बार-बार बंध जाता हूं

गीत नहीं गाता हूं

गीत नया गाता हूं

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर

पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर

झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात

प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं

गीत नया गाता हूं

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी

अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी

हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा

काल के कपाल पर लिखता- मिटाता हूं

गीत नया गाता हूं

मौत से ठन गई

ठन गई!

मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी

हो गई,

यों लगा जिंदगी से बड़ी

हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,

जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन

से मरूं,

लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?

तू दबे पांव, चोरी-छिपे से

न आ,

सामने वार कर फिर मुझे आजमा।

मौत से बेखबर, जिंदगी

का सफर,

शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई गम ही नहीं,

दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,

न अपनों से बाकी हैं

कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ

मैंने किए,

आंधियों में जलाए हैं

बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज तूफान है,

नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।

पार पाने का कायम

मगर हौसला,

देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।

पुरस्कार

*1992 में पद्म विभूषण

*1993 में डी. लिट (कानपुर विश्वविद्यालय)

*1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार

*1994 में श्रेष्ठ सांसद पुरस्कार

*1994 में भारत रत्न पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार

*27 मार्च, 2015 में भारत रत्न सम्मान


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