पाने के बाद शिकायत करना ठीक नहीं

By: Aug 11th, 2018 12:05 am

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डा. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं ‘समाधि’ पर उनके विचार …

-गतांक से आगे…

स्वामी रामतीर्थ को एक महान आदमी माना जाता है। उनकी माता, पत्नी व बच्चा उनसे मिलने गए, किंतु उनके पास समय नहीं था तथा उन्हें रेलवे स्टेशन भेज दिया। टिहरी गढ़वाल के राजा के गुरु कहीं गए हुए थे तथा उन्होंने स्वामी रामतीर्थ को अपना अतिथि बना लिया। जब गुरु वापस आए तो स्वामी उनसे नाखुश हो गए। इसके थोड़ी देर बाद स्वामी डूब गए। वह युवा अवस्था में ही मर गए। उस समय उनकी आयु 30 से 35 साल रही होगी। आदमी और भगवान द्वारा निर्मित कानूनों के बीच कुछ आ जाता है तथा उसके बाद कोई असामान्य घटना हो जाती है। इस तरह की घटनाओं के कारणों पर हमें गहन रूप से चिंतन करना होगा। मैं जो किताबें पढ़ता हूं, वे भगवान के कानूनों को बेहतर ढंग से समझने के लिए प्रकृति के नजदीक आने के विचारों से संबंधित हैं। आपकी समस्या क्या है? आपके पास एक बंगला है, फर्नीचर तथा जीवन की अन्य सुविधाएं भी हैं। ऐसे भी लोग हैं जो जीवनभर कमाई करते रहते हैं, परंतु पाते कुछ नहीं हैं। आप निराश हो जाते हैं क्योंकि आप नई इच्छाएं पैदा कर लेते हैं। ये इच्छाएं पूरी नहीं हो पाती हैं। जो इच्छाएं पूरी हो जाती हैं, उनकी आप कोई कीमत नहीं लगाते हैं। जिस स्थिति में आप हैं, उसी स्थिति में रहें, संपूर्णता के भाव में रहें तथा अपने घुटनों को इनके आनंद में खटखटाएं। यही सब कुछ है। तथाकथित समाधि आदमी की प्राकृतिक स्थिति नहीं है। प्राकृतिक रूप से समस्या के साथ एक हो जाना है। जब इसका समाधान हो जाता है, तो बात खत्म हो जाती है। ये सब चीजें निराशा पैदा करती हैं। ‘हम हजूर साहिब गए। हमने हेमकुंट की यात्रा की।’ हमारे पास यहां क्या नहीं है। भीतर की ओर जाएं। यहां अर्थात दिल में खोज करें। हम छत पर जमीन से छलांग लगाकर नहीं पहुंच सकते हैं। इस लक्ष्य से जब आप कोई सीढ़ी बनाते हैं तो समस्या सुलझ जाती है। प्रकृति के नियम के अनुसार यही रास्ता है, एक प्राकृतिक रास्ता, एक सही रास्ता। जब ठंड हो रही होती है तो आप ज्यादा कपड़े पहनते हैं। अगर गर्मी हो रही होती है तो आप पंखा चलाते हैं। अगर ज्यादा कपड़े न हों तथा पंखा भी उपलब्ध न हो, तो भी ठीक है। आखिर वे लोग भी जीते हैं जो स्वेटर नहीं डालते हैं। सभी विवशता की स्थिति में हैं। वास्तविकता यह है कि हम अपने पथ से भटक गए हैं। हम स्वामियों, तीर्थ-स्थलों तथा पुस्तकों से कुछ प्राप्त करने के प्रयास में साधारण रूप से अनिश्चित हैं। अपने आप में विश्वास की कमी के कारण हम कुछ प्राप्त करने में विफल रहते हैं तथा कीटों की तरह छटपटाते रहते हैं। तब क्या होगा अगर स्वामी आपके पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के बिना आपको अंदर बुला लेता है।

अगर यह एक धोखा नहीं है तो हो सकता है कि आगंतुकों के पहुंचने की जानकारी के बिना उसने उनका ध्यान रखने की कोई योजना बना रखी हो। उसकी इस योजना का क्या लाभ हो सकता है जबकि वह स्वयं पशुओं की जैसी गुफा में रह रहा है। जानवरों का अपना कोई नियम नहीं होता है। वे प्राकृतिक नियमों के अनुसार रहते हैं तथा तभी उन्हें न तो टीबी होती है, न ही खांसी या अन्य कोई बीमारी। पक्षी जहां भी मिलता है, वहां से अनाज चुग लेते हैं, दूर उड़ते हैं, बैठते हैं और अनाज को निगल जाते हैं। अगर उनको अनाज नहीं मिलता है, तो भी वह खुश रहते हैं। अगर वे अनाज को एक ड्रेन से पाते हैं तो वे इसे निगल जाते हैं तथा अपनी चोंच को पोंछ लेते हैं। आदमी हर चीज के साथ स्थितियों को जोड़ लेता है। एक आदमी का दार्शनिक ज्ञान इस बात का प्रमाण है कि वह मूर्ख है। परिणाम यह होता है कि सब कुछ पाने के बावजूद हम वरदानों को गिनते नहीं हैं और शिकायत करते रहते हैं।

-क्रमशः


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