फिशरीज में है बेहतर रोजगार

By: Aug 19th, 2018 12:15 am

मछली पालन में करियर कहने को तो यह बड़ा ही साधारण लगता है, लेकिन आज के दौर में यह एक तेजी से उभरता हुआ करियर बन चुका है। अब इस क्षेत्र में प्रशिक्षित युवा अच्छी कमाई कर रहे हैं…

मछली पालन में करियर कहने को तो यह बड़ा ही साधारण लगता है, लेकिन आज के दौर में यह एक तेजी से उभरता हुआ करियर बन चुका है। अब इस क्षेत्र में प्रशिक्षित युवा अच्छी कमाई कर रहे हैं। अगर आप मछली पालन या फिशरी साइंस के क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं, तो यह शानदार ऑप्शन है। इसके लिए डिप्लोमा से लेकर बैचलर और पीजी लेवल पर कई प्रकार के कोर्स उपलब्ध हैं। फिशरी साइंस का क्षेत्र काफी बड़ा है। इसमें तमाम विषय पढ़ाए जाते हैं, जो रोजगार दिलाने में मददगार होते हैं। पिछले एक दशक में मछली पालन क्षेत्र में बड़ी तेजी से बदलाव आया है। पहले लोग केवल अपने शौक के लिए या खान-पान के लिए ही मछली पालन करते थे, लेकिन अब भारतीय तथा मल्टीनेशनल कंपनियां भारी इंवेस्टमेंट के साथ इस क्षेत्र में उतर रही हैं। गल्फ  तथा अफरीकन देशों में इससे संबंधित प्रोफेशनलों की भारी मांग है। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह उद्योग भारत में दस गुना बढ़ा है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन(आईएफओ) के अनुसार 1990 से 2010 के बीच भारत में मछली  उत्पादन दोगुना हुआ है। भारतए विश्व में मछली का एक प्रसिद्ध आपूर्तिकर्ता देश है। विश्व के आधे देशों में भारत द्वारा उत्पादित मछली का निर्यात किया जाता है।

कोर्स और योग्यता

यदि आप इस क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं, तो बैचलर ऑफ  साइंस इन फिशरीज बीएफएससी कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं। इसके साथ ही फिशरीज से संबंधित कुछ जॉब ओरिएटेड शॉर्ट-टर्म कोर्सेज भी हैं, जिन्हें करने के बाद जल्द ही नौकरी मिल जाती है। फिशरीज कोर्सेज में प्रवेश के लिए बायोलॉजी विषय में न्यूनतम 55 प्रतिशत अंकों के साथ 102 अनिवार्य है। इसके लिए डिप्लोमा से लेकर बैचलर और पीजी लेवल पर कई प्रकार के कोर्स उपलब्ध हैं। फिशरी साइंस का क्षेत्र काफी बड़़ा है। इसमें तमाम विषय ऐसे पढ़ाए जाते हैं जो रोजगार दिलाने में मददगार होते हैं। इसके तहत मछली पकड़ने से लेकर उनकी प्रोसेसिंग और सेलिंग तक की जानकारी दी जाती है। इसमें मछलियों का जीवन, इकोलॉजी, उनकी ब्रीडिंग और दूसरे तमाम विषय भी शामिल हैं। स्टूडेंट्स हर प्रकार के पानी और हर प्रकार की मछलियों के बारे में बताया जाता है। यूं कहें कि उन्हें इस मामले में एक्सपर्ट बनाया जाता है। कोर्स और ट्रेनिंग ज्यादातर लोग मोटे तौर पर बैचलर ऑफ  फिशरीज साइंस ‘बीएफएस’ के बारे में ही जानते हैं।

कानून और नियम

ब्रिटिश काल से ही मत्स्य पालन के बारे में नियम-कानून बनाए गए थे। 1897 में भारतीय मत्स्य अधिनियम बनाया गया, जिसमें पानी को विषाक्त कर या विस्फोट कर मछलियों को मारने पर पाबंदी लगाई गई थी। उसके बाद 1972 में वन्य जीवन संरक्षण और 1974 में जल अधिनियम बना। सन् 1986 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम बना। ये सभी अधिनियम मत्स्य पालन के लिए नियम-कानून बन कर इस उद्योग के संरक्षक बने।

मत्स्य पालन क्षेत्र के विकास के लिए परियोजनाएं

* अंतरदेशीय मत्स्य विकास पर केंद्र प्रायोजित योजना और एक्वाकल्चर

* समुद्री मछलियों को पकड़ने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास हेतु  केंद्र   प्रायोजित योजना।

*मछुआरों के कल्याण पर केंद्र प्रायोजित राष्ट्रीय योजना।

मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए डेटाबेस और भौगोलिक सूचना प्रणाली के सुदृढ़ीकरण पर केंद्र प्रायोजित योजना। इसके अलावा सरकार गरीब मछुआरों के कल्याण के लिए कई योजनाएं चला कर उन्हें अनुदान प्रदान करती है ताकि वे अपने परंपरागत व्यवसाय को आसानी से आगे बढ़ा सकें, जिससे उनके परिवार का गुजर-बसर हो सके। टाटा समूह ने तमिलनाडु में मछुआरों के सामाजिक और आर्थिक सुधारों में अहम योगदान दिया है।

