फेफड़ों के सिकुड़न के कारण

By: Aug 4th, 2018 12:05 am

अपने देश में फेफड़े के सिकुड़ जाने की समस्या बहुत ज्यादा है। अकसर आपने देखा होगा कि आपके परिवार में किसी एक सदस्य को फेफड़े का इन्फेक्शन हुआ था और उसकी छाती में ट्यूब डालकर पानी व मवाद निकाला गया था। इसके बावजूद फेफड़ा पूरी तरह से फूला नहीं। कई ऐेसे नवयुवक व नवयुवतियां होंगी, जिनकी सड़क दुर्घटना में छाती में चोट आई थी, जान तो बच गई पर एक तरफ  का फेफड़ा सिकुड़ गया है। बहुत बड़ी संख्या में कई ऐसे नौजवान मिलेंगे, जिनकी छाती में नली पड़ी हुई है और नली से मवाद और हवा के बुलबुले निकल रहे हैं। ऐसे मरीज छाती में ट्यूब डलवाए और ट्यूब से जुड़ी थैली में मवादनुमा पानी भरे हुए महीनों से घूम रहे हैं। कितनी अजीब विडंबना है कि एक तरफ  तो भारत में उपलब्ध उच्च कोटि के स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में हम बढ़-चढ़ कर बातें करते हैं, तो दूसरी तरफ  खस्ता हाल स्वास्थ्य सेवाओं की यह जीती जागती मिसाल है कि लोग छाती में ट्यूब डलवाए बरसों से घूम रहे हैं। मरीज के साथ साथ फिजीशियन भी हताश हो चुके होते हैं।

आखिर फेफड़ा क्यों सिकुड़ जाता है?

फेफड़ा अगर सांस लेने पर पूरी तरह से फूल नहीं रहा है, तो इसका मतलब यह है कि या तो फेफड़ा इन्फेक्शन की वजह से नष्ट हो गया है और अपनी पुरानी स्थिति में लौटने में असमर्थ है। फेफड़े के पूरा न फैलने का दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि फेफड़े में हवा ले जाने वाली श्वास नलियों में किसी तरह की रुकावट हो। श्वास नली में रुकावट पैदा करने वालों में ट्यूमर या खून का कतरा या फिर बलगम के कचरे का जमाव हो सकता है। फेफड़े के पूरा न फैलने का तीसरा मुख्य कारण छाती में कभी पहले हुए इन्फेक्शन का अपर्याप्त इलाज होना है जिसके परिणामस्वरूप इन्फेक्शन की वजह से छाती में मवाद इकट्ठा हो जाता है। अगर ये मवाद समय रहते पूरी तरह से निकाला नहीं गया तो ये मवाद फेफड़े के ऊपर चढ़ी हुई झिल्ली को अत्यधिक मोटा बना देता है। इसका परिणाम यह होता है कि मवाद और मोटी झिल्ली फेफड़े को चारों ओर से दबा देता है और फेफड़े को फूलने नहीं देता।

कौन से रोग फेफड़े को पूरा फूलने नहीं देते?

हमारे देश में फेफड़े के सिकुड़ जाने का सबसे बड़ा कारण टीबी का इन्फेक्शन है। यह एक तरफ तो फेफड़े की प्राकृतिक संरचना को नष्ट कर देता है, तो दूसरी तरफ इन्फेक्शन की वजह से छाती में इकट्ठा हुआ पीला पानी फेफड़े को बाहर से दबाता है। इस इकट्ठे हुए पीले पानी की दो गतियां होती हैं। एक तो अगर ये पीला पानी गाढ़ा हो गया और सूख गया तो यह फेफड़े के चारों ओर जाल बना लेता है और उसके चारों ओर की खाली जगह को भर देता है ,जिससे फेफड़ा सिकुड़ जाता है। छाती में इकट्ठे हुए पानी की दूसरी गति यह होती है कि यह प्रभावी ढ़ंग से इन्फेक्शन पर नियंत्रण न होने की वजह से यह पीला पानी मवाद में परिवर्तित हो जाता है, जिससे फेफड़ा जख्मी हो जाता है और इसका परिणाम यह होता है कि फेफड़े के अंदर स्थत श्वास नलियों से हवा निकलकर छाती के अंदर इकट्ठी होने लगती है और यह इकट्ठा हुआ मवाद और हवा, फेफड़े को किसी भी सूरत में फूलने नहीं देता। इस अवस्था को मेडिकल भाषा में हाइड्रोन्यूमोथोरेक्स कहते हैं।

 – डा. के के पांडेय, वरिष्ठ थोरेसिक व कार्डियोवैस्कुलर सर्जन,  इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, नई दिल्ली


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