जब ट्रक ड्राइवर ने परमार के साथ लिया पंगा …

By: Aug 5th, 2018 12:05 am

संस्मरण

डा. यशवंत सिंह परमार

यह वर्ष 1966 की बात है। मैं फल अनुसंधान केंद्र बागथन में तैनात था, जो प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डा. वाईएस परमार का गृह क्षेत्र है। उनका वहां पर एक घर, फार्म तथा प्लांटेड पीच ओकार्ड था।

इस अनुसंधान केंद्र को लोग फार्म कहते थे। वहां पर 3-4 डिलापीडेटिड मेक शिफ्ट टाइप भवन थे जिन्हें आवास, कार्यालय व वेटरिनरी अस्पताल के रूप में प्रयोग किया जा रहा था। मेरे अलावा वहां पर एक वेटरिनरी डाक्टर, उसका स्टाक असिस्टेंट तथा एचपीपीडब्ल्यूडी का पूरा सब डिवीजन था। इस उपमंडल में एक एसडीओ, तीन जूनियर इंजीनियर, एक क्लर्क तथा एक चपड़ासी था। छह लोगों का यह समूह एक छोटे हाल में निवास करता था, जिसे मूल रूप से फार्म के बीज गोदाम के लिए बनाया गया था।

यह समूह अपनी सभी गतिविधियां इस हाल से संचालित करता था। गतिविधियों में जलाल नदी पर पुल का निर्माण भी शामिल था। इनके पास कोई फर्नीचर नहीं था। यह वह समय था जब हिमाचल प्रदेश में सड़क नेटवर्क के निर्माण का काम शुरू हुआ ही था। अधिकतर सड़कें कच्ची व संकरी थीं। 20 किलोमीटर लंबा मार्ग, जो बागथन को नाहन-शिमला रोड पर बनेठी में जोड़ता था, वह भी ठीक ढंग से पूरा नहीं हो पाया था। यह मार्ग केवल ठीक मौसम में चलता था, किंतु इसके बावजूद इस मार्ग पर एक यात्री बस चलती थी जो बागथन व नाहन के बीच शुरू की गई थी। इसके अलावा इस मार्ग पर विभिन्न सरकारी विभागों की जीपें चलती थीं। पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर जिस पुल का निर्माण कर रहे थे, उसके लिए मैटीरियल की जरूरत थी। इसलिए पीडब्ल्यूडी का एक ट्रक भी नाहन से कभी-कभी आया करता था। डा. वाईएस परमार इस स्थान से भली-भांति जुड़े हुए थे तथा वे माह में 2-3 रातें बागथन में बिताते थे।

यह उनका नियमित रूटीन था। उस समय (1974 के बाद मैंने कभी भी बागथन का दौरा नहीं किया) उनका घर बहुत ही साधारण था। यह घर दो मंजिला था जिसमें तीन या चार कमरे थे। इसमें लकड़ी का फर्श बना हुआ था। आज के लोगों को यह विश्वास करने में कठिनाई होगी, लेकिन घर में केवल एक बिस्तर लगा हुआ था तथा केवल श्रीमती परमार इस पर सोती थीं।

परमार सहित अन्य सभी लोग फर्श पर सोते थे। एक दिन डा. परमार शिमला को लौट रहे थे। पीडब्ल्यूडी का लोकल ट्रक भी आगे-आगे जा रहा था। डा. परमार की स्टेशन वैगन इसके पीछे थी। ट्रक 10-12 किलोमीटर प्रति घंटा की सामान्य रफ्तार से चल रहा था। इस तरह के मार्ग पर इससे ज्यादा स्पीड में ट्रक को चलाना संभव नहीं था। यह एक खुश्क दिन था तथा ट्रक के कारण बड़ी मात्रा में धूल उड़ रही थी। इसलिए परमार के वाहन के चालक ने उस ट्रक से आगे निकलने के लिए जगह देने का सिग्नल दिया। परंतु ऐसा हो नहीं पाया। ट्रक एक किनारे को नहीं हटा तथा वह धूल पैदा करता चला जा रहा था। परमार के वाहन पर निरंतर धूल पड़ रही थी। एक घंटे की कठिन ड्राइविंग के बाद वे बनेठी पहुंचे। वहां बस स्टाप के रूप में प्रयोग करने के लिए कुछ खुला स्थान था। ट्रक वहां पर रुक गया। परमार धूल के कारण उकसा गए थे तथा उन्होंने ट्रक चालक को अपने पास बुला कर पूछा कि उसने आगे बढ़ने के लिए जगह क्यों नहीं दी।

चालक पृथी सिंह, जो एक दिहाड़ीदार था, ने जवाब दिया कि उसके ट्रक का सेल्फ स्टार्टर ठीक स्थिति में नहीं था। इंजन को चलाने के लिए इसे मैनुअली स्टार्ट करना पड़ता था। ड्राइवर का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था। अगर वह रुक गया होता तो इंजन को दोबारा स्टार्ट करने में उसे दिक्कत आ गई होती तथा वह समय पर अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाता। यह एक समय की मजबूरी थी। यह बात सुनकर डा. परमार ट्रक चालक की विवशता समझ गए तथा चुप हो गए।

बाद में इस घटनाक्रम को पीडब्ल्यूडी के बड़े अधिकारियों के संज्ञान में लाया गया। शाम के समय हम जो गप्पबाजी करते थे, उसका यह घटनाक्रम एक हिस्सा बन गया था। हमने पृथी सिंह से पूछा कि वह इस घटनाक्रम को कैसे लेता है? उसने कहा कि वह कई बार कई अफसरों से पंगा ले चुका था। उसने सोचा कि इस बार एक मुख्यमंत्री से पंगा लेकर देखते हैं और जानते हैं कि क्या होता है? वह इस बात पर हैरान था कि यह पंगा लेने के बावजूद उसके साथ कुछ भी बुरा नहीं हुआ। क्या आजकल के मुख्यमंत्री इस तरह की स्थिति झेलने के बाद इस तरह की शांत प्रतिक्रिया देंगे?

-डा. चिरंजीत परमार, मंडी


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