आर्थिक सुदृढ़ता में सहायक

मत्स्य पालन ने वर्ष 2008 में भारत के सकल घरेल उत्पाद में 1 प्रतिशत से अधिक का योगदान दिया। भारत में मछली पकड़ने के व्यवसाय में लगभग 14.5 लाख लोग जुड़े हुए हैं। विश्व के लगभग आधे देश भारत में पैदा होने वाली मछली का उपभोग करते हैं। इस प्रकार यह उद्योग आर्थिकी को सुदृढ़ करने के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी उपलब्ध करवाता है। पिछले कुछ दशकों के दौरान भारतीय मत्स्य पालन और जलीय कृषि शिल्प में सुधार देखा गया है। मछली पकड़ने से आर्थिक लाभ के लिए भारत सरकार ने विशेष आर्थिक पैकेज अपनाया है। इसके लिए हिंद महासागर का 370 किलोमीटर और 2 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक का क्षेत्र इसमें शामिल किया गया है।

चुनौतियां भी कम नहीं

इस व्यवसाए से जुड़े लोग जोखिम भरी जिंदगी जीते हैं। समुद्र की लहरों से जूझने का जज्बा रखने वाले लोग ही इस करियर में  कामयाब होते हैं। कभी-कभी तो ऐसे समाचार भी सुनने को मिलते हैं कि पाकिस्तान या दूसरे किसी देश ने हमारे मछुआरों को कैद कर लिया यानी कि मछली पकड़ते हुए दूसरे देश की हद में निकल जाते हैं और फिर घुसपैठ का आरोप लगाकर दूसरे देश द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है। इस क्षेत्र में अपना रोजगार शुरू करने वाले को तालाब बनाने पर काफी खर्च करना पड़ता है। कभी-कभी तो ऋण लेने की नौबत भी आ जाती है। इसके अलावा कई बार मछलियां किसी बीमारी का शिकार हो जाती हैं, तो फिश फार्म चलाने वालों को बड़ा आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ता है।

शैक्षणिक योग्यता

मत्स्य पालन में तकनीकी ज्ञान का विशेष महत्व होता है। तकनीकी कौशल का होना अनिवार्य है, लेकिन अगर अभ्यर्थी ने बीएससी मेडिकल साइंस अथवा जूलॉजी जैसे विषयों में विधिवत शिक्षा प्राप्त की हो तो सुविधा रहती है। इस क्षेत्र में डीएफएस और एमएससी की डिग्री भी होती है।

वेतनमान

मत्स्य पालन में आमदनी इस बात पर निर्भर करती है कि आपने मछली पालन को किस स्तर पर अपनाया हुआ है और किस प्रजाति की मछली को पालन के लिए चुना है। वैज्ञानित तरीके से मछली पालन करने पर प्रति महीने एक लाख तक का मुनाफा भी कमाया जा सकता है।

हिमाचल में मत्स्य पालन

फिश फार्म को मत्स्य पालन की आधारशिला माना जाता है। हिमाचल देश के उन कुछ प्रदेशों में है, जिन्हें प्रकृति ने समृद्ध करने के लिए कई संसाधन दिए हैं। हिमाचल प्रदेश में तालाबों और खड्डों के अलावा  चार बड़ी झीलों गोबिंद सागर, महाराणा प्रताप सागर और पंडोह तथा चमेरा में मत्स्य पालन फलफूल रहा है। हिमाचल में ट्राउट और कार्प फिश फार्म हैं। प्रदेश के ऊपरी क्षेत्र में ट्राउट, मध्य क्षेत्र में कार्प प्रजाति की मछलियों का कारोबार शुरू किया जा सकता है।

प्रमुख प्रशिक्षण संस्थान

*           अंतरदेशीय मत्स्य संस्थान : केरल

*           केंद्रीय संस्थान मत्स्य प्रौद्योगिकी : कोच्चि

*           केंद्रीय मत्स्य समुद्री और इंजीनियरिंग प्रशिक्षण संस्थान : जुहु मुंबई

*           मत्स्य पालन केंद्रीय तटीय इंजीनियरिंग संस्थान : बंगलूर

*           सेंट्रल इन्लैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीच्यूट बैरकपुर  :कोलकात्ता

*           सेंट्रल इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कोचीन

*           सेंट्रल इंस्टीच्यूट फे्रश वाटर एक्वकल्चर भुवनेश्वर ओडिशा

*           डायरेक्टरेट ऑफ  कोल्ड वाटर फिशरीज रिसर्च इंस्टीच्यूट भीमताल  उत्तराखंड

*           पंजाब  एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी :लुधियाना

