जब पाक को मिली बांसुरी और भारत को ड्रम…

By: Aug 16th, 2018 12:08 am

डा. वरिंदर भाटिया

लेखक पूर्व कालेज प्रिंसीपल हैं

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सरकारी पुस्तकालयों में उपलब्ध पुस्तकों को भी दोनों देशों के बीच विभाजित किया गया। रेलवे और सड़क वाहन की संपत्तियों को दोनों देशों के रेलवे और सड़कों के हिसाब से बांटा गया। अब अगर मूल सवाल पर नजर डाली जाए कि अगर पाकिस्तान को 75 करोड़ रुपए दिए जाने थे, तो भारत का शेयर आखिर क्या था, कुछ सूत्रों के अनुसार भारत के हिस्से में उस दौरान 470 करोड़ आए थे। फ्रीडम ऑफ मिडनाइट पुस्तक में विभाजन के नियमों को विस्तार से बताया है…

देश इस साल स्वतंत्रता की 72वीं वर्षगांठ मना रहा है। 15 अगस्त, 1947 को भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था। स्वतंत्रता के पहले ही भारत का विभाजन हो गया था और उसी समय एक नए देश पाकिस्तान का जन्म भी हुआ था। 14 अगस्त, 1947 को ही पाकिस्तान भी अपने अस्तित्व में आ गया था। भारत विभाजन के साथ ही संपदा के बंटवारे को लेकर भारत और पाक के दरमियां कई सवालात भी एक साथ उठ खड़े हुए थे। आज तक इन सवालों के जवाब स्पष्ट रूप से किसी को नहीं मिल पाए हैं। माना जाता है कि भारत ने विभाजन के बाद पाकिस्तान को अपना अस्तित्व बनाने के लिए 75 करोड़ देने थे। हालांकि यह तथ्य आज भी विवादित है। कुछ तथ्यों की मानें, तो भारत ने शुरू में पाकिस्तान को 20 करोड़ पहली किस्त के तौर पर दिए थे और बाकी 55 करोड़ रोक कर रखे थे। अब सवाल उठता है कि 55 करोड़ पाकिस्तान को देने से क्यों रोका गया। पाकिस्तान को जो राशि दी जाने वाली थी, वह 55 करोड़ नहीं, बल्कि वास्तव में 75 करोड़ थी।

पहली किस्त के रूप में उन्हें 20 करोड़ रुपए दिए गए थे, लेकिन तभी पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर के ऊपर हमला कर दिया। बस फिर क्या था, भारत सरकार ने बाकी बचे 55 करोड़ देने पर रोक लगा दी और कहा कि पहले कश्मीर समस्या को हल कर लो, ताकि आगे दी जाने वाली राशि का इस्तेमाल सेना पर और भारत के विरुद्ध न हो सके। यहां कुछ लोग इस निर्णय के खिलाफ थे। उनका मानना था कि ऐसा करने से दोनों देशों के बीच रिश्ते और खराब होंगे और अभी-अभी  आजाद हुए दोनों देशों के बीच रिश्तों की शुरुआत अच्छी नहीं होगी।

उन्होंने सरकार से तत्काल पाकिस्तान को बची हुई राशि देने को कहा था। दूसरा सवाल यह उठता है कि अगर पाकिस्तान को 75 करोड़ दिए जा रहे थे, तो भारत के हिस्से में कितनी राशि आ रही थी? कहा जाता है कि पाकिस्तान को जहां अचल संपत्ति का 17.5 फीसदी हिस्सा मिला था, वहीं भारत का शेयर इसमें 82.5 फीसदी रहा था। इसमें मुद्रा, सिक्के, पोस्टल और रेवेन्यू स्टैंप्स, गोल्ड रिजर्व और आरबीआई के एसेट्स शामिल थे। चल संपत्ति की बात की जाए, तो यहां भी 80.20 के अनुपात में विभाजन किया गया। जहां भारत को चल संपत्ति का 80 फीसदी भाग मिला, वहीं पाकिस्तान के हिस्से में 20 फीसदी आया। इन संपत्ति आइटम्स में सरकारी टेबल, कुर्सियां, स्टेशनरी, यहां तक कि लाइटबल्ब, इंकपॉट्स और ब्लॉटिंग पेपर भी शामिल थे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सरकारी पुस्तकालयों में उपलब्ध पुस्तकों को भी दोनों देशों के बीच विभाजित किया गया।

रेलवे और सड़क वाहन की संपत्तियों को दोनों देशों के रेलवे और सड़कों के हिसाब से बांटा गया। अब अगर मूल सवाल पर नजर डाली जाए कि अगर पाकिस्तान को 75 करोड़ रुपए दिए जाने थे, तो भारत का शेयर आखिर क्या था, कुछ सूत्रों के अनुसार भारत के हिस्से में उस दौरान 470 करोड़ आए थे। ‘फ्रीडम ऑफ मिडनाइट’ पुस्तक में विभाजन के नियमों को विस्तार से बताया गया है। लाहौर एसपी ने उस दौरान दोनों देशों के बीच बराबर हिस्सों में सब कुछ बांटा, चाहे वह पगड़ी, लाठी हो या राइफल हो। अंत में जो बचा वह था पुलिस बैंड। इसमें पाकिस्तान को बांसुरी दी गई और भारत को ड्रम। पाकिस्तान को ट्रंफेट, तो भारत को क्रिंबल्स। पंजाब सरकार के इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिया में उपलब्ध डिक्शनरी को भी दोनों देशों के बीच विभाजित किया गया। शराब कंपनियों को भारत में ही रखा गया, क्योंकि कुछ कारणों के नाते नए मुल्क के लिए शराब हराम माना जा रहा था। हालांकि पाकिस्तान को इसके लिए मुआवजा राशि दे दी गई थी। इन सबके अलावा भारत में एक ही सरकारी प्रेस था, जो मुद्रा छापने का काम करते थे। इसलिए भारत ने इसे देने से मना कर दिया।

 इसलिए पाकिस्तान ने अपने यहां रबर स्टांप का इस्तेमाल शुरू कर दिया। भारत के वायसराय के पास दो शाही गाडि़यां थीं। एक सोने जडि़त, तो दूसरी सिल्वर जडि़त थी। जब इसके विभाजन की बारी आई, तो लॉर्ड माउंटबेटन ने टॉस करने का मन बनाया, जिसमें भारत के हिस्से में गोल्ड जडि़त शाही गाड़ी आई। जब सब कुछ का विभाजन हो गया, तो अंत में एक चीज बची, वह थी कीमती सींग, जिसका अंग्रेजों में औपचारिक तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। इसे तोड़कर बांटना इसे बर्बाद करने जैसा था, इसलिए एडीसी माउंटबेटन ने इसे अपने साथ यादगार के तौर पर ले जाने का फैसला किया। कुल मिलाकर बंटवारा देश का हो, घर का हो, कारोबार का हो, समाज का हो या फिर परिवार के सदस्यों में हो, यह कितना भी जरूरी न हो, परंतु यहबंटने वालों को मजबूत नहीं कमजोर ही करता है।


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