प्रार्थना के बाद होती हैं अन्य क्रियाएं

By: Aug 4th, 2018 12:05 am

पीठ-पूजा के उपरांत ‘ह्रीं श्रीं प्रकट गुप्तगुप्ततर संप्रदाय कुलनिगर्भ रहस्याति रहस्य परापररहस्य संज्ञक श्रीचक्रगत योगिनी पादुकाभ्यो नमः’ से पुष्पांजलि देकर एवं त्रिखंडा मुद्रा प्रदर्शित कर, पुनः पुष्पांजलि लेकर ध्यान करें : ध्यानम ::बालार्कमंडलाभासो चतुर्वाहु त्रिलोचनाम। पाशांकुशशरांश्चापं धारयंतीं शिवां भजे।। अंजलि में पुष्प, अक्षत (चावल) आदि लेकर मातृका मंत्र का मानसिक जप करते हुए ध्यान करें…

-गतांक से आगे…

पूजा विधान

पीठ-पूजा के उपरांत ‘ह्रीं श्रीं प्रकट गुप्तगुप्ततर संप्रदाय कुलनिगर्भ रहस्याति रहस्य परापररहस्य संज्ञक श्रीचक्रगत योगिनी पादुकाभ्यो नमः’ से पुष्पांजलि देकर एवं त्रिखंडा मुद्रा प्रदर्शित कर, पुनः पुष्पांजलि लेकर ध्यान करें :

ध्यानम

बालार्कमंडलाभासो चतुर्वाहु त्रिलोचनाम।

पाशांकुशशरांश्चापं धारयंतीं शिवां भजे।।

अंजलि में पुष्प, अक्षत (चावल) आदि लेकर मातृका मंत्र का मानसिक जप करते हुए ध्यान करें।

आवाहनम्

ओउम चैतन्यं हृत्कमलतोनासिकारंध्र निर्गतम्।

ब्रह्मरंध्र मार्गेण योजितं कुसुमांजली।।

महापद्मवनांतस्थे कारणानंद विग्रहे।

सर्वभूत हिते मातरेह्रोहि परमेश्वरि।।

हाथ में लिए ताजा पुष्पों को श्रीयंत्र पर अर्पित कर दें। तदनंतर प्रार्थना करें।

प्रार्थनाम्

ओउम देवेशि भक्ति सुलभे सर्वावरण संयुते।

यावत्त्वां पूजयिष्यामि तावत्त्वं सुस्थिरा भव।।

प्रार्थना के पश्चात आगे की क्रियाएं निम्नलिखित रूप से करें।

प्रतिष्ठापनम्

हस्रैं हृस्क्लरीं ह्सौः श्रीमत्रिपुरसुंदरि चक्रेअस्मिन कुरु सान्निध्यं नमः।

आसनम्

ओउम सर्वान्तर्यामिनि देवि सर्व बीजमयं शुभम्।

स्वात्म स्थाप्य परं शुद्धमासनं कल्पयाम्यहम्।।

आसनं गृहाण नमः।

उपवेशनम्

ओउम अस्मिन वरासने देवि सुखासीनाअक्षरात्मके।

प्रतिष्ठिता भवेशि त्वं प्रसिद्ध परमेश्वरि।।

उपविष्ठा भव नमः।

सन्निधीकरणम्

ओउम अनन्यं तव देवेशि यंत्रम शक्तिरिदं वरे।

सान्निध्यं कुरु तस्मिन्त्वं भक्तानुग्रहतत्परे।।

भगवति त्रिपुरसुंदरि इह सन्निधेहि।

सम्मुखीकरणम्

ओउम अज्ञानाद दुर्मनस्ताद्वा वैकल्पात्साधनस्य च।

यदा पूर्णं भवेत्कृत्यं तदप्यभिमुखी भव।।

श्रीमत्रिपुरसुंदरि इह सम्मुखी भव।

सकलीकरणम्

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः हृदयाय नमः।

ओउम ह्रीं श्रीं शिरसे स्वाहा।

कएईल ह्रीं शिखायै वषट्।

हसकहल ह्रीं कवचाय हुम।

सकल ह्रीं नेत्रत्रयाय वौषट्।

सौः ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं अस्त्राय फट्।

पाद्यम्

एतत्पाद्यं श्रीत्रिपुरसुंदर्यै नमः।

अर्घ्यम्

इदमर्घ्यं श्रीत्रिपुरसुंदर्यै स्वाहा।

आचमनम्

इदमाचनीयं स्वधा।

स्नानम्

इदं स्नानीयं निवेदयामि।

पंचामृत-स्नानम्

पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करायान्वितम्।

पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम्।

गंधोदक स्नानम्

मलयाचलसंभूतमं चंदनागरू संभवम्।

चंदनं देवदेवेशि स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम्।।

 -क्रमशः


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