इसके अलावा भारत में 19 मत्स्य पालन से संबंधित कालेज हैं और एक मत्स्य पालन विश्वविद्यालय (सीआईएफई) इस क्षेत्र में प्रचार- प्रसार कर रहा है।

ट्राउट फार्म जहां हैं

1 पतलीकूहल  (कुल्लू)

2 बरोट  (मंडी)

3 होली   (चंबा)

4 धामवारी (शिमला)

5 सांगला (किन्नौर)

कार्प फार्म जहां हैं

1 अलसू   (मंडी)

2 दियोली (बिलासपुर)

3 कांगड़ा (कांगड़ा)

4 सुल्तानपुर (चंबा)

हिमाचल के गोबिंद सागर को मछली उत्पादन में देश में पहला स्थान प्राप्त है।

मछली पकड़ने की प्रमुख बंदरगाह

मंगलूर (कर्नाटक)

 कोच्चि (केरल)

 चेन्नई (तमिलनाडु)

 विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश)

 कोलकाता (पश्चिम बंगाल)

कृषि से अधिक आय है फिशरीज में

मत्स्य पालन में  करियर से संबंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए हमने सतपाल मेहता से बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश…

सतपाल मेहता

निदेशक , मत्स्य पालन विभाग बिलासपुर (हि, प्र.)

फिशरीज में करियर के क्या स्कोप हैं?

फिशरीज में करियर स्वरोजगार की दृष्टि से काफी अच्छा बन सकता है। फिशरीज में कृषि से अधिक आय अर्जित की जा सकती है।

इसे करियर के तौर पर अपनाने के लिए शैक्षणिक योग्यता क्या होती है?

फिशरीज पालन करने के लिए ऊंचे स्तर की शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता नहीं है। मैट्रिक अथवा जमा दो पास अभ्यर्थी भी फिशरीज के बारे में जानकारी अच्छे ढंग से ग्रहण कर इसे करियर के रूप में अपना सकते हैं।

क्या फिशरीज में कोई विशेषज्ञ कोर्स किए जा सकते हैं?

जी हां। फिशरीज को वैज्ञानिक ढंग से अपनाने के लिए स्नातक मात्स्यिकी एवं स्नातकोत्तर मास्त्यिकी की योग्यताएं करने हेतु राष्ट्रीय मात्स्यिकी संस्थानों से संपर्क कर विशेषज्ञ कोर्स किए जा सकते हैं।

हिमाचल में इस संबंधी पाठ्यक्रम कहां चलता है?

वर्तमान में हिमाचल में इस संबधी पाठ्यक्रम कहीं नहीं है। शायद चौधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में इस संबंधी पाठ्यक्रम चलाने की कवायाद आरंभ की जा रही है।

फिशरज में रोजगार की संभावनाएं हिमाचली संदर्भ में कितनी हैं?

प्रदेश में 12000 से अधिक परिवार फिशरीज व मत्स्य दोहन के व्यवसाय से जुड़े हैं। ट्राउट मछली का पालन व कॉर्प मछली का तालाबों में पालन करने का प्रचलन काफी बढ़ रहा है, जिससे कृषकों की आय में भी काफी वृद्धि हो रही है। बेरोजगार युवाआें के लिए यह व्यवसाय रोजगार का एक उत्तम विकल्प बन सकता है।

फिशरीज में आमदनी कितनी होती है?

यह तालाब के आकार पर निर्भर करता है। ट्राउट पालन केंद्र के 15 मीटर बाई 2 मीटर तक के यूनिट में एक लाख रुपए शुद्ध आय प्राप्त की जा सकती है। आय इस बात पर भी निर्भर करती है कि आप ने किस प्रजाति की मछली का पालन किया है और किस स्तर पर किया है।

इस करियर में युवाओं के लिए चुनौतियां क्या हैं?

प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के मद्देनजर ज्यादा मैदानी क्षेत्र तालाबों के निर्माण के लिए उपलब्ध नहीं है। फिर चिकनी मिट्टी तालाब निर्माण हेतु व पानी की व्यवस्था भी एक चुनौती है। ट्राउट पालन के लिए बनाए गए ट्राउट यूनिट कई बार बरसात के दिनों बाढ़ इत्यादि के प्रकोप का शिकार बनते हैं। इसलिए अभी लाइव स्टॉक के बीमे की योजना स्वीकृत नहीं हो पाई है, जिसके लिए विभाग प्रयासरत है।

जो युवा इस करियर में पदार्पण करना चाहते हैं, उनके लिए कोई प्रेरणा संदेश दें?

फिशरीज की समस्त योजनाओं को नील क्रांति योजना के अंतर्गत लाया गया है। इसमें 80 प्रतिशत अनुदान राशि का प्रावधान है। मैं प्रदेश के युवाओं से आह्वान करता हूं कि ट्राउट मछली पालन व तालाबों में कॉर्प मछली पालन को आरंभ कर अपनी आय वृद्धि करें तथा स्वरोजगार के अवसर जुटाएं।

-अश्वनी पंडित, बिलासपुर


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